अर्जुन अवार्डी प्रेम माया की आंखों में कायम है सोने की चमक, एशियाड में जीता था स्वर्ण पदक
चार मार्च 1951 को नई दिल्ली में एशियाई खेलों के आयोजन की शुरुआत के परिप्रेक्ष्य में पूर्वोत्तर रेलवे की पूर्व सहायक क्रीड़ाधिकारी प्रेम माया ने 9वें एशियाड के बारे में दैनिक जागरण से खुलकर बातचीत की। जीत के उन पलों कों याद करते हुए उन्होंने अनुभव बताया।
गोरखपुर, जेएनएन। अर्जुन अवार्डी व ओलंपियन प्रेम माया की आंखों में आज भी 1982 के एशियाड में मिले गोल्ड मेडल की चमक कायम है। 38 साल बाद भी राउण्ड राबिन लीग मुकाबलों को याद कर उनका चेहरा खिल उठता है। वह पहले मैच में ही घायल हो गई थीं। लेकिन हिम्मत नहीं हारी और फाइनल तक मैदान में डंटी रही। सुरक्षा को देखते हुए हाथ और सिर पर बैंड पहनना शुरू किया, जो बाद में चलकर फैशन बन गया।
एशियाड की स्वर्ण पदक विजेता भी रही हैं हाकी ओलंपियन प्रेम माया
चार मार्च 1951 को नई दिल्ली में एशियाई खेलों के आयोजन की शुरुआत के परिप्रेक्ष्य में पूर्वोत्तर रेलवे की पूर्व सहायक क्रीड़ाधिकारी प्रेम माया ने 9वें एशियाड के बारे में दैनिक जागरण से खुलकर बातचीत की। जीत के उन पलों कों याद करते हुए उन्होंने बताया कि भारत ने अपने सभी अहम मुकाबले जीते थे। शुरुआती मुकाबलों में तो हांगकांग को 22-0 और सिंगापुर को 21-0 से हरा दिया। लेकिन कोरिया और जापान के साथ मुकाबले कांटे के रहे। इसके बाद भी भारतीय टीम ने अपना दबदबा कायम रखा। कोरिया को 6-2 से हराने के बाद अंतिम मैच में जापान को 5-1 से रौंद दिया। राजीव गांधी ने विजेता टीम की खिलाडिय़ों को मेडल पहनाया था। उस क्षण को याद कर मन आज भी खुशी से झूम उठता है।
पूर्वांचल में माहौल तैयार करने की नहीं, बरकरार रखने की जरूरत
हाकी के वर्तमान माहौल के सवाल पर 1980 के मास्को ओलंपिक में भारतीय महिला टीम की तरफ से शानदार प्रदर्शन करने वाली प्रेम माया चिंतित हो उठीं। उन्होंने कहा कि पूर्वांचल में माहौल तैयार करने की नहीं बल्कि बरकरार रखने की जरूरत है। इसके लिए सरकार ही नहीं खेल और शिक्षण संस्थाओं को भी आगे आना होगा। नर्सरी तैयार करनी होगी। तब एशियाड में तो भारतीय टीम ने घास के मैदान पर भी गोल्ड जीत लिया था। अब बहुत मुश्किल है। प्रतिभाओं को तराशने और संसाधनों को मजबूत करने के साथ एस्ट्रोटर्फ मैदान तैयार करना होगा।