Khichdi: नेपाल के एकीकरण से जुड़ा है खिचड़ी चढ़ाने का इतिहास

नेपाल के राजा के राजमहल के पास ही गुरु गोरक्षनाथ की गुफा थी। उस समय के राजा ने अपने बेटे राजकुमार पृथ्वी नारायण शाह से कहा कि यदि कभी गुफा में गए तो वहां के योगी जो भी मांगे उसे मना मत करना। पर वह पहुंच ही गए।

By Satish chand shuklaEdited By: Publish:Wed, 13 Jan 2021 07:30 AM (IST) Updated:Wed, 13 Jan 2021 07:22 PM (IST)
Khichdi: नेपाल के एकीकरण से जुड़ा है खिचड़ी चढ़ाने का इतिहास
गोरखपुर के गोरख नाथ मंदिर का दृश्‍य।

गोरखपुर, जेएनएन। बाबा गोरखनाथ के दरबार में मकर संक्रांति पर नेपाल राज परिवार की ओर से भी खिचड़ी चढ़ाई जाती है। इसके पीछे का इतिहास नेपाल के एकीकरण से जुड़ा है।

गुरु गोरक्षनाथ संस्कृत विद्यापीठ के आचार्य डॉ. रोहित मिश्र बताते हैं नेपाल के राजा के राजमहल के पास ही गुरु गोरक्षनाथ की गुफा थी। उस समय के राजा ने अपने बेटे राजकुमार पृथ्वी नारायण शाह से कहा कि यदि कभी गुफा में गए तो वहां के योगी जो भी मांगे, उसे मना मत करना। जिज्ञासावश शाह खेलते हुए वहां पहुंच गए और गुरु ने उनसे दही मांग दी। राजकुमार अपने माता-पिता संग दही लेकर जब गुरु के पास पहुंचे तो उन्होंने दही का आचमन कर युवराज के अंजुलि में उल्टी कर दी और उसे पीने को कहा। युवराज की अंजुलि से दही उनके पैरों पर गिर गई। लेकिन बालक को निर्दोष मानकर नेपाल के एकीकरण का वरदान गुरु ने दे दिया। बाद में इसी राजकुमार ने नेपाल का एकीकरण किया। तभी से नेपाल नरेश व वहां के लोगों के लिए बाबा गोरखनाथ आराध्य देव हैं। राजपरिवार से खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा भी तभी से शुरू हुई जो आज तक चली आ रही है। मंदिर प्रबंधन ने इस परंपरा में एक कड़ी और जोड़ा है। शाही परिवार से खिचड़ी आने के बाद पर्व के अगले दिन मंदिर की ओर से राज परिवार को विशेष रूप से तैयार किया गया महारोट का प्रसाद भेजा जाता है। देशी घी और आटे से बनाए जाने वाले इस प्रसाद को नाथ पंथ के योगी ही तैयार करते हैं।

कांगड़ा के ज्वाला देवी मंदिर से भी जुड़ा है खिचड़ी का महात्म्य

मकर संक्रांति पर्व पर बाबा गोरखनाथ के दरबार में खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा वर्षों नहीं बल्कि युगों पुरानी है। भगवान सूर्य के प्रति आस्था से जुड़े इस पर इस पर्व पर खिचड़ी चढ़ाने का इतिहास त्रेतायुग का है, जिसका आज भी पूरी आस्था और श्रद्धा के साथ निर्वाह किया जा रहा है। मान्यता है कि त्रेता युग में गुरु गोरक्षनाथ भिक्षा मांगते हुए हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के मशहूर च्वाला देवी मंदिर गए। सिद्ध योगी को देख देवी साक्षात प्रकट हो गई और गुरु को भोजन का आमंत्रण दिया। जब गुरु पहुंचे तो वहां मौजूद तरह-तरह के व्यंजन देख ग्रहण करने से इनकार कर दिया और भिक्षा में मिले चावल-दाल ही ग्रहण करने की बात कही। देवी ने गुरु की इच्छा का सम्मान किया और कहा कि आप के द्वारा लाए गए चावल-दाल से ही भोजन कराऊंगी। उधर उन्होंने उसे बनाने के लिए पात्र में आग पर पानी चढ़ा दिया। वहां से गुरु भिक्षा मांगते हुए गोरखपुर चले आए। यहां उन्होंने राप्ती व रोहिणी नदी के संगम पर एक स्थान का चयन कर अपना अक्षय पात्र रख दिया और साधना में लीन हो गए। उसी दौरान जब खिचड़ी यानी मकर संक्रांति का पर्व आया तो लोगों ने एक योगी का भिक्षा पात्र देखा तो उसमें चावल-दाल डालने लगे। जब काफी मात्रा में अन्न डालने के बाद भी पात्र नहीं भरा तो तो लोगों ने इसे योगी का चमत्कार माना और उनके सामने श्रद्धा से सिर झुकाने लगे। तभी से गुरु के इस तपोस्थली पर खिचड़ी पर चावल-दाल चढ़ाने की जो परंपरा शुरु हुई, वह आज तक उसी आस्था व श्रद्धा के साथ चल रही है। उधर ज्वाला देवी मंदिर में आज भी बाबा गोरखनाथ के इंतजार में पानी खौल रहा है। खिचड़ी चढ़ाने की शुरुआत भोर में गोरक्षपीठाधीश्वर द्वारा होती है, उसके बाद यह सिलसिला देर शाम तक चलता रहता है। मान्यता है कि खिचड़ी चढ़ाने वाले भक्तों की हर मनोकामना शिवावतारी गुरु गोरखनाथ पूरी करते हैं।

खिचड़ी पर लगता है एक महीने का मेला

मकर संक्रांति यानी खिचड़ी से गोरखनाथ मंदिर परिसर में एक महीने तक चलने वाले मेले की शुरुआत होती है। मेले का यह सिलसिला महाशिवरात्रि तक चलता है। मेले में छोटे-बड़े झूलों और मनोरंजन के पंडालों की छटा देखने लायक होती है। खानपान की अस्थाई दुकानें और ठेले मेले का अन्य आकर्षण होते हैं।

सामाजिक समरसता है मेले की खूबी

वैसे तो गोरखनाथ मंदिर हिंदुओं की आस्था का केंद्र है लेकिन जानकार आश्चर्य होगा कि मकर संक्रांति पर लगने वाले मेले को लेकर मुस्लिम समाज में भी उतना ही उत्साह रहता है, जितना कि हिंदू समाज में। मेले की आधा से ज्यादा दुकानें और ठेले मुस्लिम समाज के लोगों द्वारा लगाए जाते हैं। मेले का लुत्फ उठाने में भी इस समाज के लोग पीछे नहीं रहते। इसके चलते मेले को सामाजिक समरसता के मिसाल के रूप में भी देखा जाता है।

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