कुशीनगर में विश्व कल्याण की कामना के लिए अनुष्ठान

कुशीनगर में तिब्बती लामाओं ने नौ सितंबर को प्रारंभ की थी पूजा इस आयोजन में आनलाइन शामिल हुए इटली फ्रांस जर्मनी सहित कई देशों के श्रद्धालु विदेशों में श्रद्धालुओं ने की विधिवत पूजा आराधना लामा ने बताया कि बज्रयान समुदाय की विशेष पूजा का महत्व।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 21 Sep 2021 05:00 AM (IST) Updated:Tue, 21 Sep 2021 05:00 AM (IST)
कुशीनगर में विश्व कल्याण की कामना के लिए अनुष्ठान
कुशीनगर में विश्व कल्याण की कामना के लिए अनुष्ठान

कुशीनगर: कुशीनगर के बिरला मंदिर में चोकलिग बुद्धिस्ट मोनास्ट्री, कांगड़ा (हिमांचल प्रदेश) के तत्वावधान में विश्व शांति व कोरोना की समाप्ति के लिए लामाओं द्वारा की जा रही दस दिवसीय फामा निथिक द्रुपछेन पूजा रविवार की देर शाम संपन्न हो गई। यह पूजा एप के माध्यम से विश्व के दस देशों में लाइव दिखाई गई और वहां के श्रद्धालुओं ने विधि-विधान से पूजा की।

लामा रिपोछे ओजेन तोब्जे के निर्देशन में दस दिवसीय पूजा कुशीनगर में नौ सितंबर को प्रारंभ हुई थी। तोब्जे ने बताया कि अमेरिका, इटली, फ्रांस, जर्मनी,आस्ट्रेलिया, ताइवान, हांगकांग, रूस, नेपाल, भूटान स्थित केंद्र इस पूजा से लाइव जुड़े हुए थे। बताया कि यह तिब्बती परंपरा के बज्रयान संप्रदाय का उच्च स्तरीय पूजा है। इसमें भगवान बुद्ध के समक्ष शक्ति की देवी तारा की पूजा की जाती है। तोब्जे 20 वर्षों से क्रमश: विश्व के 10 देशों में जाकर यह पूजा संपन्न कराते हैं। वहां इन्हें उन देशों के केंद्राध्यक्षों द्वारा आमंत्रित किया जाता है। पूजा में भारतीय लामाओं के अतिरिक्त आस्ट्रेलिया, रूस आदि देशों के श्रद्धालु भी शामिल रहे। अगली पूजा बिहार के वैशाली में होगी।

मधु पूर्णिमा पर भिक्षुओं को दिया गया संघ दान

कुशीनगर में भाद्रपद पूर्णिमा के अवसर पर सोमवार को श्रद्धालुओं ने बौद्ध भिक्षुओं को संघ दान देकर आशीष प्राप्त किया। इस आयोजन में दान की सामग्री ज्वाइंट मजिस्ट्रेट पूर्ण बोरा ने भी भेजी।

म्यांमार बुद्ध मंदिर के प्रभारी भंते नंदका ने कहा कि बौद्ध धर्म में प्रत्येक पूर्णिमा का महत्व है। बुद्ध के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाएं पूर्णिमा को हुई थीं। सिद्धार्थ (बुद्ध) का जन्म,ज्ञान प्राप्ति और महापरिनिर्वाण वैशाख पूर्णिमा को हुआ था। बुद्ध के समय में एक बार भिक्षुओं में विवाद हो गया। बुद्ध के हस्तक्षेप से भी विवाद शांत नहीं हुआ तो वह अकेले पारिलेयक वन (कौशांबी) चले गए। वन में भाद्रपद पूर्णिमा को ही एक बंदर ने बुद्ध को मधु दान दिया और हाथी ने केले का गुच्छा भेंट किया था। इसीलिए इसे मधु पूर्णिमा भी कहा जाता है। आज के दिन भिक्षुओं को मधु दान देने की परंपरा रही है। कार्यक्रम के अंत में भिक्षुओं नें दानदाताओं (उपासकों) के मंगल के लिए सूत्रपाठ किया। फ्रा कित्तिफान, भंते शीलवंश, रंगी गुप्त, भृगुराशन गुप्त,टीके राय, मोरिन राय, पन्नालाल, नीतेश यादव, रामनगीना, विवेक गोंड, प्रेम गोंड, मौसम आदि उपस्थित रहे।

chat bot
आपका साथी