गोरखपुर में बाले मियां दरगाह की जमीन मुकदमों में उलझी, 45 बीघा जमीन पर अवैध कब्जा Gorakhpur News

जमीन के चारों ओर बाउंड्री न होने का फायदा उठाकर बहुत से लोगों ने जमीन के छोटे-छोटे हिस्सों पर कब्जा कर घर बनवा लिया है लेकिन किसी के पास जमीन से जुड़े एक भी पक्के दस्तावेज नहीं हैं।

By Satish ShuklaEdited By: Publish:Tue, 24 Nov 2020 05:51 PM (IST) Updated:Tue, 24 Nov 2020 05:51 PM (IST)
गोरखपुर में बाले मियां दरगाह की जमीन मुकदमों में उलझी, 45 बीघा जमीन पर अवैध कब्जा Gorakhpur News
अवैध कब्‍जे के संबंध में प्रतीकात्‍मक फाइल फोटो।

गोरखपुर, जेएनएन। हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक कहे जाने वाले हजरत सैयद सालार मसूद गाजी 'बाले मियां के बहरामपुर स्थित दरगाह की बेशकीमती भूमि को लेकर वर्षों से विवाद चल रहा है। वक्फ बोर्ड में दर्ज दरगाह की 45 बीघा जमीन के एक हिस्से पर कई लोगों ने कब्जा कर घर बनवा लिए हैं तो बची जमीन पर भू-माफिया की नजर है। जमीन के मालिकाना हक को लेकर भी मुतवल्ली एवं कुछ लोगों के बीच मामला न्यायालय में विचाराधीन है। दरगाह से होने वाली आय भी विवाद की वजह मानी जाती है।

1921 में गोरखपुर आए महात्मा गांधी ने राप्ती तट के किनारे बाले मियां के मैदान से ही विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार, अंग्रेजों का सहयोग बंद करने तथा सरकारी नौकरियां छोडऩे की अपील की थी। यहां हर साल ज्येष्ठ मास में मेला लगता है। एक माह तक चलने वाले मेले के मुख्य दिन अकीदतमंदों द्वारा पलंग पीढ़ी, कनूरी आदि चढ़ा कर मन्नतें मांगी जाती है। मेले से लाखों रुपये की आय होती है। इसको लेकर भी कई पक्षों में विवाद मेले के दौरान देखने को मिलता है। जमीन के चारों ओर बाउंड्री न होने का फायदा उठाकर बहुत से लोगों ने जमीन के छोटे-छोटे हिस्सों पर कब्जा कर घर बनवा लिया है, लेकिन किसी के पास जमीन से जुड़े एक भी पक्के दस्तावेज नहीं हैं। दरगाह के मुतवल्ली कई बार प्रशासन और नगर निगम से जमीन से अवैध कब्जा हटवाने की मांग कर चुके हैं। जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी आशुतोष पांडेय ने बताया कि वक्फ बोर्ड में पंजीकृत होने के बावजूद बाले मियां के दरगाह की जमीन को लेकर कई पक्षों में विवाद है। फिलहाल मामला एसीएम प्रथम के यहांं विचाराधीन है।

पुराना है विवाद से नाता

हजरत सैयद सालार मसऊद गाजी उर्फ बाले मियां दरगाह की करीब 45 बीघा जमीन 14 सितंबर 1972 में उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड में वक्फ संख्या 129 में दर्ज हुआ। बाद में वक्फ बोर्ड ने इस्लाम हाशमी को दरगाह कमेटी का मुतवल्ली बना दिया। जमीन पर मालिकाना हक जताते हुए कुछ लोग बोर्ड के इस निर्णय के खिलाफ सिविल जज सीनियर डिवीजन (वक्फ ट्रिब्यूनल) के पास पहुंचे। वक्फ ट्रिब्यूनल ने 2014 में उक्त जमीन को वक्फ की मानते हुए वक्फ बोर्ड के आर्डर को बहाल रखा। इससे पहले 1992 में भी जिला जज ने भी वक्फ बोर्ड के पक्ष में फैसला सुनाया था। इस आदेश के खिलाफ विपक्षी ने रिवीजन फाइल किया। बाद में हाईकोर्ट ने रिवीजन को खारिज कर दिया। इसके बाद मो. इलियास, मो. वसी और मो. वैस ने लखनऊ ट्रिब्यूनल में मुकदमा किया। जहां पांच दिसंबर 19 को वक्फ बोर्ड के आर्डर को निरस्त कर दिया गया, लेकिन वक्फ बोर्ड के दस्तावेज के हवाले से जिलाधिकारी ने इस्लाम हाशमी को ही दरगाह का मुतव्वली माना। बाद में मामले के निस्तारण के लिए उसे एसीएम प्रथम के पास भेज दिया।

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