संस्कृत साहित्य में पांचवां वेद है 'नाट्यशास्त्र: प्रो. राजवल्लभ Gorakhpur News

प्रो. त्रिपाठी ने कहा कि भरत मुनि का नाट्यशास्त्र एक विश्वकोषीय ग्रंथ है। इसमें थिएटर वास्तुकला संगीत नृत्य स्थापत्य कला आयुध-कला और सौंदर्यशास्त्र जैसी विधाओं का कलात्मक विवरण है। यही वजह है कि संस्कृत साहित्य में इसे पांचवें वेद की संज्ञा दी गई है।

By Satish Chand ShuklaEdited By: Publish:Fri, 07 May 2021 05:41 PM (IST) Updated:Fri, 07 May 2021 05:41 PM (IST)
संस्कृत साहित्य में पांचवां वेद है 'नाट्यशास्त्र: प्रो. राजवल्लभ Gorakhpur News
गोरखपुर विश्‍वविद्यालय के मुख्‍य द्वार का फाइल फोटो, जागरण।

गोरखपुर, जेएनएन। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग और एपिस्टीम फोरम फार इंटरडिसिप्लिनरी स्टडीज इन ह्यूमेनिटीज के संयुक्त तत्त्वावधान में नाट्यशास्त्र: एक सामान्य परिचय विषय पर आनलाइन व्याख्यान का आयोजन किया गया। व्याख्यान को बतौर मुख्य वक्ता संबोधित करते हुए राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान नई दिल्ली के पूर्व कुलपति प्रो. राधावल्लभ त्रिपाठी ने विषय पर तथ्यपरक ढंग से विस्तार से प्रकाश डाला।

भरत मुनि का नाट्यशास्त्र एक विश्वकोषीय ग्रंथ

प्रो. त्रिपाठी ने कहा कि भरत मुनि का नाट्यशास्त्र एक विश्वकोषीय ग्रंथ है। इसमें थिएटर, वास्तुकला, संगीत, नृत्य, स्थापत्य कला, आयुध-कला और सौंदर्यशास्त्र जैसी विधाओं का कलात्मक विवरण है। यही वजह है कि संस्कृत साहित्य में इसे पांचवें वेद की संज्ञा दी गई है। उन्होंने बताया कि विश्वभर की अनेक संस्कृतियों की नाट्य परंपराएं नाट्यशास्त्र की शैली से प्रेरणा लेती हैं। थाईलैंड की रामलीला में इसका सुंदर अनुकरण किया जाता है।

भरतमुनि के नाट्यशास्त्र की उपेक्षा पर जताया दुख

प्रो. त्रिपाठी ने कहा कि नाट्यशास्त्र न केवल एक सैद्धान्तिक ग्रन्थ है बल्कि भारतीय दर्शन परंपरा का अद्भुत उदाहरण भी है। उन्होंने नाट्यशास्त्र की प्रासंगिकता बताते हुए इसकी उपेक्षा पर दुख जताया। उन्होंने भारतीय नाट्य परम्परा की वैज्ञानिकता का प्रसार विश्व भर किए जाने पर बल दिया। कहा कि इस दिव्य ग्रंथ की वैज्ञानिकता का लाभ पूरी दुनिया को मिलना ही चाहिए। ऐसा किया जाना हम सभी का कर्तव्य है और दुनिया के प्रति जिम्मेदारी भी।

व्याख्यान पर टिप्पणी करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के प्रो. बलराम शुक्ल ने कहा कि प्रो. त्रिपाठी की दृष्टि सदैव ही किसी ग्रन्थ के विहंगमावलोकन पर आधारित होती है। अध्यक्षता प्रो. गौरहरि बेहरा, संचालन डा. हरि प्रताप त्रिपाठी और आभार ज्ञापन अंग्रेजी विभाग के अध्यक्ष प्रो. आलोक कुमार ने किया।

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