रिजर्व बैंक बनाम सरकार से बिगड़ेगा देश का आर्थिक माहौल

दैनिक जागरण के पाक्षिक विमर्श में गोरखपुर विश्वविद्यालय के वाणिज्य विभाग में आचार्य अजेय कुमार गुप्त ने कहा कि रिजर्व बैंक और सरकार के टकराव से देश का आर्थिक माहौल खराब होगा।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Publish:Tue, 13 Nov 2018 10:11 AM (IST) Updated:Tue, 13 Nov 2018 10:11 AM (IST)
रिजर्व बैंक बनाम सरकार से बिगड़ेगा देश का आर्थिक माहौल
रिजर्व बैंक बनाम सरकार से बिगड़ेगा देश का आर्थिक माहौल

गोरखपुर, (जेएनएन)। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया और भारत सरकार के बीच जारी विवाद अभूतपूर्व है। इससे देश के आर्थिक परिवेश पर निश्चित ही बुरा असर पड़ेगा। बढ़ते विवाद का यदि जल्द ठोस समाधान न हुआ तो वैश्विक स्तर पर भारत की अर्थव्यवस्था के प्रति भरोसा कमजोर होगा। सरकारें बहुत से मुद्दों पर अल्पकालिक दृष्टि से सोचती हैं जबकि केंद्रीय बैंक को मध्यावधि और लंबी अवधि को ध्यान में रखकर चलना होता है। ऐसे में मतभेद होना लाजिमी है। नि:संदेह दोनों की नीतियां देश की प्रगति को ही ध्यान में रखकर तैयार होती हैं, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि कोई एक, दूसरे की स्वायत्तता को प्रभावित करने की कोशिश करे। बदकिस्मती से इस विवाद के बीच कुछ ऐसा ही संदेश निकल कर आ रहा है।

यह विचार हैं गोरखपुर विश्वविद्यालय के वाणिज्य विभाग में आचार्य अजेय कुमार गुप्त के, जो दैनिक जागरण कार्यालय में पाक्षिक विमर्श शृंखला के अंतर्गत आरबीआइ और केंद्र सरकार के बीच जारी रार पर अपनी राय रख रहे थे। विमर्श की शुरुआत करते हुए प्रो. अजेय ने कहा कि लोकसभा का चुनाव करीब है। ऐसे में केंद्र सरकार का जोर लोगों के बीच देश की अर्थव्यस्था की मजबूत छवि बनाने की कोशिश है। केंद्र सरकार चाहती है कि आरबीआइ ऐसे प्रावधान करे जिससे बैंक अधिक से अधिक कर्ज बांट सकें। कर्ज मिलेगा तो नए उद्योग-धंधे लगेंगे, कारोबार बढ़ेगा, रोजगार की संभावनाएं बढ़ेंगी, लेकिन आरबीआइ अर्थव्यवस्था की सुंदर छवि पेश करने की बजाय उसे भीतर से दुरुस्त करने की कवायद में जुटा है। इसी कवायद के चलते भारी एनपीए संकट का सामना कर रहे 11 बैंकों को नए लोन जारी करने पर आरबीआइ ने रोक लगा दी।

प्रो. गुप्त ने कहा कि चुनावी वर्ष में किसी भी सरकार को ऐसी स्थिति असहज कर सकती है, वह भी तब जब पहले से ही अर्थतंत्र चरमराया हुआ हो। पालिसी रेट को लेकर भी दोनों के बीच मतभेद है। सरकार का जोर नीतियों को लोकप्रिय बनाने पर होता है, सो उसकी मंशा होती है कि आरबीआइ पॉलिसी रेट कम रखे। दूसरी तरफ आरबीआइ का फोकस महंगाई पर काबू पाने का रहता है, इसलिए पॉलिसी रेट घटाने से बचते हैं।

सेक्शन 7 का इस्तेमाल हुआ तो जाएगी साख

विमर्श को आगे बढ़ाते हुए प्रो. गुप्त ने केंद्र सरकार द्वारा आरबीआइ पर लगाम कसने के लिए आरबीआइ एक्ट-1934 की धारा 7 के लागू करने के विचार पर भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि इस धारा के इस्तेमाल की चर्चा होना ही दुर्भाग्यपूर्ण है। जहां तक रिजर्व बैंक के पास आरक्षित धन से अधिक हिस्सा मांगने का मुद्दा है, रिजर्व बैंक अपना वार्षिक हिसाब-किताब पूरा कर लेने के बाद अपनी बचत में से डिविडेंट के रूप में सरकार का हिस्सा उसे देता है। इस वर्ष भी यह राशि दी गई। बावजूद इसके सरकार अगर इस धारा का प्रयोग करती है तो पूरे विश्व में आरबीआइ की जो विश्वसनीयता है, वो खत्म हो जाएगी। यह माना जा सकता है कि आरबीआइ भी अन्य संस्थाओं की तरह अब सरकार द्वारा ही संचालित होती है। इस तरह की धारणा बनना अभूतपूर्व ही नहीं है अर्थतंत्र के सामने नए संकट को जन्म देगा।

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