शहरनामा/क्या देखूं, आइटीएमएस का सिग्नल या दारोगाजी का हाथ
सरकार ने आइटीएमएस के तहत ट्रैफिक सिग्नल लगवाए लेकिन आज भी चलना हाथ के इशारे पर ही पड़ रहा है। कहीं पर दारोगाजी ट्रैफिक का इशारा करते हुए मिल जाते हैैं तो कहीं दारोगाजी के इशारे पर होमगार्ड और सिपाहियों का झुंड हाथ दाएं-बाएं करता दिख जाता है।
गोरखपुर, बृजेश दुबे। गोरखपुर में हैैं तो पैडलेगंज और मोहद्दीपुर चौराहे पर आना-जाना हुआ ही होगा। गोलघर भी जाते होंगे। नहीं रोज तो हफ्ते में दो-तीन बार ही सही। ऐसा है तो ट्रैफिक सिग्नल देखकर गुस्सा भी आता होगा। आए भी क्यों न। सरकार ने करोड़ों रुपये खर्च कर इंट्रीग्रेटेड ट्रैफिक मैनेजमेंट सिस्टम (आइटीएमएस) के तहत ट्रैफिक सिग्नल लगवाए, लेकिन आज भी चलना हाथ के इशारे पर ही पड़ रहा है। कहीं पर दारोगाजी ट्रैफिक का इशारा करते हुए मिल जाते हैैं तो कहीं कोने में खड़े दारोगाजी के इशारे पर होमगार्ड और सिपाहियों का झुंड हाथ दाएं-बाएं करता दिख जाता है। पैडलेगंज पर सिग्नल हरा देखकर इंजीनियर साहब बिना ब्रेक दबाए निकल रहे थे। जैसे ही जेब्रा लाइन तक पहुंचे, दारोगाजी का हाथ बैरियर बनकर खड़ा हो गया। झिड़की भी मिली और चालान की धमकी भी। इंजीनियर साहब सोच रहे कि किसे देखूं, दारोगाजी को या आइटीएमएस के सिग्नल को।
कौन असरदार, व्यवस्था या सामंत बहादुर सरकार
वर्दी बड़ी असरदार होती है। बिरादरी की हो तो असर और सम्मान बढ़ जाता है। गाड़ी में हूटर बजता हो या नीली बत्ती जलती हो, पुलिस लिखा हो या अफसर का पदनाम, इन हालात में न ट्रैफिक सिग्नल का मतलब रह जाता है, न ही व्यवस्था का। सब ध्वस्त हो जाता है। शुक्रवार की बात है। पैडलेगंज चौराहे पर मोहद्दीपुर की तरफ जाने के लिए हरी बत्ती जल रही थी। तभी हूटर बजा। मोहद्दीपुर जाने वाला रास्ता रोककर नौसढ़ जाने वाली राह खोल दी गई। लाल बत्ती का असर सीओ लिखी बोलेरो ने रौंद दिया। साहब थे तो कारिंदे ने ट्रैफिक नियम को धता बताते हुए सामंती सलाम ठोंका। गाड़ी आगे बढ़वाई। देवरिया बाईपास मोड़, फल-सब्जी मंडी और ट्रांसपोर्ट नगर चौराहे पर भी लाल बत्ती साहब को नहीं रोक पाई। वह सात मिनट में राप्ती पुल पहुंच गए। अब सवाल दौड़ रहा कि कौन असरदार, व्यवस्था या सामंत बहादुर सरकार।
कोतवाल की दीवार, सीनाजोर कब्जेदार
जरूरी नहीं कि वर्दी वाले ही कोतवाल हों। सरकार ने बहुत से विभागों में लोगों को कोतवाल बना रखा है, इनमें फूल-पत्ती वाले भी हैैं। हालांकि उनका काम बहुत टेढ़ा नहीं है, इसलिए दरोगाई अंदाज नहीं दिखा पाते हैैं। दरअसल, उनका मूल काम फल-फूल उगवाने को बढ़ावा देना है। उनकी उसी से फुर्सत नहीं मिलती हैै। लेकिन, सरकार ने लोगों का घर-आंगन महकाने वालों का रजिस्ट्रेशन कराने की भी जिम्मेदारी दे रखी है। चूंकि बिना पंजीयन फूल-पत्ती नहीं बेचा जा सकता है, इसलिए लाइसेंस लेना जरूरी है। इसके लिए दरोगाई दिखानी पड़ती है, लेकिन कमाई कम होने से इधर ध्यान कम दिया जाता है। ऊपर से सख्ती होती है, तभी साहब सख्त होते हैैं। कभी-कभार के दारोगा हैैं, इसलिए लोग सीनाजोर हो चले हैैं। सीनाजोरी भी ऐसी-वैसी नहीं है। एक-दो नहीं, बल्कि दर्जनों लोग बिना लाइसेंस लिए फूल पत्ती बेच रहे, वह भी साहब के आफिस की दीवार से सटकर।
तू खींच मेरी फोटू
चुनावी माहौल है और चेहरा चमकाने की होड़ मची हुई है। कभी साइकिल पर बैठकर फोटो खिंचाने की इतनी होड़ मचती थी कि जूतम-पैजार तक हो जाती थी। क्या मजाल, अपने चेहरे के आगे किसी और का चेहरा आ जाए। हाथ पकड़कर पीछे खींच लेते थे। पंजे वाले भइया तो बकायदा पंजा दिखाकर अपनी फोटो खिंचवाने की जगह बना लेते थे। सामने भले ही पांच लोग बैठे नजर आएं, मंच पर 15 लोग दिख जाते हैैं। कसमसाते हुए, एक-दूसरे को धकियाते हुए ताकि फोटो में अपना चेहरा चमक जाए। फोटो खिंचाने का वायरस अनुशासित पार्टी के सिपाहियों को भी संक्रमित कर गया है। पंडितजी की जयंती पर उनकी प्रतिमा पर पुष्पांजलि के दौरान नेताओं का हुजूम चेहरा चमकाते दिखा। वरिष्ठजन को पीछे कर खुद आगे खड़े हो गए। जिन्हें आगे होना चाहिए था, वह पीछे छुप गए। जहां सिद्धांतों का कमल खिलता था, वहां रेलमपेल मची थी।