रेन वाटर हार्वेस्टिग सिस्टम को लेकर सरकारी महकमा गंभीर नहीं
बस्ती जिला के साथ ही मंडल मुख्यालय भी है। ऐसे में यहां मंडलीय कार्यालय भी मौजूद हैं मगर हैरानी की बात यह है कि आयुक्त कार्यालय भवन को छोड़ दें तो किसी भी सरकारी भवन में रेन हार्वेस्टिग की व्यवस्था नहीं की गई है। एसपी कार्यालय हो या विकास भवन दोनों में रेन हार्वेस्टिग की व्यवस्था नहीं है।
बस्ती: हर साल बरसात के पानी को बचाने के लिए सरकारी महकमा विभिन्न कार्यक्रम आयोजित कर लंबे-चौड़े भाषण देता है, मगर जमीनी हकीकत यह है कि इसे लेकर अब तक वह खुद ही गंभीर नहीं हो पाया है। बस्ती में आयुक्त कार्यालय को छोड़ दें तो किसी भी सरकारी भवन में रेन वाटर हार्वेस्टिग सिस्टम नहीं हैं। जिले से लेकर तहसील व ब्लाक स्तर के कार्यालयों में भी इसकी अनदेखी की गई है। नतीजतन हर साल बड़े पैमाने पर पानी की बर्बादी होती है।
बस्ती जिला के साथ ही मंडल मुख्यालय भी है। ऐसे में यहां मंडलीय कार्यालय भी मौजूद हैं, मगर हैरानी की बात यह है कि आयुक्त कार्यालय भवन को छोड़ दें तो किसी भी सरकारी भवन में रेन हार्वेस्टिग की व्यवस्था नहीं की गई है। एसपी कार्यालय हो या विकास भवन दोनों में रेन हार्वेस्टिग की व्यवस्था नहीं है। जिला अस्पताल, ओपेक अस्पताल, सीएमओ आफिस, कृषि भवन, जिला निर्वाचन अधिकारी आदि कार्यालयों में बारिश का पानी छत से पाइप के जरिये नीचे गिरता है। उसे संरक्षित करने के लिए हार्वेस्टिग सिस्टम नहीं है। इतना ही नहीं नए कलेक्ट्रेट भवन में भी रेन हार्वेस्टिग की व्यवस्था नहीं की गई है। अनिवार्य है रेन वाटर हार्वेस्टिग सिस्टम
उत्तर प्रदेश नगर योजना एवं विकास अधिनियम 1973 में 300 वर्ग मीटर से अधिक भूखंड पर बने भवनों में रेन वाटर हार्वेस्टिग सिस्टम लगाना अनिवार्य है। इसी नियम के तहत प्राधिकरण नक्शा पास करता है। गैर सरकारी भवनों के साथ ही सरकारी कार्यालयों में इसकी स्थापना जरूरी है, लेकिन बस्ती में इसका पालन सरकारी भवनों में ही नहीं हो पा रहा है। निजी बड़े भवनों में भी इस पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। क्या होता है रेन वाटर हार्वेस्टिग सिस्टम
बारिश के जल को जमा करने की प्रक्रिया को रेन वाटर हार्वेस्टिग सिस्टम कहा जाता है। भूजल का स्तर लगातार गिरता जा रहा है। यही कारण है कि भवन सरकारी हो या प्राइवेट, रेन वाटर हार्वेस्टिग सिस्टम को अनिवार्य कर दिया गया है। इसके माध्यम से छत से पाइप के माध्यम से पानी को जमीन में बने चेंबर के जरिये वापस जमीन में भेजा जाता है।