गोरखपुर में आकार ले रहा वन्य जीवों का संसार Gorakhpur News
गोरखपुर के रामगढ़ ताल के किनारे अशफाकउल्लाह खां के नाम से बन रहे इस चिडिय़ाघर में जानवरों के बाड़े तो करीब-करीब तैयार हो ही चुके हैं उन्हें लाने की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है।
गोरखपुर, जेएनएन। वह दिन अब दूर नहीं जब गोरखपुर भी देश व प्रदेश के उन महत्वपूर्ण जिलों में शामिल होगा, जहां चिडिय़ाघर है। निर्माण प्रक्रिया अंतिम चरण में है, सो चिडिय़ाघर आकार लेता दिखने लगा है। रामगढ़ ताल के किनारे महान क्रांतिकारी अशफाकउल्लाह खां के नाम से बन रहे इस चिडिय़ाघर में जानवरों के बाड़े तो करीब-करीब तैयार हो ही चुके हैं, उन्हें लाने की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है। यहां रखे जाने वाले तीन बब्बर शेर गुजरात से इटावा सफारी तक आ चुके हैं तो दो गैंडों को असम से लाने की औपचारिकता पूरी की जा रही है। हालांकि निर्माण पूरा होने तक यह गैंडे लखनऊ चिडिय़ाघर में रहेंगे। चिडिय़ाघर में कुल 387 वन्य जीवों को लाए जाने की योजना है, जिनमें ज्यादातर जीवों के लिए करार प्रक्रिया पूरी कर ली गई है।
मंदिर का एहसाह करा रहा है चिडि़याघर का प्रवेश द्वार
121.342 एकड़ भूमि पर 234.37 करोड़ रुपये से तैयार हो रहा शहीद अशफाकउल्लाह खां प्राणि उद्यान प्रदेश का पहला ऐसा चिडिय़ाघर होगा, जहां मनोरंजन और रोमांच का सिलसिला टिकट लेने के साथ ही शुरू हो जाएगा। चिडिय़ाघर का एंट्रेंस प्लाजा जानवरों तक पहुंचने से पहले ही दर्शकों का न केवल भरपूर मनोरंजन कर देगा बल्कि उनका वन्य जीव ज्ञान भी समृद्ध करेगा। 4013 वर्ग मीटर के एंट्रेंस प्लाजा का प्रवेश द्वार गोरखनाथ मंदिर में प्रवेश का अहसास कराएगा, क्योंकि द्वार का वास्तुशिल्प मंदिर सा ही है। प्लाजा में प्रवेश करते ही ओपेन एयर थिएटर मिलेगा, जिसमें वन्य जीव से जुड़ी जानकारी और जागरूकता से जुड़े कार्यक्रम निरंतर देखने को मिलेंगे। स्कूली बच्चों के लिए लेजर लाइट-शो का आयोजन भी समय-समय इस थिएटर में किया जाएगा। इस थिएटर में 100 से अधिक दर्शकों के बैठने की व्यवस्था होगी। प्लाजा का दूसरा आकर्षण इंटरप्रेटेशन सेंटर होगा, जिसमें पार्क, सेंचुरी, चिडिय़ाघर में फर्क बताया जाएगा, साथ ही चिडिय़ाघर के इतिहास, प्रारूप, जानवरों आदि की जानकारी भी विस्तार दी जाएगी। एंट्रेंस प्लाजा में एक 4डी थिएटर भी होगा, जिसमें एक साथ 48 लोग बैठकर वन्य जीवों पर तैयार किए गए शो का लुत्फ उठा सकेंगे। शो और थिएटर का प्रारूप ऐसा होगा कि उसे देखने के दौरान जंगल में जानवरों के बीच होने का अहसास होगा। थिएटर में चारो तरफ से आने वाले जानवरों और हवा की आवाज दर्शकों को रोमांचित करेगी। दर्शकों की सुविधा के लिए एटीएम भी लगाए जाएंगे।
चिडिय़ाघर में होगा जंगल सा अहसास
जानवरों को चिडिय़ाघर में जंगल सा माहौल मिले, इसके लिए कुल क्षेत्र के 41 फीसद हिस्से को वन क्षेत्र के रूप में विकसित किया जा रहा है। ऐसा करने के पीछे की एक मंशा यह भी है कि जानवरों को आपस में आई कांटेक्ट न होने पाए और साथ ही वह व उन्हें देखने आने वाले दर्शक जूनोटिक बीमारी से बचे रहें। जूनोटिक बीमारी उसे कहते हैं, जिसमें वैक्टीरिया, वायरस और परजीवी एक से दूसरे जानवर और जानवरों से मनुष्यों के बीच संक्रमित होते हैं। जानवरों को एक-दूसरे की उपस्थिति से दिक्कत न होने पाए, इसके लिए दो बाड़ों के बीच आठ से 10 मीटर का ग्रीन बेल्ट विकसित किया जा रहा है।
इसके अलावा चिडिय़ाघर की अंदर की दीवार से पांच मीटर तक क्षेत्र में ग्रीन वाल बनाई जा रही है, जिससे कि जानकारों को इस बात का अहसास न होने पाए कि वह किसी निश्चित दायरे या शहरी क्षेत्र में हैं।
वेटलैंड में पक्षी विहार वाला प्रदेश का पहला चिडिय़ाघर
