World Elder Abuse Prevention Awareness Day: कोरोना काल में अपने भी अपने नहीं हुए, संवेदनाएं हुईं तार-तार
विश्व बुजुर्ग दुर्व्यवहार रोकथाम जागरुकता दिवस वह अवसर है जब हम कुछ ऐसी प्रेरणादायी सच्ची कहानियों को सामने लाएं जिसमें उस दुर्व्यवहार को भी उजागर करें जिसके चलते कुछ बुजुर्ग मौत के बाद भी अपनों की संवेदना नहीं पा सके।
गोरखपुर, जेएनएन। आधुनिकता और विकास की अंधी दौड़ ने अगर किसी को व्यवस्था को सर्वाधिक चोट पहुचाई है तो वह है सामाजिक व्यवस्था। रिश्तों की डोर कमजोर हुई तो संवेदनाएं उपेक्षित होकर तार-तार हो गई हैं। इसमें सर्वाधिक नुकसान बुजुर्गों का हुआ है क्योंकि कभी अधिक उम्र के चलते सम्मान पाने वाले इन बजुर्गों को बहुत बार अपमानित भी होना पड़ता है। विश्व बुजुर्ग दुर्व्यवहार रोकथाम जागरुकता दिवस वह अवसर है जब हम कुछ ऐसी प्रेरणादायी सच्ची कहानियों को सामने लाएं, जिसमें बच्चों के साथ से बुजुर्गों का बुढ़ापा सध गया है और उस दुर्व्यवहार को भी उजागर करें, जिसके चलते कुछ बुजुर्ग मौत के बाद भी अपनों की संवेदना नहीं पा सके। कोरोना काल में बुजुर्गों के साथ व्यवहार के दोनों ही तरह अनुभव सामने आए।
बुजुर्गों की सेवा कर मिसाल बने यह लोग
शहर के मशहूर नेत्र रोग विशेषज्ञ डा. शशांक कुमार की 96 वर्षीय मां गिरेंद्र कुमारी भी कोरोना के दूसरे फेज में पूरे परिवार के साथ संक्रमित हुईं। परिवार के सभी लोग अपने इलाज को लेकर सतर्क तो हुए लेकिन उम्र के चलते सभी को गिरेंद्र कुमारी के स्वास्थ्य की सर्वाधिक चिंता थी। लिहाजा संक्रमण की चिंता किए बिना उनकी जमकर सेवा की। नतीजतन उम्र के इस पड़ाव भी उन्होंने कोरोना की जंग बेहद आसानी से जीत ली। गोला क्षेत्र के हरपुर निवासी रिटायर पुलिस अधिकारी रामधारी सिंह भी ऐसे ही एक उदाहरण हैं, जो 92 की उम्र में परिवार के स्नेह के जरिए कोरोना को मात देने में कामयाब हुए। पाजिटिव होने से लेकर निगेटिव होने तक संक्रमण की चिंता किए बिना पूरा परिवार उनकी सेवा में लगा रहा। वह बताते हैं कि यदि परिवार ने उनका साथ नहीं दिया होता तो वह उम्र के इस पड़ाव पर इतनी बड़ी लड़ाई नहीं लड़ पाते।
इनकी हरकतों से टूट गई रिश्तों की डोर
सूर्यकुंड कालोनी में रहने वाली एक 50 वर्षीय महिला की कोरोना संक्रमण के चलते बीते दिनों मौत हो गई। पति भी संक्रमित थे, सो अंतिम संस्कार के लिए उन्होंने घर से निकलना उचित नहीं समझा। भांजे को बुलाया गया लेकिन उसने बजाय खुद आगे आने के अंतिम संस्कार के लिए महापौर को फोन कर दिया। अंत में परिवार के रहते हुए उस महिला के शव का अंतिम संस्कार लावारिस के तौर नगर निगम द्वारा कराया गया। ऐसी ही मर्माहत करने वाली एक घटना आर्यनगर दुर्गा मंदिर की है। 65 वर्षीय कोरोना संक्रमित एक महिला पहले बेटे-बेटियों की उपेक्षा के चलते इलाज के बिना मर गई। मरने के बाद अंतिम संस्कार के लिए जब बेटे-बेटियों को बताया गया तो उन्होंने संक्रमण की दुहाई देते हुए मां के शव से अपना पीछा छुड़ा लिया। अंत में भरापुरा परिवार होते हुए भी उस महिला के अंतिम संस्कार का जिम्मा नगर निगम को संभालना पड़ा।
जब शव रखकर चले गए स्वजन
राजघाट स्थित श्मशान घाट पर आठ ऐसे मामले भी सामने आए, जब कोरोना संक्रमण से हुई मौत के बाद स्वजन किसी तरह शव को लेकर घाट आए और बिना अंतिम संस्कार किए वापस लौट गए। जाते वक्त प्रवर्तन दल के लोगों से यह कहते गए कि उनका काम पूरा हो गया अब अंतिम संस्कार नगर निगम की जिम्मेदारी है। कुछ ऐसे भी असंवेदनशील स्वजन शव लेकर आए, जिन्होंने यह सूचना देना भी उचित नहीं समझा और बिना सूचना दिए ही शव छोड़कर चले गए।