जलभराव वाले क्षेत्रों में अच्छी उपज भी देंगी धान की उन्नतिशील प्रजातियां

कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार अंतरराष्ट्रीय धान अनुसंधान संस्थान फिलीपींस के सहयोग से धान की ऐसी प्रजातियों का परीक्षण कर रहा है जो जलभराव क्षेत्रों में भी अच्छा उत्पादन देंगी। उत्पादन तो अधिक होगा ही स्वाद भी पहले की प्रजातियों की तुलना में बेहतर होगा।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Publish:Fri, 20 Aug 2021 12:02 PM (IST) Updated:Sat, 21 Aug 2021 01:43 PM (IST)
जलभराव वाले क्षेत्रों में अच्छी उपज भी देंगी धान की उन्नतिशील प्रजातियां
जलभराव वाले क्षेत्रों में धान की फसल पर शोध क‍िया जा रहा है। - प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर

गोरखपुर, जागरण संवाददाता। कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार अंतरराष्ट्रीय धान अनुसंधान संस्थान फिलीपींस के सहयोग से धान की ऐसी प्रजातियों का परीक्षण कर रहा है, जो जलभराव क्षेत्रों में भी अच्छा उत्पादन देंगी। इन प्रजातियों में कुछ को हैदराबाद कृषि अनुसंधान संस्थान ने तैयार किया है तो कुछ कटक अनुसंधान संस्थान ने भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान दिल्ली की मदद से तैयार किया है।

पानी में डूबने के बाद खत्म हो जाता है जल तीरी व जल निधि धान

गोरखपुर सहित इर्द-गिर्द के जिलों के धान की खेती करने वाले किसानों के लिए जलभराव बड़ी समस्या है। इससे प्रति वर्ष उनकी सैकड़ों हेक्टेयर धान की फसल बर्बाद होती है। जल तीरी व जल निधि जैसी धान की कुछ प्रजातियां ऐसी हैं, जिन्हें किसान जलभराव क्षेत्रों में बोते रहे हैं। यह प्रजातियां जल स्तर के साथ विकसित होती हैं, लेकिन पानी डूबने के बाद यह धान भी पूरी तरह खत्म हो जाता है। इसका प्रति हेक्येयर उत्पादन भी 40 क्विंटल से अधिक नहीं है। ऐसे में कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार धान की ऐसी प्रजातियों का परीक्षण कर रहा है, जो जलभराव वाले क्षेत्रों में भी बेहतर नतीजे देती हैं। बेलीपार, बड़हलगंज, गगहा क्षेत्र के जलभराव क्षेत्र के कुछ खेतों में यह धान बोकर कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार परीक्षण कर रहा है कि यहां की जलवायु में नतीजा क्या आएगा। कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा.एसके तोमर का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय धान अनुसंधान संस्थान दक्षिण एशिया के वाराणसी केंद्र के वैज्ञानिक यहां इसका निरीक्षण कर चुके हैं। उन्होंने अब तक की प्रगति को ठीक माना है।

इन प्रजातियों का चल रहा परीक्षण

बीना धान 11- यह चिरान सब-1 के नाम से भी जानी जाती है। यह कम अवधि में जल भराव क्षेत्र में तैयार हो जाती है और प्रति हेक्टेयर यह 55-60 क्विंटल की पैदावार देती है।

डीआरआर धान 50- यह प्रजाति समतल व निचले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। इसमें अधिक जलभराव क्षेत्र में जीवित रहने की क्षमता है। खाने में इसका स्वाद भी बेहतर है। प्रति हेक्टेयर इसका 40-45 क्विंटल उत्पादन होता है। यह 135 से 140 दिन में तैयार हो जाती है।

सीआर धान 508- यह प्रजाति गहरे जलभराव वाले क्षेत्र के लिए उपयुक्त है। यह 187 दिन में पककर तैयार होती है। इसकी उत्पादन क्षमता 44-45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।

स्वर्णा सब-1- यह 150 दिन तैयार होती है। 15 दिन पानी में डूबे रहने के बाद भी 45 से 50 क्विंटल तक की पैदावार देती है।

सांभा सब-1- यह प्रजाति 145 दिन में तैयार हो जाती है। 55 से 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार होती है। 15 दिन पानी में डूबे रहने के बावजूद यह बेहतर उत्पादन देती है।

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