Emergency in the mirror of the past: देश में हर तरफ अचानक हो गया भय और दहशत का माहौल

गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो.चित्तरंजन मिश्र आपात काल को याद करते हुए कहते है कि वातावरण में एक अजीब सी सनसनी थी। युवा जनसंघ का मैं मंडल स्तर का पदाधिकारी था। घर के लोग बराबर चेताते रहते थे

By Satish Chand ShuklaEdited By: Publish:Fri, 25 Jun 2021 06:30 PM (IST) Updated:Fri, 25 Jun 2021 06:30 PM (IST)
Emergency in the mirror of the past: देश में हर तरफ अचानक हो गया भय और दहशत का माहौल
गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो.चित्तरंजन मिश्र का फाइल फोटो, जागरण।

गोरखपुर, जेएनएन। गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो.चित्तरंजन मिश्र आपातकाल की घोषणा को याद करते हुए कहते हैं कि मैं उस समय बीए का विद्यार्थी था और राजनीतिक रूप से थोड़ा सक्रिय भी था। आपातकाल लागू होते ही अचानक भय व दहशत का माहौल कायम हो गया। लोकतंत्र को कुचलने का सत्ता का जो क्रूर आतंक होता है वह प्रत्यक्ष दिखाई दे रहा था। वातावरण में एक अजीब सी सनसनी थी। युवा जनसंघ का मैं मंडल स्तर का पदाधिकारी था। घर के लोग बराबर चेताते रहते थे कि संगठन से जुड़े जो भी रजिस्टर व अन्य कागजात हैं उसे नदी में फेंक दो नहीं तो गिरफ्तारी हो जाएगी। तुम्हारे साथ और भी जेल जाएंगे। शुरू के तीन-चार दिन काफी भयावह थे। बड़े-बड़े नेताओं की गिरफ्तारी की रोज खबरें आती थीं। इससे और दहशत बढ़ जाती थी।

हर जगह थी हताशा की स्थिति : प्रो श्रीप्रकाश मणि

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय अमरकंटक मप्र के कुलपति प्रो.श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी आपातकाल की याद कर सिहर जाते हैं। वह बताते हैं कि जब आपातकाल की घोषणा हुई उस समय मैं इलाहाबाद विवि में बीए का विद्यार्थी था। रेडियो से अचानक जानकारी मिली तो हम सभी आश्चर्यचकित, अचंभित व भयग्रस्त हो गए। सुबह समाचार पत्रों के जरिए भी इसकी गंभीरता की अनुभूति हुई। लगा की लोकतंत्र अचानक थम गया और अभिव्यक्ति की आजादी पर विराम लग गया। हर आदमी सहमा-सहमा रहने लगा। ऐसा लग रहा था कि सभी खुफियातंत्र की ²ष्टि में हैं। यदि किसी ने अन्यथा भाव व्यक्त किया तो उसे गंभीर कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। छात्रावास के बाहर विवि रोड पर भी हताशा की स्थिति थी कोई हलचल नहीं थी। लोकतांत्रिक व्यवस्था में सन्नाटा की स्थिति उत्पन्न हो गई थी। विचार का विषय यही होता था कि कल क्या होगा, लेकिन एक विश्वास था कि तनाव का दौर बहुत लंबा नहीं चलता है। इसका भी अंत होगा ही होगा।

गिरफ्तार होने के बाद भी एआइआरएफ के अध्यक्ष चुने गए थे जार्ज फर्नांडीज

इमरजेंसी को याद करते हुए 104 वर्षीय आल इंडिया रेलवे मेंस फेडरेशन (एआइआरएफ) के संयुक्त महामंत्री व एनई रेलवे मजदूर यूनियन के महामंत्री केएल गुप्त ने बताया कि 2 मई 1974 को राष्ट्रव्यापी रेल हड़ताल के बाद से ही देशभर में सरकार विरोधी माहौल तैयार हो गया था। आठ मई को शुरू होने वाली रेल हड़ताल दो मई को एआइआरएफ के अध्यक्ष जार्ज फर्नांडीज की गिरफ्तारी के बाद शुरू हो गयी। पुलिस ने मुझे भी जेल में डाल दिया। 23 दिन तक रेल संचालन ठप रहा। ठीक एक साल बाद 25 जून 1975 को इमरजेंसी लागू हो गई। सरकार ने डर के मारे जार्ज फर्नांडीज को फिर से गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद भी एआइआरएफ की गतिविधियां चलती रहीं। नवंबर में गुवाहाटी में एआइआरएफ का वार्षिक अधिवेशन हुआ, जिसमें पदाधिकारियों ने सर्वसम्मति से जेल में बंद जार्ज फर्नांडीज को फिर से फेडरेशन का अध्यक्ष बना दिया। इमरजेंसी के बाद जेल से छूटने पर फेडरेशन ने उनका जोरदार स्वागत किया था। उस समय में मैं फेडरेशन का कार्यकारी अध्यक्ष था।

चलती रहीं ट्रेनें, लोगों ने बंद कर दिया था कुर्ता-पाजामा पहनना

77 वर्षीय एनई रेलवे मजदूर यूनियन के पूर्व केंद्रीय अध्यक्ष एससी त्रिपाठी ने बताया कि इमरजेंसी में देश के सभी नागरिक और संवैधानिक अधिकारों को समाप्त कर दिया गया था। संयोगवश इमरजेंसी से कुछ माह पहले ही मैं उत्तर रेलवे के जोधपुर मंडल से स्थानांतरित होकर पूर्वोत्तर रेलवे के वाराणसी मंडल के गोरखपुर पूर्व में गार्ड के पद पर तैनात हुआ था। गोरखपुर में तैनात होने के बाद मैं एनई रेलवे मजदूर यूनियन से जुड़ गया। इसी दौरान इमरजेंसी लग गई। कप्तानगंज शाखा मंत्री व कार्यकारिणी सदस्य के रूप में मुझे भी आल इंडिया रेलवे मेंस फेडरेशन के अधिवेशन में गुवाहाटी जाने का अवसर मिला। पदाधिकारियों ने आपातकाल की ङ्क्षनदा करते हुए अधिवेशन के समापन की घोषणा कर दी। देशभर में तमाम नेताओं के साथ एआइआरएफ के पदाधिकारियों की भी गिरफ्तारी शुरू हो गई। लोगों ने कुर्ता और पाजामा पहनना बंद कर दिया था। हालांकि, ट्रेनों का संचालन होता रहा।

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