गोरखपुर में प्लाज्मा थेरेपी ने बचाई 58 कोरोना मरीजों की जान, पहली बार अक्टूबर में अधेड़ को दी गई थी थेरेपी
बीआरडी में प्लाज्मा थेरेपी की शुरुआत एक अक्टूबर 2020 को हुई। पहली बार 200 बेड कोरोना वार्ड के आइसीयू नंबर चार में भर्ती एक 55 वर्षीय मरीज को यह थेरेपी विशेषज्ञ डाक्टरों की उपस्थिति में दी गई थी। मरीज को सांस फूलने की तकलीफ थी।
गोरखपुर, जेएनएन। गंभीर कोरोना मरीजों के लिए प्लाज्मा थेरेपी वरदान साबित हुई। यह थेरेपी देर से शुरू होने के बावजूद 58 कोरोना मरीजों की जीवनदाता बनी। कुल 60 मरीजों को बाबा राघव दास मेडिकल कालेज (बीआरडी) में प्लाज्मा चढ़ाया गया। इसमें से 58 लोग स्वस्थ होकर घर चले गए। दो अति गंभीर मरीजों को जान से हाथ धोना पड़ा। कालेज प्रशासन के अनुसार वे अस्पताल पहुंचने के समय काफी गंभीर हो चुके थे। बावजूद इसके उनकी जान बचाने की पूरी कोशिश की गई थी।
अक्टूबर में हुई प्लाज्मा थेरेपी की शुरुआत
बीआरडी में प्लाज्मा थेरेपी की शुरुआत एक अक्टूबर 2020 को हुई। पहली बार 200 बेड कोरोना वार्ड के आइसीयू नंबर चार में भर्ती एक 55 वर्षीय मरीज को यह थेरेपी विशेषज्ञ डाक्टरों की उपस्थिति में दी गई थी। मरीज को सांस फूलने की तकलीफ थी। प्लाज्मा चढ़ाने में दो घंटे लगे थे और मरीज की 24 घंटे निगरानी की गई थी। थेरेपी सफल होने के बाद अन्य मरीजों के लिए रास्ता खुल गया। इसके बाद सभी गंभीर मरीजों को आक्सीजन, इंजेक्शन व दवाएं देने के साथ ही प्लाज्मा भी चढ़ाया जाने लगा। हालांकि दानदाताओं की कमी सामने आई। दान वही कर सकता था जो कोरोना से 28 दिन पहले ठीक हो चुका था। बहुत प्रयास के बाद कुल 35 लोगों ने ही प्लाज्मा दान किया। एक व्यक्ति के शरीर से दो यूनिट से अधिक प्लाज्मा लिया जाता था। जरूरत के मुताबिक किसी को एक और किसी को दो यूनिट प्लाज्मा चढ़ाना पड़ा। अभी कालेज में इमरजेंसी के लिए पांच यूनिट प्लाज्मा रखा हुआ है हालांकि मरीज अब नहीं हैं।
तमाम दिक्कतों के बावजूद जरूरतमंदों को चढ़ाया गया पलाज्मा
ब्लड बैंक के प्रभारी डा. राजेश कुमार राय का कहना हॅै कि जिसे भी प्लाज्मा चढ़ाने की जरूरत समझी गई और डाक्टर ने लिखा, उसे हर हाल में उपलब्ध कराया गया। हालांकि दिक्कतें बहुत आईं। लोगों को बुला-बुलाकर प्लाज्मा दान कराया गया। कुल 60 लोगों को यह थेरेपी दी गई जिसमें से 58 ठीक होकर घर गए।
कोरोना से एक भी मरीज की मौत नहीं
57 दिन तक कोरोना वार्ड में काम करने वाले डाक्टर नरेंद्र देव का कहना है कि एक भी मौत ऐसे मरीज की नहीं हुई जिसे सिर्फ कोरोना था। मरने वालों में लगभग सभी कोरोना के साथ अन्य बीमारियों से ग्रसित लोग थे। इनमें एक जगह बैठकर काम करने वालों की संख्या ज्यादा थी। एक भी मेहनतकश व्यक्ति की मौत नहीं हुई।