गोरखपुर में उद्योगों के सामने संकट गहराया, अधिकतर इकाइयों में नहीं हो रहा शत-फीसद उत्पादन
चैंबर आफ इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष विष्णु प्रसाद अजितसरिया कहते हैं कि स्थानीय स्तर पर भी स्कूल नहीं खुले हैं। बाजार में भी कपड़े की मांग पहले जैसी नहीं है। यहां का कपड़ा कोलकाता एवं अन्य शहरों को जाता है। वहां अभी भी प्रतिबंध बरकरार है जिसके कारण मांग नहीं है।
गोरखपुर, जागरण संवाददाता। कोरोना संक्रमण पर नियंत्रण के लिए बंद किए गए बाजार पिछले कुछ सप्ताह से खुलने लगे हैं लेकिन अभी भी उद्योगों की स्थिति सामान्य नहीं हो सकी है। कपड़ा, स्टील, हार्डवेयर जैसे उत्पाद बनाने वाली औद्योगिक इकाइयों के सामने मांग का संकट बरकरार है। खाद्य पदार्थों एवं मेडिकल उपकरणों से जुड़ी इकाइयों के अलावा अन्य किसी भी इकाई में शत-फीसद उत्पादन नहीं हो पा रहा है।
बाजार में कपड़े की मांग पहले जैसे नहीं
वीएन डायर्स के एमडी एवं चैंबर आफ इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष विष्णु प्रसाद अजितसरिया कहते हैं कि स्थानीय स्तर पर भी स्कूल नहीं खुले हैं। बाजार में भी कपड़े की मांग पहले जैसी नहीं है। यहां का कपड़ा कोलकाता एवं अन्य शहरों को जाता है। वहां अभी भी प्रतिबंध बरकरार है, जिसके कारण मांग नहीं है। उत्पादन भी करीब 70 फीसद ही हो पा रहा है। माल को डंप भी करना पड़ रहा है। रेडीमेड गारमेंट सेक्टर को लेकर भी समस्या है।
उत्पादन पर पड़ा असर
बहुत सी इकाइयों में तैयार माल का खपत स्कूलों में होती है और स्कूल अभी नहीं खुले हैं, ऐसे में उनके यहां उत्पादन काफी कम हो रहा है। हार्डवेयर उत्पादों की इकाई चलाने वाले उद्यमी आरएन सिंह का कहना है कि बाजार में मांग अभी भी नहीं है। खाद्य पदार्थों की इकाइयों को छोड़कर सबके सामने मांग का संकट है। कीमत घटाकर भी माल निकालने को मजबूर होना पड़ रहा है। फर्नीचर एवं अन्य इकाइयों में भी संकट बरकरार है।
बिजली का बिल नहीं जमा कर पा रहीं 24 इकाइयां
गोरखपुर औद्योगिक विकास प्राधिकरण (गीडा) में स्थापित करीब 24 इकाइयों की स्थिति इतनी खराब है कि उनकी ओर से बिजली का बिल भी जमा नहीं किया जा पा रहा है। मांग न हो पाने के कारण इन इकाइयों में तैयार माल भी नहीं बिक रहे।
आक्सीजन की मांग घटी, पूरी क्षमता से नहीं चल रहे प्लांट
कोरोना काल में जहां आक्सीजन के लिए मारामारी थी, वहीं इस समय काफी कम मांग है। आक्सीजन प्लांट पूरी क्षमता के साथ नहीं चल रहे हैं। उद्यमी प्रवीण मोदी बताते हैं कि वह तीन में से केवल एक प्लांट को संचालित कर रहे हैं। हवा से गैस बनाने वाली इकाई में उत्पादन है। लिक्विड आक्सीजन से रीफिङ्क्षलग वाली इकाइयों को एक से दो घंटा ही चलाया जाता है। प्रवीण कहते हैं कि इस समय इंडस्ट्रियल आक्सीजन की मांग भी काफी कम हो गई है। सरकार की ओर से इंडस्ट्रियल आक्सीजन के इस्तेमाल को मंजूरी दी गई है लेकिन कच्चे माल की कीमतों में वृद्धि व मांग में कमी के कारण औद्योगिक इकाइयों में कम आक्सीजन का उपयोग हो रहा है। इस समय इंडस्ट्रियल आक्सीजन की मांग 40 फीसद ही रह गई है।