गोरखपुर में तैयार हो रहा अशफाकुल्लाह खां चिडिय़ा घर कानपुर और लखनऊ के बाद प्रदेश का तीसरा चिडिय़ाघर है। क्षेत्र के हिसाब से यह कानपुर के बाद दूसरा बड़ा चिडिय़ाघर है। लेकिन वेटलैंड एरिया में पक्षी विहार का अनूठा प्रयोग करने वाला यह प्रदेश का पहला चिडिय़ाघर होगा।
121 एकड़ के चिडिय़ाघर के दायरे में पहले से मौजूद 34 एकड़ वेटलैंड (जलाशय) क्षेत्र को पक्षी विहार के रूप में विकसित किया जा रहा है। चिडिय़ा घर में देशी-विदेशी पक्षियों का ठहराव बढ़ाने के लिए वेटलैंड क्षेत्र में सात माउंड यानी टीले बनाए गए हैं। इनपर पीपल, पाकड़, गूलर, बरगद जैसे वृक्षों के पौधों रोपे गए हैं। चिडिय़ाघर प्रशासन के मुताबिक यह पौधे वृक्ष बनकर पक्षियों के ठहराव के लिए अनुकूल माहौल बनाएंगे। चिडिय़ाघर तक पहुंचने वाले लोग देशी-विदेशी पक्षियों के कलरव का लुफ्त उठा सकें, इसके लिए वेटलैंड से कुछ दूरी पर करीब पौन किलोमीटर की एक सड़क बनाई जा रही है। इस सड़क के एक ओर पक्षी विहार रहेगा तो दूसरी और 24 एकड़ का वनक्षेत्र होगा।
33 बाड़ों में रहेंगे 387 पशु-पक्षी
चिडिय़ाघर में पशु-पक्षी की रिहाइश के लिए 33 बाड़े बनाए गए हैं। इनमें मोर, फीजेंट, लकड़बग्गा, भेडिय़ा, सियार , घडिय़ाल, मगरमच्छ, सांप, कछुआ, इक्वेरियम, फाक्स, लैपर्ड, बाघ, शेर, दरियाई घोड़ा, शाही, खरहा, बटरफ्लाई, भालू, गैंडा के लिए एक-एक, बंदरों और स्माल कैट के लिए तीन-तीन, भालू के लिए दो और हिरन के लिए छह बाड़े तैयार किए जा रहे हैं।
चिडिय़ाघर में मुख्य रूप से होंगे ये जानवर
बब्बर शेर-6, तेंदुआ-6, बाघ-5, गैंडा-2, दरियाई घोड़ा-2, लकड़बग्गा-2, हिमालयन ब्लैक बीयर- 4, स्लॉथ बीयर- 4, स्वाम्प डीयर- 13, हॉग डीयर- 10, ब्लैक बग- 16, बार्किँग डीयर- 7, स्पॉटेड डीयर- 43, बारहसिंहा-14, घडिय़ाल-2, सांभर-18, लोमड़ी-4, सियार-5 भेडिय़ा-5, शाही-6, फिजेंट -2, जेब्रा-4, फिशिंग कैट-4, जंगली बिल्ली-4, लेपर्ड कैट-4, लंगूर- 27, मगरमच्छ-20, घडिय़ाल-6।
ट्वाय ट्रेन और गोल्फ कार्ट में बैठ उठा सकेंगे चिडिय़ाघर का लुत्फ
चिडिय़ाघर बड़ा है, ऐसे में इसे लेकर घबराने की जरूरत नहीं कि एक बार में इसको कैसे देखा जा सकेगा। ट््वाय ट्रेन और गोल्फ कार्ट आपकी इस समस्या का समाधान कर देगा। चिडिय़ाघर में रबर टायर की दो डिब्बे वाली ट्वाय ट्रेन चलाई जाएगी। हर डिब्बे में 20 व्यक्तियों के बैठने की व्यवस्था होगी। इसके लिए ट्रैक तैयार कर लिया गया है। इसके अलावा दो गोल्फ कार्ट का इंतजाम भी हो गया है। एक गोल्फ कार्ट में 10 व्यक्ति बैठ सकेंगे। मांग के मुताबिक ट्रेन के डिब्बों और गोल्फ कार्ट के बढ़ाने जाने का भी इंतजाम है।
10 बाड़ों में देखने को मिलेगी सापों की नौ वेरायटी
चिडिय़ाघर के एक हिस्से में सांपों का संसार भी बसाया जा रहा है। उनके लिए 10 बाड़े बनाए जा रहे हैं, जिसमें नौ प्रजाति के सांपों को रखने का इंतजाम किया जा रहा है। सांपों की बेहतर रिहाइश के लिए उनके बाड़ों में एसी की सुविधा भी दी जा रही है। जिन सांपों को इनमें रखा जाना है, उनमें छह पायथन, चार रसेल वायपर, छह रैट स्नेक, चार किंग कोब्रा, छह कोब्रा, छह चेक कीलबैक, छह बोआ, छह सेंड बोआ, छह पिट वायपर शामिल हैं।
चिडिय़ाघर का निर्माण कार्य अंतिम चरण में हैं।
कार्यदायी संस्था राजकीय निर्माण निगम जैसे ही उसे चिडिय़ाघर प्रशासन को हैंडओवर करेगी, केंद्रीय चिडिय़ाघर प्राधिकरण से अनुमति लेने की प्रक्रिया पूरी करने के बाद जानवरों को लाने का कार्य शुरू कर दिया जाएगा। जिस भव्यता के साथ चिडिय़ाघर का निर्माण किया जा रहा है, उससे पूरा विश्वास है कि यह प्रदेश ही नहीं देश भर पर्यटकों को आकर्षित करेगा। - एनके जानू, निदेशक, अशफाकउल्ला खां प्राणि उद्यान, गोरखपुर।