खुद का दर्द भूल संवार रहे मूक बधिरों का जीवन

यदि कुछ करने का जज्बा व जुनून हो तो व्यक्ति कुछ भी हासिल कर सकता है।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 26 Sep 2021 06:31 AM (IST) Updated:Sun, 26 Sep 2021 06:31 AM (IST)
खुद का दर्द भूल संवार रहे मूक बधिरों का जीवन
खुद का दर्द भूल संवार रहे मूक बधिरों का जीवन

देवरिया: यदि कुछ करने का जज्बा व जुनून हो तो व्यक्ति कुछ भी हासिल कर सकता है। जन्म से ही मूक बधिर राजेश ऐसे ही लोगों में से हैं। उनके जैसे बच्चे जीवन अपने पैरों पर खड़ा हो सकें, इसके लिए वह अपना दर्द भूलकर करीब 13 साल से सिर्फ दस रुपये में ही इशारों की भाषा सिखा रहे हैं। आज उनके सिखाए बच्चे दूसरे शहरों के मूक बधिर स्कूलों में शिक्षा देकर अपना भविष्य संवार रहे हैं।

जिले के राघवनगर मोहल्ले के रहने वाले राजेश पांडेय के पिता डा. महेंद्र पांडेय रिटायर्ड एसोसिएट प्रोफेसर हैं। राजेश की शिक्षा लखनऊ के एक मूक बधिर स्कूल में बीए तक हुई। उसके बाद वह अपने घर आ गए। उनके मन में मूक बधिर बच्चों को पढ़ाने की ललक थी। पिता के सहयोग से अपने घर के तीन कमरों में अपने बाबा के नाम अपने घर में स्कूल खोल लिया। फीस रखी मात्र 10 रुपये। बच्चों को मूक बधिरों की भाषा में पढ़ाते हैं। बच्चे भी उनके इशारे पर कहीं भी इकट्ठा हो जाते हैं। वह बच्चों को कापी किताब व पेंसिल आदि भी मुहैया कराते हैं। स्कूल को 2008 में कक्षा एक से पांच तक की अस्थायी मान्यता मिल गई। इसके बाद बच्चों की संख्या 100 से अधिक हो गई। यह सिलसिला चलता रहा।

करीब डेढ़ साल पहले कोरोना संक्रमण के चलते स्कूल बंद हो गया। बच्चे इधर -उधर चले गए। फिर बच्चों को इकट्ठा कर रहे हैं। इस वक्त संख्या महज 11 है। फिर भी राजेश अपने मिशन पर कायम हैं। मूक बधिर बच्चों को मोहल्लों में जाकर तलाश रहे हैं। अभिभावकों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।

राजेश की शादी हो गई है। चार बच्चे हैं। वह सामान्य हैं। एक बेटा बीबीए कर रहा है, दूसरा आठवीं कक्षा में तथा बेटी बीएससी की छात्रा है। एक बेटी की शादी हो चुकी है। पत्नी भी राजेश के काम में हाथ बंटाती हैं।

उनके पढ़ाए छात्र लखनऊ, दिल्ली, वाराणसी, गाजीपुर व इलाहाबाद में भविष्य संवार रहे हैं। देवरिया शहर के स्टेशन रोड के मुकेश वर्मा गाजीपुर में, न्यू कालोनी की सुनीता तथा लार के सुनील प्रजापति, देसही देवरिया के सुरेश प्रताप शुरुआत में गोरखपुर, उसके बाद प्रयागराज में पढ़ाई पूरी कर मूक बधिरों को शिक्षा दे रहे हैं।

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मूक बधिर बच्चा होने पर पांडेय दंपती हुए थे निराश

डा.महेंद्र पांडेय के घर में जब राजेश का जन्म हुआ तो खुशी का ठिकाना नहीं रहा, लेकिन एक साल बाद राजेश की जुबां खामोश दिखी तो मन बहुत दुखी हुआ। चिकित्सकों को दिखाया, सभी ने मूक बधिर होने की पुष्टि की। इसके बाद दंपती ने लखनऊ के मूकबधिर स्कूल में उनका दाखिला कराया। मूक बधिरों की तलाश में सुबह निकल जाते हैं राजेश

मूक बधिर बच्चों की तलाश में राजेश सुबह शहर में निकल जाते हैं। लोगों से इशारों में बात करते हैं। स्कूल में दाखिला के लिए लोगों को प्रेरित करते हैं। पता लगाते रहते हैं कि किस मोहल्ले में मूक बधिर बच्चा स्कूल जाने लायक हो गया है।

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