इन गांवों को बाढ़ से बचाने के लिए नहीं किए गए इंतजाम, जानिए पूरा मामला

सिद्धार्थनगर जिले के डुमरियागंज तहसील क्षेत्र के दक्षिण छोर पर बहने वाली राप्ती नदी हर साल भारी पैमाने पर तबाही मचाती है। इस बार भी तटवर्ती दर्जनों गांव के लोग डर के साए में रहकर जीवन यापन करने को मजबूर हैं।

By Rahul SrivastavaEdited By: Publish:Sun, 18 Jul 2021 12:10 PM (IST) Updated:Sun, 18 Jul 2021 12:10 PM (IST)
इन गांवों को बाढ़ से बचाने के लिए नहीं किए गए इंतजाम, जानिए पूरा मामला
शाहपुर-सिंगारजोत मार्ग पर हो रहा कटान। जागरण

गोरखपुर, जागरण संवाददाता : सिद्धार्थनगर जिले के डुमरियागंज तहसील क्षेत्र के दक्षिण छोर पर बहने वाली राप्ती नदी हर साल भारी पैमाने पर तबाही मचाती है। इस बार भी तटवर्ती दर्जनों गांव के लोग डर के साए में रहकर जीवन यापन करने को मजबूर हैं, कुछ लोग अपना घर-द्वार सब राप्ती की कोख में गंवाकर पलायन करने को मजबूर हो गए। आज तक इन गांवों को बाढ़ की विभीषिका से बचाने के लिए ठोस कार्ययोजना नहीं बनी। प्रति वर्ष बाढ़ चौकी, टूटी नावों व कुछ बाढ़ राहत सामग्री के अलावा यहां के लोगों को कुछ नहीं मिलता।

इस गांव के बांशिदे बस गए दूसरे गांव में

डुमरियागंज तहसील के विशुनपुर औरंगाबाद गांव की आबादी वर्ष 2014 में पंद्रह सौ से अधिक थी,अब आधी के लगभग बची है। बाकी लोग इस गांव के बाशिंदे तो हैं, लेकिन आसपास के गांव में जाकर बस गए। लगातार कटान के चलते नदी बिल्कुल गांव से सटकर बह रही है। इसी कटान के चलते गांव की अधिकतर आबादी यहां से पलायन गई। साथ ही कटान के चलते अधिकतर लोगों के खेत नदी के उस पार चले गए। खेत नदी के उसपार चले जाने के चलते गांव के लोगों को आर्थिक संकट से भी जूझना पड़ा है। गेहूं की खेती तो किसी तरह हो जाती है, लेकिन बरसात के दिनों में भरी राप्ती पार करना मौत को दावत देने जैसा हो जाता है। यदि इस बार यहां जल्द ही कोई ठोस उपाय न किया गया तो बची खुची आबादी भी नदी में विलीन हो जाएगी। साथ ही यदि यह गांव कटा तो बिजौरा, जुड़ीकुइयां, आजाद नगर, बेलवा, बौनाजोत आदि का भी अस्तित्व संकट में आ जाएगा। इस गंभीर समस्या को जानते हुए भी शासन प्रशासन गांव सुरक्षा दे पाने में अक्षम बना हुआ है। गांव के लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती है और निकटतम सरकारी अस्पताल बिजौरा में है। विद्युत व्यवस्था से यह गांव जुड़ा हुआ है।

इनसे छिन गया गांव

गांव के रहने वाले मुकीम छत्तीसगढ़ तो लड्डन मुंबई रहकर आजीविका चलाते हैं। बताया कि गांव पर राप्ती ने थोड़ी बहुत जो जमीन थी, उसे काट कर अपने में पांच वर्ष पहले मिला लिया। कमाई का कोई जरिया न होने के चलते गांव से विस्थापित होना पड़ा। स्वजन भी साथ रहते हैं।

72 करोड़ की मदद से होंगे व्‍यापक इंतजाम

एसडीएम त्रिभुवन ने कहा कि वह निरीक्षण करेंगे तत्काल जो भी उपाय संभव हैं वह कराए जाएंगे। 72 करोड़ की मदद से दो वर्ष के भीतर व्यापक इंतजाम होंगे।

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