हर बाढ़ में उजड़ जाता है नवतला-सरपतहा

हर वर्ष बसना और उजड़ना नकाही के टोला नवतला-सरपतहा वासियों की नियति बन गई है। इनकी फसलें खेत व घर बाढ़ निगल लेती है। बाढ़ के दौरान लोग छतों पर रहने को मजबूर होते हैं। खुद को जनता का रहनुमा कहे जाने वाले जनप्रतिनिधियों की इसकी कोई चिता नहीं है।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 30 Jul 2021 08:45 PM (IST) Updated:Fri, 30 Jul 2021 08:45 PM (IST)
हर बाढ़ में उजड़ जाता है नवतला-सरपतहा
हर बाढ़ में उजड़ जाता है नवतला-सरपतहा

सिद्धार्थनगर : हर वर्ष बसना और उजड़ना नकाही के टोला नवतला-सरपतहा वासियों की नियति बन गई है। इनकी फसलें, खेत व घर बाढ़ निगल लेती है। बाढ़ के दौरान लोग छतों पर रहने को मजबूर होते हैं। खुद को जनता का रहनुमा कहे जाने वाले जनप्रतिनिधियों की इसकी कोई चिता नहीं है।

गांव की आबादी पांच सौ है। जीविकोपार्जन का मुख्य स्त्रोत कृषि, मजदूरी है। बावजूद आजादी से अबतक बाढ़ का स्थायी समाधान नहीं हुआ है। पंरतु हर चुनाव में इस समस्या को ही मुद्दा बना कर वोट मांगा जाता है। बानगंगा नदी में बाढ़ आने की आहट मात्र से ग्रामीण सिहर जाते हैं। 1993 में सरपतहा गांव को तेजी से अपने आगोश में लेने को बेताब थी। तब तत्कालीन जिलाधिकारी राजेंद्र कुमार दुबे ने गांव को विस्थापित कर एक किमी पूरब बसाए थे। गांव में जाने के लिए एक भी संपर्क मार्ग नहीं है। लोगों के खेतों से होकर ग्रामीण आते जाते हैं। नदी के कटान से हजरत अली का बीस बीघा, नइमुल्लाह का बाइस बीघा, अबूहसन का दस बीघा कृषि योग्य जमीन नदी निगल चुकी है।

ग्रामीण हजरत अली ने कहा कि बाढ़ आता है तो सैकड़ों एकड़ फसल बर्बाद हो जाता है। इससे लोगों की आर्थिक स्थित खराब होती जा रही है। नदी धीरे धीरे खेतों को भी निगल रही है। प्रशासन से पिछली बार आवागमन के लिए एक छोटी नाव मिली थी। वह भी बाढ़ में बह गई। इस बार अभी तक नाव नहीं मिली है। ग्रामीण अब्बास का कहना है कि फसल उगाने के लिए जो लागत हम लोग लगाते हैं। बाढ़ के चलते वह भी नहीं निकल पाता है। चारो तरफ पानी ही पानी दिखाई देता है। जरूरी काम के लिए हम लोग गांव के बाहर जाने के लिए नाव का उपयोग करते हैं। लेकिन कब उसकी व्यवस्था होगी, यह समझ से परे है। ग्रामीण सुन्नर ने कहा कि अगर गरीबी आड़े नहीं आती तो कहीं यहां से दूर कहीं अन्य जगह बस जाते। फसल पैदा करने के लिए जो लागत लगाते हैं वह भी निकलना मुश्किल हो जाता है। पशुओं के लिए भी मुसीबत होती है। बच्चों की पढ़ाई-लिखाई भी ठीक से नहीं हो पाती। ग्रामीण एखलाख हुसैन का कहना है कि आजतक इस गांव को एक भी संपर्क मार्ग नसीब नहीं हुआ। गांव में स्थापित प्राथमिक विद्यालय बाढ़ आते ही बंद हो जाता है। बाढ़ के समय कोई बीमार हो जाए तो परेशानी बढ़ जाती है। नाव की सहारा होती है, जिसे प्रशासन मुहैया कराता है।

एसडीएम शोहरतगढ़ शिवमूर्ति सिंह ने कहा कि गांव में संपर्क मार्ग के लिए मौके पर जाकर इसका निदान कराया जाएगा। नाव की व्यवस्था है। बाढ़ से किसी को परेशानी नहीं होने पाएगी। प्रशासन पूरी तरह तैयार है।

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