स्ट्राबेरी संग खिल उठी बंदियों की मेहनत

कैदियों ने जिला कारागार को सब्जी उत्पादन में भी बनाया आत्मनिर्भर सराहनीय

By JagranEdited By: Publish:Wed, 21 Apr 2021 06:38 AM (IST) Updated:Wed, 21 Apr 2021 06:38 AM (IST)
स्ट्राबेरी संग खिल उठी बंदियों की मेहनत
स्ट्राबेरी संग खिल उठी बंदियों की मेहनत

महराजगंज: आत्मनिर्भरता का मंत्र जिला कारागार में भी गुनगुनाया जा रहा है। जेल प्रशासन की सूझबूझ व कैदियों की मेहनत से चार एकड़ खेत वाला जिला कारागार सब्जी उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भर बनने के बाद व्यावसायिक खेती की ओर भी बढ़ रहा है। प्रयोग के तौर पर यहां के कैदी-बंदियों ने 20 डिसमिल भूभाग पर सब्जियों की हर क्यारी में स्ट्राबेरी की पौध लगाकर बेहतर उत्पादन प्राप्त किया है। प्रति सप्ताह टूट रही करीब 50 किलो स्ट्राबेरी का आनंद फिलहाल यहां के कैदी-बंदी और बंदी रक्षक ले रहे हैं। अब जेल प्रशासन दो एकड़ में स्ट्राबेरी का व्यावसायिक उत्पादन करेगा।

जिला कारागार में हर रोज 974 कैदी-बंदियों का खाना बनता है। जेल की करीब चार एकड़ कृषि योग्य भूमि है, जिस पर बंदी बैंगन, करेला, तरोई, भिंडी, कद्दू आदि की खेती कर रहे हैं। बारिश के दिनों और लहसुन, अदरक को छोड़कर जरूरत भर की सब्जी इसी खेत से मिल जाती है। बंदियों की मेहनत और जमीन की उत्पादकता को देखते हुए जेलर अरविंद श्रीवास्तव ने सितंबर 2020 में 20 डिसमिल की क्यारी में कैमरोज प्रजाति की स्ट्राबेरी लगवाई। इसके अलावा हर सब्जी की क्यारी में मेड़ और नालियों में स्ट्राबेरी के पौधे लगाकर एक-एक इंच का बखूबी इस्तेमाल किया, जिसे स्ट्राबेरी का रकबा करीब 50 डिसमिल हो गया है। कैमरोज प्रजाति की स्ट्राबेरी डेढ़ महीने में फल देने लगती है। इसके फल ठोस और स्वादिष्ट तो होते ही हैं, लंबे समय तक निकलते हैं। मार्च अंत तक इसकी पैदावार खत्म होने लगती है, पर जेल में स्ट्राबेरी की फसल लहलहा रही है। अभी भी प्रति सप्ताह करीब 50 किलो स्ट्राबेरी पैदा हो रही है। छोटे भूभाग के अनुसार आनुपातिक पैदावार अच्छी हुई है। इस स्ट्राबेरी का उपयोग जेल के बंदी और बंदी रक्षक ही कर रहे हैं। नए सत्र में दो एकड़ भूभाग पर स्ट्राबेरी की खेती कर इसे व्यावसायिक रूप दिया जाएगा।

अरविंद श्रीवास्तव, जेलर

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