गोरखपुर मेडिकल कालेज में मौत से पहले एक शिक्षक की दर्दभरी कहानी, आप भी जानें-लापरवाही की अंतहीन दास्‍तां

एहिजा कौनो दवाई नाई करत बाड़े कुल। हमार बेड बहुत दूरे बा अवाजे नइखे जात वो कुल के लगे। अबहिन ले शौच नाई कइली हम। एको बार देखे नइखे सब आवत। एक पइसा के सुधार नइखे एक पइसा के।

By Satish Chand ShuklaEdited By: Publish:Wed, 05 May 2021 12:51 PM (IST) Updated:Thu, 06 May 2021 10:12 AM (IST)
गोरखपुर मेडिकल कालेज में मौत से पहले एक शिक्षक की दर्दभरी कहानी, आप भी जानें-लापरवाही की अंतहीन दास्‍तां
बाबा राघवदास मेडिकल कालेज का कोविड अस्‍पताल का दृश्‍य, जागरण।

गोरखपुर, जेएनएन। एहिजा कौनो दवाई नाई करत बाड़े कुल। हमार बेड बहुत दूरे बा, अवाजे नइखे जात वो कुल के लगे। अबहिन ले शौच नाई कइली हम। एको बार देखे नइखे सब आवत। एक पइसा के सुधार नइखे, एक पइसा के। सांस वोही गवें चल ता। कुछ उपाय करअ लोग, नाही त अब हम ना झेल पाइब। अब देहि हमार जवाब देति आ। वायस रिकार्डिंग के यह शब्द बाबा राघव दास (बीआरडी) मेडिकल कालेज के कोरोना वार्ड में भर्ती शिक्षक संजीव कुमार पाठक के हैं,  जिनकी मंगलवार को मौत हो गई। उनकी उम्र 41 वर्ष थी। पत्नी अर्चना पाठक ने मेडिकल कालेज की व्यवस्था पर गंभीर आरोप लगाते हुए पूरी व्यवस्था पर सवाल खड़ा किया है। उन्होंने कहा कि मरीजों को समुचित इलाज नहीं मिल रहा। जैसे मेरे मरीज के साथ हुआ ऐसा सबके साथ हो रहा होगा।

देवरिया के रहने वाले थे संजीव पाठक

संजीव कुमार पाठक देवरिया के पिंडी गांव के मूल निवासी थे और सपरिवार यहां स्पोर्ट्स कालेज के पास रहते थे। 28 अप्रैल को चरगांवा में उनकी कोरोना जांच कराई गई। पाजिटिव आए। सांस फूल रही थी। डाक्टर की सलाह पर उनका सीटी स्कैन कराया गया। सीटी वैल्यू 18/25 था। अर्थात उनके फेफड़े का आधा से अधिक हिस्सा खराब हो चुका था। वह ब्लड प्रेशर व गठिया के मरीज भी थे। उन्हें मेडिकल कालेज के कोरोना वार्ड में भर्ती कराया गया। पत्नी अर्चना ने बताया कि तीन मई को सुबह उन्होंने घर फोन किया कि अभी तक वह शौच नहीं किए हैं, यहां कोई व्यवस्था नहीं है। डायपर लेकर आओ। वह पैदल ही डायपर लेकर मेडिकल कालेज गईं और कर्मचारी को देकर मरीज के पास पहुंचाने का अनुरोध किया। तीन मई को रात में संजीव ने आडियो क्लिप बनाकर अपनी पत्नी को भेजा था, जिससे साफ है कि उस समय तक हगीज उन्हें नहीं मिला था। अर्चना रात को उनका मैसेज नहीं देख पाईं। सुबह देखी और सुनीं तो आनन-फाान में भाग कर मेडिकल कालेज पहुंची। मरीज का फोन स्विच आफ था। उन्होंने अपने शुभचिंतकों को भी बुला लिया। सांसद से फोन भी कराया लेकिन मरीज के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल सकी। दोपहर करीब एक बजे उनके पास अस्पताल से फोन आया कि आपके मरीज का निधन हो गया है। इस संबंध में मेडिकल कालेज प्राचार्य का पक्ष जानने का प्रयास किया गया , लेकिन संपर्क नहीं हो सका।

मेडिकल कालेज में सिर्फ लापरवाही, इलाज नहीं

अर्चना पाठक का कहना है कि मेडिकल कालेज में बड़ी लापरवाही है। मेरे पति इसी लापरवाही की  भेंट चढ़ गए। वहां मरीजों का कोई इलाज नहीं हो रहा है। डाक्टर सुन नहीं रहे हैं। मरीज को जो सामान भेजे जा रहे हैं, वे उन तक पहुंच नहीं रहे हैं। कोई सुविधा नहीं है। सुविधा होती तो मरीज शौच करने के लिए घर फोन नहीं करता। मुझे तो लगता है कि उनकी मौत रात में ही हो गई थी। क्योंकि आडियो क्लिप भेजने के बाद से ही उनका मोबाइल स्विच आफ था। लेकिन मुझे बताया गया दूसरे दिन दोपहर बाद एक बजे।

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