किताबें हाथ में होती हैं तो दिल को छू जाते हैं शब्द Gorakhpur News

गोरखपुर-वाराणसी राजमार्ग पर स्थित भौवापार में पुस्तकालय की स्थापना श्याम लाल शुक्ल ने अपने साथी अमृतनाथ त्रिपाठी प्रेम नारायण तिवारी प्रोफेसर रामकृष्ण जायसवाल डॉ. जगतनिवाश तिवारी आदि के साथ 1964 में की थी। 400 नियमित सदस्यों वाला यह पुस्तकालय अब सिर्फ रविवार को पढऩे के लिए खुल रहा है।

By Satish Chand ShuklaEdited By: Publish:Fri, 23 Apr 2021 04:09 PM (IST) Updated:Fri, 23 Apr 2021 07:11 PM (IST)
किताबें हाथ में होती हैं तो दिल को छू जाते हैं शब्द Gorakhpur News
नेहरू अध्ययन केंद्र में पुस्‍तकों का दृश्‍य, जागरण।

गोरखपुर, जेएनएन। डिजिटल, आनलाइन और ई-लाइब्रेरी के इस दौर में आज भी पाठकों का एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है जो किताबों को छूकर शब्दों को महसूस करता है। कहता है कि किताबें जब हाथ में होती हैं शब्द तभी दिल को छूते हैं। शब्द छूकर पढऩे का यह अहसास इस 'अछूत से दौर में भी जारी है। सुदूर गांव में लगभग 20 हजार पुस्तकों के संग्रह वाला 59 साल पुराना नेहरू अध्ययन केंद्र पुस्तक प्रेमियों की निश्शुल्क सेवा के लिए कोरोना काल में तत्पर है। 400 नियमित सदस्यों वाला यह पुस्तकालय इस समय सिर्फ रविवार को पढऩे के लिए खुल रहा है। बाकी दिन लोग यहां से किताबें ले जाकर घर पढ़ रहे हैं।

गोरखपुर-वाराणसी राजमार्ग पर स्थित भौवापार में पुस्तकालय की स्थापना श्याम लाल शुक्ल ने अपने साथी अमृतनाथ त्रिपाठी, प्रेम नारायण तिवारी, प्रोफेसर रामकृष्ण जायसवाल, डॉ. जगतनिवाश तिवारी आदि के साथ 1964 में की थी। उस वक्त उनका मकसद न केवल खुद के ज्ञान को बढ़ाना था बल्कि आसपास के युवाओं को भी पुस्तकों और पढ़ाई के प्रति प्रेरित करना था। आगे चलकर श्याम लाल इंटर कालेज में शिक्षक बन गए तो लाइब्रेरी को समृद्ध करने में जुट गए। लाइब्रेरी में अधिक से अधिक किताबें हो सकें इसके लिए उन्होंने 'पुस्तक मांग सप्ताह चलाया। इसके तहत शहर के गण्यमान्य और समृद्ध लोगों से पुस्तकें मांगने का काम शुरु किया। धीरे-धीरे लाइब्रेरी में पुस्तकों संग्रह बढऩे लगा। आगे चलकर पुस्तकालय को राजा राम मोहन राय लाइब्रेरी फाऊंडेशन से केंद्र व राज्य सरकार की तरफ से पुस्तकीय सहायता मिली। योजना के तहत पुस्तकालय को कुछ आलमारियां भी उपलब्ध कराई गईं, लेकिन पुस्तकों की संख्या के हिसाब से वह नाकाफी है।

हर विषय की है पुस्तक

नेहरू अध्ययन केंद्र में साहित्य, दर्शन, धर्म, उपन्यास, कविता, कहानी ही नहीं विज्ञान जैसे गूढ़ विषय वाली भी हजारों किताबें हैं। लेटर्स आफ चीफ मिनिस्टर, इंग्लिश साइक्लोपीडिया , प्राचीन भारत में रामायण का विकास, ज्ञान-विज्ञान का प्रमाणिक कोष विश्व भारती जैसी पुस्तकें लोग ज्यादा पढऩे आते हैं।

कोरोना काल में भी सेवा जारी

पुस्तकों के कद्रदान शहर से चलकर गांव में किताबें पढऩेजाते हैं। हालांकि संक्रमण के इस दौर में कोरोना वायरस का फैलाव न हो इसके लिए व्यवस्था में बदलाव करते हुए लाइब्रेरी में बैठाने की बजाय किताबें घर ले जाकर पढऩे के लिए दी जा रही हैं। कोविड काल में पुस्तकालय सप्ताह में एक दिन रविवार को दोपहर दो से शाम पांच बजे तक खुलता है। इस दौरान पाठक आते हैं और किताबें घर लेकर जाकर पढ़ते हैं।

नेहरू अध्ययन केंद्र के संचालक आलोक शुक्ला का कहना है कि एक बड़े हाल, तीन कमरे और बरामदे वाले भवन में संचालित पुस्तकालय को सरकार से कोई आॢथक अनुदान नहीं मिलता है। यह पूर्णतया जनसहयोग से संचालित है। पाठकों से कोई शुल्क नहीं लिया जाता। प्रबंध समिति अपने सीमित संसाधनों में इसका संचालन कर रही है। अनुरोध यही करते हैं कि पुस्तक पढऩे के बाद जरूर लौटा दें, जिससे कि दूसरे भी लाभान्वित हो सकें।

क्‍या कहते हैं पाठक

नेहरू अध्ययन केंद्र के नियमित पाठक अशोक तिवारी का कहना है कि नेहरू अध्ययन केंद्र  नई पीढ़ी को किताबों की ओर वापस लाने में लगा है पुस्तकालय नयी पीढ़ी को किताबों की दुनिया में वापस लाने के लिए समय समय पर सेमिनार, गोठयिों आदि कार्यक्रमों का आयोजन करता रहता है। शिक्षक ओम प्रकाश का कहना है कि जब लोगों ने किताबों से दूरी बना ली है और ज्ञान का जरिया व्हाट्सएप को बना लिया है जहां सच और झूठ का ऐसा संजाल फैला है जिससे निकलना मुश्किल हो गया है, ऐेसे में यह केंद्र अंधकार के धुंध को छांटने का काम कर रहा है। पाठक उमेश चौरसिया का कहना है कि इस लाइब्रेरी में सभी बड़े और नामी लेखकों के उपन्यास, कहानी, कविता संग्रहों और बाल साहित्य का विशाल संग्रह है। ब'चों से लेकर बुजुर्गों तक के लिए यहां कुछ न कुछ जरूर मिल जाता है।

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