अब आलू के स्‍टार्च से काफी कम लागत में होगा हाइड्रोजन और आक्सीजन का उत्पादन

गोरखपुर विश्वविद्यालय के भौतिक विज्ञान विभाग के सहायक आचार्य ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय के महिला महाविद्यालय की आचार्य और शोधकर्ता के साथ मिलकर पोटैटो स्टार्च आधारित इलेक्ट्रोलाइट के माध्यम से आक्सीजन और हाइड्रोजन बनाने में सफलता हासिल की थी। उनके आवेदन को भारत सरकार ने मान्यता दे दी है।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Publish:Sun, 01 Aug 2021 11:53 AM (IST) Updated:Mon, 02 Aug 2021 09:02 AM (IST)
अब आलू के स्‍टार्च से काफी कम लागत में होगा हाइड्रोजन और आक्सीजन का उत्पादन
आलू के स्टार्च की मदद से आक्सीजन और हाइड्रोजन उत्पादन करने की तैयारी की जा रही है। - प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर

गोरखपुर, जागरण संवाददाता। अभी तक कमरे के तापमान पर हाइड्रोजन और आक्सीजन का उत्पादन करना काफी खर्चीला था। इस प्रक्रिया के लिए उपयोग की जाने वाली सामग्री और उपकरणों लागत काफी ज्यादा होती थी। पर ऐसा नहीं होगा। काफी कम लागत में कमरे के तापमान पर हाइड्रोजन और आक्सीजन का उत्पादन किया जा सकेगा।

बीएचयू की शोधकर्ताओं के साथ मिलकर डा. मणीन्द्र ने बनाया है पोटैटो स्टार्च आधारित इलेक्ट्रोलाइट

दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के भौतिक विज्ञान विभाग के सहायक आचार्य डा. मणींद्र कुमार ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय के महिला महाविद्यालय की आचार्य प्रो. नीलम श्रीवास्तव और शोधकर्ता डा. तूहीना तिवारी के साथ मिलकर कमरे के तापमान पर पोटैटो स्टार्च आधारित इलेक्ट्रोलाइट के माध्यम से आक्सीजन और हाइड्रोजन बनाने में सफलता हासिल की थी। इसे पेटेंट कराने के लिए आवेदन किया था। उनके आवेदन को भारत सरकार ने मान्यता दे दी है।

गोविवि के भौतिकी विभाग के सहायक आचार्य डा. मणीन्द्र का अपना शोध पेटेंट कराने में मिली सफलता

सफलता से आह्लादित डा. मणींद्र ने बताया कि पेटेंट हो जाने से उनके शोध पर सरकार की मुहर लग गई है। अब इस तकनीक का इस्तेमाल कर कोई भी व्यक्ति बेहद कम लागत में हाइड्रोजन और आक्सीजन बना सकता है। शोध के दौरान आलू के स्टार्च के उपयोग इलेक्ट्रोलाइट बनाया गया और फिर उसका उपयोग करके हाइड्रोजन और आक्सीजन बनाने में सफलता हासिल हुई। शोध के पेटेंट हो जाने से इसके व्यावासायिक इस्तेमाल की रहा खुल गई है। यह शोध नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित होगा।

अंतरराष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित हो चुका है यह शोध

डा. मणींद्र ने बताया कि इस शोध के लिए उन्हें विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से फेलोशिप भी प्राप्त हो चुकी है। उन्होंने अपना यह शोध कार्य काशी हिंंदू विश्वविद्यालय के महिला महाविद्यालय के भौतिक विभाग में पूरा किया। उनका शोध कई अंतरराष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित हो चुका है। उनकी इस सफलता पर विभाग व संकाय अध्यक्ष प्रो. शांतनु रस्तोगी और अन्य शिक्षकों ने बधाई दी है।

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