इस बार घर पर अदा की नमाज, दूर से ही दी ईद की मुबारकबाद Gorakhpur News

कोरोना की वजह से लगातार दूसरे साल ईद की रौनक फीकी नजर आई। ईदगाहों और शहर की बड़ी मस्जिदों ईद की नमाज पढ़ने की परंपरा रही है इसमें हजारों लोग शरीक होते रहे हैं लेकिन मस्जिदों के बाहर सन्नाटा पसरा रहा।

By Rahul SrivastavaEdited By: Publish:Sat, 15 May 2021 05:30 PM (IST) Updated:Sat, 15 May 2021 05:30 PM (IST)
इस बार घर पर अदा की नमाज, दूर से ही दी ईद की मुबारकबाद Gorakhpur News
बेनीगंज ईदगाह मेंनमाज पढ़ते मुस्लिम समाज के लोग। जागरण

गोरखपुर, जेएनएन : कोरोना की वजह से लगातार दूसरे साल ईद की रौनक फीकी नजर आई। ईदगाहों और शहर की बड़ी मस्जिदों ईद की नमाज पढ़ने की परंपरा रही है, इसमें हजारों लोग शरीक होते रहे हैं लेकिन मस्जिदों के बाहर सन्नाटा पसरा रहा। कुछ ईदगाहों को छाेड़ दिया जाए तो ज्यादातर मस्जिदों में पेश इमाम समेत सिर्फ पांच-पांच लोगाें ने नमाज अदा की। बेनीगंज, ईदगाह सेहरा बाले मियां का मैदान और ईदगाह मुबारक खां शहीद में लोगों ने शारीरिक दूरी का पालन करते हुए ईद की नमाज अदा की। दूसरी तरफ ज्यादातर लोगों ने बच्चों के साथ घर में ही शुक्रराने के तौर पर चाश्त की नमाज अदा की और मुल्क में अमन-चैन, तरक्की एवं कोरोना से निजात की दुआएं मांगी। गले मिलकर मुबारकबाद देने के बजाय लोगों ने दूर से ही एक-दूसरे का ईद की बधाई दी।

ईदगाह न जा पाने से बच्‍चे निराश

तीस रोजा रखने के बाद रोजेदारों को ईद मनाने का मौका मिला, लेकिन उनमें उत्साह गायब था। खासकर ईदगाह न जा पाने की वजह से बच्चे निराश नजर आए। लोग नमाज घर में ही पढ़े, इसलिए ज्यादातर मस्जिदों को बंद रखा गया था। कई मस्जिद के बाहर नोटिस भी चस्‍पा की गई थी। सुबह आठ बजे से पहले लोगों ने साफ-सुथरे कपड़े पहने, टोपी व इत्र लगाया और चार रिकात नमाज अदा कर अपने रब का शुक्रिया अदा किया। नमाज से पहले फित्रे की रकम गरीबों, यतीमों और परेशान हाल लोगों तक पहुंचाई गई ताकि वह भी ईद की खुशी में शामिल हो सकें। कोरोना कर्फ्यू के चलते लोग अपने बुजुर्गों के कब्र पर फातिहा पढ़ने भी नहीं जा सके। हर साल ईदगाहों के बाहर लगने वाला मेला भी नहीं लगा। लोगों ने एक-दूसरे के घर जाने से भी परहेज किया। हालांकि घरों में हमेशा की तरफ सेवइयों के अलावा लजीज पकवान बनाए गए।

दूसरों के दुख-दर्द में शामिल होने की अपील

ईद की नमाज से पहले ईदगाहों और मस्जिदों के इमाम ने अपनी खास तकरीर में लोगों से दूसरों के दुख-दर्द में शरीक होने, आपसी सौहार्द को मजबूत करने तथा मुल्क में अमन और भरोसे का माहौल बनाने की अपील की। शाही जामा मस्जिद, उर्दू बाजार के पेशइमाम मौलाना अब्दुल जलील मजाहिरी ने कहा कि 30 दिनों तक रमजान में आपने अपनी इच्छाओं पर जिस तरह काबू रखा वह पूरे साल आपके व्यवहार में नजर आना चाहिए। एक सच्चा मुसलमान वहीं होता है जो ताजिदंगी अल्लाह और उनके रसूल के बताए हुए रास्तों पर चलता है। मुफ्ती वलीउल्लाह ने कहा कि रमजान का पाक महीना हमें सच्चा इंसान बनने की सीख देता है। हमें कोई ऐसा काम नहीं करना चाहिए जो इंसानियत के खिलाफ हो और अल्लाह को नापसंद हो। कहा कि समाज में जहां हर कोई दौलत के पीछे भागता दिख रहा रहा है। जहां रिश्वत, लूट और भ्रष्टाचार है। ऐसे में ईद की सच्ची खुशी तभी मिल सकती है जब हम सामाजिक बुराइयों पर अंकुश लगाएं और पैसे के नहीं बल्कि अल्लाह के नेक बंद बनें।

नहीं दिखा गले मिलने का नजारा

ईद को लेकर मुस्लिम बहुल इलाकाें में खासी तैयारी की जाती थी। मोहल्लों में सड़क को रंग-बिरंगी झंडियों से सजाया जाता था, जिसे देखकर खास दिन का अहसास होता था, लेकिन इस बार कहीं भी ऐसा नजरा देखने को नहीं मिला। इलाहीबाग, तिवारीपुर, पीपरापुर, बहादुर शाह जफर कलोनी, नसीराबाद, मिर्जापुर, बक्शीपुर, नखास, खूनीपुर, रेती, तुर्कमानपुर, घंटाघर, छोटे काजीपुर, रसूलपुर, गोरखनाथ, सिधारीपुर, दरियाचक, जमुनहिया बाग, चक्सा हुसैन, शाहमारुफ, बसंतपुर, आजाद चौक, चिलमापुर आदि मोहल्लों में चहल-पहल कम दिखी। लोगों ने घर में रहना ही बेहतर समझा। वहीं लोगों के गले मिलकर बधाई देने का नजारा भी कहीं नहीं दिखा।

इंटरनेट मीडिया पर चलता रहा बधाई का दौर

ईद की नमाज अदा करने के बाद लोगों ने घर-घर जाकर मुकारकबाद देने के बजाए वाट्सएप और फेसबुक पर एक-दूसरे को ईद की बधाई दी। कहीं लजीज पकवानों के फोटो शेयर किए गए तो कहीं कोरोना की वजह से जान गंवाने वालों को याद किया गया। गोरखनाथ के मोहममद असरारुल ने बताया कि यह लगातार दूसरा साल है जब ईद पर दोस्तों एवं रिश्तेदारों के घर नहीं जा सके। हालात सुधरेंगे तो अगले साल पहले की तरह ही ईद मनाई जाएगी।

ईदी में किसी को तोहफा तो किसी को मिली नगदी

नमाज के बाद ईदी भी खूब बंटी। बड़े-बूढ़ों ने बच्चों में ईदी बांटी। किसी को ईदी में नकद मिला तो किसी को तोहफा मिला। ईदी पाकर बच्चों का उत्साह और बढ़ गया, लेकिन ईदी खर्च करने के लिए कहीं दुकानें नहीं खुली थीं।

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