गोरखपुर मेडिकल कालेज में टीबी से पीडि़त बच्चों के लिए आई नई दवा Gorakhpur News
जापान से मंगाई गई यह दवा ज्यादा कारगर मानी जाती है। यह अभी तक लखनऊ व आगरा मेडिकल कालेज में ही उपलब्ध थी। निजी अस्पतालों में यह दवा नहीं मिलती है। एक मरीज के कोर्स पर इस दवा का खर्च लगभग 1.5 लाख रुपये आता है।
गोरखपुर, जेएनएन। बाबा राघव दास (बीआरडी) मेडिकल कालेज में मल्टीड्रग रेजिस्टेंट (एमडीआर) टीबी से पीडि़त ब'चों के लिए नई दवा डेलामैनिड आ गई है। जापान से मंगाई गई यह दवा ज्यादा कारगर मानी जाती है। यह अभी तक लखनऊ व आगरा मेडिकल कालेज में ही उपलब्ध थी। निजी अस्पतालों में यह दवा नहीं मिलती है। एक मरीज के कोर्स पर इस दवा का खर्च लगभग 1.5 लाख रुपये आता है। गोरखपुर में एमडीआर टीबी से पीडि़त 15 बच्चे हैं, जिन्हें इस दवा से राहत मिलेगी।
दवा खिलाने के बाद दो मरीजों को लिया गोद
मेडिकल कालेज के प्राचार्य डा. गणेश कुमार व टीबी एवं सीना रोग विभाग के अध्यक्ष डा. अश्विनी मिश्रा ने पहली बार सोमवार को महराजगंज के एक मरीज को यह दवा खिलाई। दोनों लोगों ने एक-एक मरीज को गोद लिया। डा. अश्विनी ने बताया कि ब'चों में इस बीमारी की कोई कारगर दवा नहीं थी। इसके आ जाने से मरीजों को बड़ी राहत मिलेगी। इस बीमारी से ब'चों की मृत्यु दर अधिक है। व्यस्कों में भी 50 फीसद मरीजों की इस बीमारी से मृत्यु हो जाती है। अभी बीआरडी में एमडीआर टीबी से पीडि़तों के लिए बेडाक्विलिन दवा है। इस दवा का एक मरीज पर खर्च लगभग एक लाख रुपये है, लेकिन यह 18 साल से कम उम्र के ब'चों को नहीं दी जा सकती है।
क्या है एमडीआर टीबी
जिसे टीबी हो जाती है, वह मरीज बीच में दवा खाना बंद कर देता है तो उसे एमडीआर टीबी हो जाती है। यह ज्यादा गंभीर होती है और टीबी की सामान्य दवाएं काम नहीं करती हैं। ज्यादातर मामलों में यह बीमारी मौत का कारण बन जाती है। अब चूंकि दवा आ गई है इसलिए गोरखपुर में एमडीआर टीबी से पीडि़त बच्चों को लाभ मिलेगा। अब किसी को लखनऊ या अन्य स्थानों पर भटकना नहीं पड़ेगा। दवा आने से गोरखपुर एवं आसपास के मरीजों को बड़ी राहत मिलेगी।