दवा के नाम पर लूट : यहां नर्सिंग होम खुद बनवाते हैं दवाएं, दाम वसूल रहे मनमाना Gorakhpur News
हजारों ऐसे ब्रांड की दवाएं बन गई हैं जो चुनिंदा नर्सिंग होम या क्लीनिक में ही मिलेंगी। इन दवाओं पर रेट नर्सिंग होम या क्लीनिक संचालक खुद तय करते हैं। दवा सिर्फ इन्हीं जगहों पर मिलेगी इसलिए ज्यादा दाम देकर खरीदना मरीज की मजबूरी है।
गोरखपुर, जेएनएन। गोरखपुर में बहुत से नर्सिंग होम संचालक खुद दवाएं बनवाते हैं और अपने यहां बैठने वाले डाक्टरों को यही दवा लिखने को बाध्य करते हैं। खुद बनवाने के कारण इनकी दवाएं किसी दुकान पर नहीं मिलती हैं इसलिए नर्सिंग होम संचालक इन दवाओं का मनमाना मूल्य वसूलते हैं। यही नहीं जहां यह दवाएं बिकती हैं वहां इनका 80 फीसद तक कमीशन होता है। यानी दवा की एमआरपी यदि 100 रुपये है तो बेचने वाले को इसमें से 80 रुपये तक दिए जाते हैं। इसी कमाई के चक्कर में सेटिंग वाली दवाओं की बिक्री में इजाफा होता जा रहा है।
दवा से कमाई के खेल में मरीजों का हित ज्यादातर लोग नहीं सोच रहे हैं। हजारों ऐसे ब्रांड की दवाएं बन गई हैं जो चुनिंदा नर्सिंग होम या क्लीनिक में ही मिलेंगी। इन दवाओं पर रेट नर्सिंग होम या क्लीनिक संचालक खुद तय करते हैं। दवा सिर्फ इन्हीं जगहों पर मिलेगी इसलिए ज्यादा दाम देकर खरीदना मरीज की मजबूरी है। बाजार में उपलब्ध पेटेंट दवाओं की तुलना में लोकल ब्रांड की यह दवाएं चार से छह गुना ज्यादा अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) पर बेची जाती हैं। गोपलापुर के न्यू लोटस हास्पिटल में मेरोपेनम इंजेक्शन का ज्यादा दाम लेने की जानकारी के बाद भले ही आम लोग सकते में हैं लेकिन इस धंधे से जुड़े खिलाडिय़ों के लिए ऐसा करना कोई नई बात नहीं है। सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाली दवाओं का रेट बेचने वाले खुद तय करते हैं।
सीधे मंगाई जाती हैं दवाएं
नर्सिंग होम या क्लीनिक संचालक सेटिंग वाली दवाएं सीधे कंपनियों से मंगाते हैं। कई ने दवा के इस धंधे में ज्यादा मुनाफा देकर खुद अपनी कंपनी बना ली है। मरीज के नुकसान से किसी को कोई वास्ता नहीं रहता है। जिस मेरोपेनम इंजेक्शन की कीमत को लेकर हंगामा मचा हुआ है वह पेटेंट कंपनियां काफी कम दाम में बेचती हैं। न्यू लोटस हास्पिटल में 37 सौ रुपये में मरीज को लगाई जाने वाली मेरोपेनम इंजेक्शन पर तकरीबन तीन हजार रुपये कमीशन दिए जाते हैं।
यह है पेंटेंट कंपनियों का मेरोपेनम का दाम
ब्रांड कंपनी दाम
मेरोश्योर एलकेम 877.20
मेरो अरिस्टो 685
मेरोमैक मैक्लियाड्स 646
मेरोटेक एमक्योर 698
जेनरिक नाम से दवा लिखते हैं कई डाक्टर
कई डाक्टर जेनरिक नाम से दवा लिखते हैं। यानी दवा का मालीक्यूल डाक्टर अपने पर्चे पर लिखते हैं। इसे ऐसे समझें- बुखार की दवा कैलपाल का मालीक्यूल पैरासीटामाल है। डाक्टर यदि पैरासीटामाल नाम से दवा लिखें तो मरीज स्वतंत्र होगा कि वह उस कंपनी की पैरासीटामाल खरीदे जिसका रेट सबसे कम हो। लेकिन कमाई के चक्कर में खुद से तय ब्रांड वाली दवाएं ज्यादा लिखी जाती हैं।
कंपनी बदलोगे तो नहीं होगा फायदा
यदि मरीज ने कम रुपये होने का हवाला देकर दवा गांव में खरीदने की बात कह दी तो उसे बताया जाता है कि दवा बदलोगे तो काम नहीं करेगी। जिस कंपनी और नाम की दवा लिखी है वही खरीदना, यदि गांव में नहीं मिलेगी तो वापस आकर ले जाना। मरीज को बाद में पता चलता है कि पर्चे पर लिखी गई दवा सिर्फ वहीं मिलेगी जहां से उसने खरीदी थी।
गोरखपुर के ड्रग इंस्पेक्टर जय सिंह ने कहा कि नर्सिंग होम और क्लीनिक में खुले मेडिकल स्टोर की जांच शुरू होने जा रही है। मरीजों के हित में सही और कम एमआरपी की दवाएं बिकनी चाहिए। जांच में देखा जाएगा कि मरीज को सही दवा सही दाम पर मिल रही है या नहीं। दवाओं पर किसी का एकाधिकार नहीं बर्दाश्त किया जाएगा।