कैंसर से जीता जंग, पत्नी व बच्चों के हौसला बढ़ाने से उबरने का मिला मौका Gorakhpur News

गुटखे के सेवन से मुंह में कैंसर होने से जीवन से निराश हो चुके सुधाकर उपाध्याय परिवार के हौसले और खुद की हिम्मत से कैंसर से जंग जीत चुके हैं। परिवार में अब खुशहाली वापस आ रही है।

By Rahul SrivastavaEdited By: Publish:Fri, 26 Feb 2021 03:10 PM (IST) Updated:Fri, 26 Feb 2021 05:28 PM (IST)
कैंसर से जीता जंग, पत्नी व बच्चों के हौसला बढ़ाने से उबरने का मिला मौका Gorakhpur News
जौरा बाजार में पान की दुकान पर लोगों को जागरूक करते सुधाकर उपाध्याय।

अनिल पाठक, गोरखपुर : गुटखे के सेवन से मुंह में कैंसर होने से जीवन से निराश हो चुके सुधाकर उपाध्याय परिवार के हौसले और खुद की हिम्मत से कैंसर से जंग जीत चुके हैं। परिवार में अब खुशहाली वापस आ रही है और वह लोगों को तंबाकू, गुटखा, सिगरेट से दूर रहने की सलाह दे रहे हैं। 50 वर्षीय सुधाकर उपाध्याय कुशीनगर जिले के फाजिलनगर विकास खंड के जौरा विशुनपुरा गांव के रहने वाले हैं। जनवरी, 2018 में उनके मुंह में घाव हो गया। हनुमान प्रसाद पोद्धार हास्पिटल गोरखपुर में जांच कराई।

माउथ कैंसर बताकर डाक्‍टर ने दी आपरेशन की सलाह

यहां माउथ कैंसर बता डाक्‍टर ने आपरेशन कराने की सलाह दी। वह बताते हैं कि इसके बाद इलाज कराने राममनोहर लोहिया अस्पताल लखनऊ गए, जहां दोबारा जांच में कैंसर की पुष्टि हुई। वहां 23 अप्रैल, 2018 को आपरेशन कराया। अब भी प्रत्येक तीन माह पर चेकअप कराने लखनऊ जाते हैं। पहले दवा में 60 से 70 हजार रुपये खर्च होते थे, अब दवा पर 31 हजार छह सौ रुपये व्यय होता है। बीमारी से उबरने के बाद संकल्प लिया कि लोगों को जागरूक करेंगे। घर निकलने पर आते-जाते चौक-चौराहों व बाजारों में लोगों को बीमारी के बारे में बताते हैं। तंबाकू, शराब व सिगरेट से दूर रहने की बात करते हैं।

ऐसे पड़ी लत

बकौल सुधाकर वर्ष 2005 में क्षेत्र में हैजा का प्रकोप था, जिसमें घर के सभी लोग पीड़‍ित थे। उस समय बदबू से बचने के लिए लौंग व सोपारी खाना शुरू किया। धीरे-धीरे यह बढ़ते हुए पान, तंबाकू व गुटखा तक पहुंच गया, जो आदत में शुमार हो गया। बिना इसके रहा ही नहीं जाता था। नवंबर, 2017 में जबड़े में घाव बनना शुरू हुआ। कई जगह दिखाया, लेकिन ठीक नहीं हुआ। बाद में आपरेशन कराना पड़ा।

पत्नी व बच्चों संग रिश्तेदारों ने किया प्रोत्साहित

सुधाकर कहते हैं कि इसकी जानकारी होने पर मैं अपने जीवन से एकदम निराश हो गया तो चचेरे भाई प्रभुनंद उपाध्याय ने हौसला बढ़ाया और कहा कि ठीक हो जाएगा। हिम्मत हारने की जरूरत नहीं है और मुझे लखनऊ जाने को कहा। इसके बाद पत्नी शीला देवी व बेटे पवन व आलोक इलाज के लिए लखनऊ राममनोहर लोहिया अस्पताल ले गए। आपरेशन के एक हफ्ता बाद डिस्चार्ज कर दिया गया। किराये पर कमरा लेकर डेढ़ महीने तक सेकाई कराता रहा। तीन अगस्त, 2018 को डिस्चार्ज होकर घर आया। उस समय पौने दो लाख रुपये खर्च हुए थे। इसके बाद चिकित्सक एक-एक महीने पर चेकअप करते रहे। अब दो से ढाई महीने के अंतराल पर जाना पड़ता है।

खर्च देख बड़ा बेटा पढ़ाई छोड़ कमाने गया पंजाब

कैंसर के इलाज में हो रहे खर्च को देखते हुए बड़ा बेटा पवन बीच में पढ़ाई छोड़ पंजाब के भंटिडा में निजी कंपनी में नौकरी चला गया और वेतन में से बचाकर इलाज के पैसे भेजता था। अब लखनऊ में वकालत की पढ़ाई कर रहा है।

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