हाल बेहाल/माननीय के पति की 'उतर' गई

सफाई महकमे में एक महिला माननीय क्षेत्र की समस्याओं को लेकर हमेशा संघर्ष करती रहती हैं। बैठकों में बोलने वाली कुछ महिला माननीयों में यह भी शामिल हैं। समस्या लेकर जब बाऊजी के सामने पहुंचती हैं तो इनके कार्यों को प्राथमिकता दी जाती है।

By Rahul SrivastavaEdited By: Publish:Tue, 28 Sep 2021 05:37 PM (IST) Updated:Tue, 28 Sep 2021 05:37 PM (IST)
हाल बेहाल/माननीय के पति की 'उतर' गई
गोरखपुर का नगर निगम कार्यालय। फाइल फोटो

गोरखपुर, दुर्गेश त्रिपाठी : सफाई महकमे में एक महिला माननीय क्षेत्र की समस्याओं को लेकर हमेशा संघर्ष करती रहती हैं। बैठकों में बोलने वाली कुछ महिला माननीयों में यह भी शामिल हैं। समस्या लेकर जब बाऊजी के सामने पहुंचती हैं तो इनके कार्यों को प्राथमिकता दी जाती है, लेकिन एक दिन भारी गड़बड़ हो गई। माननीय के पति ने रात में एक अफसर को फोन लगा दिया। आवाज लड़खड़ा रही थी तो अफसर ने फोन मातहत को पकड़ा दिया। मातहत ने सुबह बात करने को कहा लेकिन माननीय के पति होने का गुमान और सिर पर चढ़ी शराब से जुबां खामोश होने का नाम नहीं ले रही थी। मार डालूंगा-काट डालूंगा जैसी बातें कई बार बोलते गए। यहां तक कह दिया कि आ जाऊंगा तो फिर समझ जाना। काफी देर से बर्दाश्त कर रहे मातहत का धैर्य जवाब दे दिया तो फिर कहानी बन गई। माननीय को बाद में माफी मांगना पड़ा।

नेतागिरी में घिर गए छोटे माननीय

साइकिल वाली पार्टी के छोटे माननीय जनता की समस्याएं दूर कराने में अब तेजी से जुटे हुए हैं। जब सत्ता थी तब मिस काल से भी काम हो जाता था। खैर, एक पन्ने के पत्र पर सात समस्याएं लिखकर बड़े साहब से मुलाकात के लिए समय मांगा। दोपहर में मुलाकात का वक्त तय हो गया। पत्र तैयार होने से पहले ही जोर की बारिश हो गई। कई जगह जलभराव हुआ तो छोटे माननीयों को एक और मुद्दा मिल गया। पैंट घुटने तक चढ़ाया, हाथ में जूता लिया और पहुंच गए बड़े साहब के कार्यालय के दरवाजे पर। इतना तक तो ठीक था लेकिन एक मकान को लेकर अपने घर में ही विवाद कर कर कोर्ट-कचहरी दौड़ने वाले छोटे माननीय को न जाने कहां से नेतागिरी याद आ गई। लगा दिया मुर्दाबाद का नारा, साथियों ने चुप कराया लेकिन साहब ने सुन लिया। बाद में इसी मुर्दाबाद पर साहब ने छोटे माननीय को खूब घेरा।

डाक्टर साहब, आप बीमार क्यों पड़ते हैं

डाक्टर साहब की पहले से ही ज्यादातर से पटती नहीं थी। छोटे माननीय लगातार कार्यप्रणाली पर सवाल उठा रहे थे। निजाम बदला तो डाक्टर साहब ने पहले शोषण का आरोप लगाया, फिर चाय पर चर्चा के बाद काम में जुट गए। अपना दर्द भी नहीं बताते क्योंकि जानते हैं, दीवारों के भी कान होते हैं। अब बरहिमन चुप ह्वै बैठिए, देखि दिनन को फेर, जब नीके दिन आइहैं बनत न लगिहैं देर' के सूत्र वाक्य को आत्मसात कर लिया है। एक दिन बड़े साहब के कमरे में पहुंचे तो 'काले हैं तो क्या हुआ दिलवाले हैं' वाले छोटे माननीय बैठे मिल गए। छोटे माननीय क्षेत्र की समस्याओं पर साहब से चर्चा कर रहे थे। डाक्टर साहब को देखते ही काम की बात कहने लगा। डाक्टर साहब ने बीमार होने का हवाला दिया तो बोल पड़े, डाक्टर साहब आप बीमार क्यों पड़ते हैं। यह सुनकर बड़े साहब भी हंस पड़े।

आइएएस हैं या आइपीएस अफसर

सफाई महकमे वाले बड़े साहब को भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं होता है। लेन-देने की बू आती है तो साहब का माथा गरम हो जाता है। फैसला आन द स्पाट कर देते हैं। यही वजह है कि ऊपर लेवल पर अब लेन-देन की बात कम होती है, सिर्फ काम की ही बात होती है। एक दिन एक महिला मकान पर नाम दर्ज कराने बड़े साहब के सामने पहुंची। बताया कि बरगद के पेड़ के नीचे रहने वाले युवक ने उससे रुपये ले लिए और काम भी नहीं कराया। इतना सुनते ही बड़े साहब आपे से बाहर हो गए। तत्काल प्रवर्तन बल के जवानों को बुलाया और बाहरियों को पकड़ने के निर्देश दिए। पांच मिनट में ही जवान एक युवक को लेकर हाजिर भी हो गया। पता चला कि युवक ने एक महिला से दो सौ रुपये लिए हैं। एक अफसर बोले, बड़े साहब हैं तो आइएएस लेकिन तेवर आइपीएस वाले हैं।

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