गला दबाकर हत्‍या के बाद सास पर डाला गया था तेजाब, बहू पर हत्या का केस दर्ज कर पुलिस ने बंद कर दी फाइल

हत्यारे की पहचान में मदद करने वाले कई साक्ष्य भी मिले लेकिन साक्ष्यों की अनदेखी करते हुए पुलिस ने अचानक मामले की फाइल बंद कर दी। इसी के साथ इस हत्याकांड का रहस्य फाइलों में ही दफन हो गया।

By Satish ShuklaEdited By: Publish:Wed, 28 Oct 2020 05:24 PM (IST) Updated:Thu, 29 Oct 2020 08:06 AM (IST)
गला दबाकर हत्‍या के बाद सास पर डाला गया था तेजाब, बहू पर हत्या का केस  दर्ज कर पुलिस ने बंद कर दी फाइल
विंध्यवासिनी देवी हत्याकांड से संबंधित अपराध की प्रतीकात्‍मक फाइल फोटो।

गोरखपुर, जेएनएन। बड़हलगंज कस्बे का बिंदू उर्फ विंध्यवासिनी देवी हत्याकांड एक ऐसी घटना है, जिसमें करीब साल भर बाद उनकी ही बहू के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज हुआ। लंबे समय तक पुलिस छानबीन करती रही। हत्यारे की पहचान में मदद करने वाले कई साक्ष्य भी मिले, लेकिन साक्ष्यों की अनदेखी करते हुए पुलिस ने अचानक मामले की फाइल बंद कर दी। इसी के साथ इस हत्याकांड का रहस्य फाइलों में ही दफन हो गया।

बड़हलगंज कस्बे में कालेज तिराहे पर स्व.संतोष अग्रवाल का मकान है। उनके बेटे अंकित और आशुतोष मकान के भूतल पर कपड़े की दुकान चलाते थे। नौ अगस्त 2015 को सोमवार का दिन होने की वजह से बड़हलगंज कस्बे में साप्ताहिक बंदी थी। दोनों भाई दुकान के लिए खरीदारी करने गोरखपुर आए थे। 55 वर्षीय विंध्यवासिनी देवी, अंकित की पत्नी 30 वर्षीय शिल्पी और शिल्पी का ढाई साल का बेटा ही घर में थे।

दिन में तीन बजे के आसपास शिल्पी ने अचानक शोर मचाना शुरू किया। पुलिस और आसपास के लोग अंदर पहुंचे, तो गलियारे में तख्त पर विंध्यवासिनी देवी का शव पड़ा था। उन पर तेजाब डाला गया था, जिससे वह बुरी तरह झुलस गई थीं। मौके पर ही उनकी मौत हो गई थी। शिल्पी भी तेजाब से झुलसी हुई थी। उस समय पुलिस को उसने बताया कि दो बदमाश लूट की नीयत से घर में घुस आए थे। विरोध पर उन्होंने विंध्यवासिनी देवी के ऊपर तेजाब डाल दिया, जिससे उनकी मौत हो गई। शिल्पी का दावा था कि बदमाशों ने उसके ऊपर भी तेजाब फेंका था, लेकिन उसने खुद को कमरे में बंद कर जान बचाई थी। दरवाजा बंद करते समय थोड़ा तेजाब उसके ऊपर पड़ गया था, जिससे वह झुलस गई।

चौंकाने वाली आई पोस्टमार्टम रिपोर्ट

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि गला घोंटकर हत्या के बाद विंध्यवासिनी देवी के ऊपर तेजाब डाला गया था। इस रिपोर्ट से शिल्पी का झूठ सामने आ गया था, लेकिन उसके अस्पताल में भर्ती होने की वजह से पुलिस उससे पूछताछ नहीं कर पाई। बाद में परिवार के लोग उसे उपचार के लिए वाराणसी लेकर चले गए और वहां से जबलपुर। एक साल तक तफ्तीश करने के बाद पुलिस ने हत्या के मामले में शिल्पी को नामजद अभियुक्त बनाया। उसके विरुद्ध कुर्की का नोटिस भी जारी हुआ, लेकिन उसकी गिरफ्तारी नहीं हो पाई। इस बीच खुद को एसिड अटैक पीडि़ता बता उसने सरकार से आर्थिक मदद भी ले ली।

दो साल बाद पुलिस ने बंद कर दी फाइल

पुलिस की छानबीन में कई ऐसे प्रमाण मिले थे, जिनकी मदद से हत्यारे तक आसानी से पहुंचा जा सकता था। उस समय पुलिस अधिकारी दावा करते नहीं थक रहे थे कि आरोपित की हर हाल में गिरफ्तारी होगी, लेकिन दो साल बाद मार्च 2017 में पुलिस ने मुकदमे की फाइल हमेशा के लिए बंद कर दी। इससे पहले परिवार के लोगों ने अधिकारियों को शपथ पत्र देकर शिल्पी को निर्दोष माना था और मुकदमे की विवेचना बंद करने का अनुरोध भी किया था। इसी आधार पर पुलिस ने साक्ष्यों को किनारे कर मुकदमे की फाइल बंद कर दी।

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