बाबा गोरखनाथ के दरबार में रमजान और आबिद का कारोबार, दशकों से पेश कर रहे कौमी एकता की नजीर

गोरखपुर के खिचड़ी मेले से मुस्लिम दुकानदारों का रिश्ता दशकों पुराना है। सीतापुर के रमजान पांच दशक से गन शूटिंग की दुकान सजा रहे हैं तो आबिद उर्फ सत्तू की क्राकरी की दुकान तीन दशक मेले की शोभा बन रही है।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Publish:Mon, 11 Jan 2021 07:05 AM (IST) Updated:Mon, 11 Jan 2021 07:13 PM (IST)
बाबा गोरखनाथ के दरबार में रमजान और आबिद का कारोबार, दशकों से पेश कर रहे कौमी एकता की नजीर
गोरखनाथ मंदिर के खिचड़ी मेले से मुस्लिम व्‍यापारियों का दशकों पुराना नाता है। - जागरण

गोरखपुर, डा. राकेश राय। गोरखनाथ मंदिर में लगने वाले पारंपरिक खिचड़ी मेले को अगर सामाजिक सौहार्द्र और कौमी एकता का मेला कहें तो गलत नहीं होगा। मेले के 40 फीसद मुस्लिम दुकानदारों की मौजूदगी इसकी पुष्टि है। मेले से मुस्लिम दुकानदारों का रिश्ता दो-चार वर्षों का नहीं बल्कि दशकों पुराना है। सीतापुर के रमजान पांच दशक से गन शूटिंग की दुकान सजा रहे हैं तो आबिद उर्फ सत्तू की क्राकरी की दुकान तीन दशक मेले की शोभा बन रही है। मोहम्मद रईस दो दशक से मेले में चूड़ी बेच रहे हैं। इम्तियाज के पीतल और स्टील के बर्तन तीन दशक से यहां चमक रहे हैं। मेले से लंबे साथ की दास्तां किसी न किसी रूप में बाबा गोरखनाथ में उनकी गहरी आस्था से जुड़ी है।

85 वर्षीय रमजान बताते हैं कि 1970 में जब उन्हें फैजाबाद की नुमाइश में आने का अवसर मिला तो वहां से वह पहली बार मंदिर के खिचड़ी मेले में आए। उन्हें यहां इतना अपनापन लगा कि उसके बाद आजतक कभी गैप नहीं किया। मंदिर से जुड़ी अपनी आस्था का जिक्र करते हुए रमजान बताते हैं कि बाबा गोरखनाथ के आशीर्वाद से ही उनके पहले बेटे को 32 साल बाद और दूसरे बेटे को 18 साल बाद संतान की प्राप्ति हुई।

मंदिर के प्रति अपने समर्पण की वजह बताने के क्रम में आबिद शहर में 2007 के दंगे का जिक्र करते हैं। बताते हैं कि उन दिनों मेला लगा हुआ था और वह मंदिर परिसर में थे। योगी आदित्यनाथ सेे उन्हें और उनके साथियों को सुरक्षा की पूरी गारंटी मिली थी। तबसे वह योगीजी के मुरीद हैं। मोहम्मद इम्तियाज बताते हैं कि उन्होंने अपने पिता हाजी शौकत के साथ मेले में आना शुरू किया था। वह महंत अवेद्यनाथ से जुड़े उस दिनों को याद करते हैं जब महंत जी पिता की खैरियत पूछने के लिए उनकी दुकान तक पहुंच जाते थे। मोहम्मद रईस का मेले से जुड़ाव का किस्सा बरक्कत से जुड़ा है। बताते हैं कि 2001 में लखनऊ के डालीगंज के मेले में उनकी दुकान जल गई तो वह काफी निराशा हो गए। साथियों की सलाह पर मंदिर के मेले में दुकान लगाई तो बरक्कत होने लगी। तबसे उन्हें कभी निराशा नहीं हुई।

सुरक्षा की गारंटी के हैं कायल

सभी दुकानदार इस बात का जिक्र करना नहीं भूलते कि इस मेले में उनके साथ किसी तरह की बद्तमीजी नहीं होती। न कोई उनसे गुंडागर्दी के बल पर समान ले पाता। सामान के साथ-साथ दुकानदार की सुरक्षा की भी गारंटी होती है। जबकि अन्य मेलों में उन्हें हमेशा अराजक तत्वों की बदमाशी झेलनी पड़ती है।

नहीं भूलता महंत अवेद्यनाथ का दुलार-प्यार

सभी मुस्लिम दुकानदार अपनी बातचीत में ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ से मिले दुलार-प्यार का जिक्र करना नहीं भूलते। बताते हैं कि उन्हें महंत जी निजी कक्ष तक जाने की इजाजत थी। नहीं जाने पर कई बार वह खुद ही बुलाकर खैरियत पूछते थे। तबियत ठीक न होने पर इलाज का इंतजाम भी करते थे।

दुकानदार ही नहीं मंदिर के खिचड़ी मेले के खरीदार भी बड़ी संख्या मुसलमान हैं। मुस्लिम महिलाओं को तो मेले का इंतजार रहता है। दरअसल यह ऐसा स्थान है, जहां जातपात के नाम पर कतई कोई भेदभाव नहीं किया जाता। यह ऐसा मेला परिसर है, जहां खरीदार और दुकानदार दोनों खुद को सुरक्षित महसूस करते हैं। - शिव शंकर उपाध्याय, मेला प्रबंधक गोरखनाथ मंदिर।

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