मशरूम की खेती करना लाभकारी : डा. प्रदीप
कृषि विज्ञान केंद्र सोहना पर मशरूम की खेती से संबंधित पांच दिवसीय प्रशिक्षण के अंतिम दिन किसानों को मशरूम की खेती के तरीके और इसके फायदे के बारे में विस्तृत रूप से प्रशिक्षित किया गया। मशरूम विशेषज्ञ डा. प्रदीप कुमार ने कहा कि यदि किसान मशरूम की खेती करने की तरफ रूझान करें तो काफी लाभकारी होगा।
सिद्धार्थनगर : कृषि विज्ञान केंद्र सोहना पर मशरूम की खेती से संबंधित पांच दिवसीय प्रशिक्षण के अंतिम दिन किसानों को मशरूम की खेती के तरीके और इसके फायदे के बारे में विस्तृत रूप से प्रशिक्षित किया गया। मशरूम विशेषज्ञ डा. प्रदीप कुमार ने कहा कि यदि किसान मशरूम की खेती करने की तरफ रूझान करें तो काफी लाभकारी होगा।
डा. प्रदीप ने कहा कि आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय की ओर से ऐसे प्रयास किए जाते हैं कि जिससे देश का अन्नदाता अपनी आय को बेहतर बना सके। किसानों से आह्वान किया कि यदि खेती के क्षेत्र में अच्छी कमाई करने का तरीका खोज रहे हैं तो बटन मशरूम बेहतर विकल्प हो सकता है। यह मशरूम की ही एक किस्म है, मगर इसमें खनिज पदार्थ और विटामिन खूब होते हैं। इसकी विशेषता है कि आप इसे झोपड़ी में लाभप्रद खेती कर सकते हैं। मशरूम स्वास्थ्य फायदे की वजह से लगातार ख्याति प्राप्त कर रही है। फुटकर में इसका मूल्य 200 से 250 रुपये प्रति किलो है।
केंद्र प्रभारी डा. ओपी वर्मा ने कहा कि मशरूम एक उत्पाद है, जिसे एक कमरे में भी उगाया जा सकता है, इसको उगाकर किसान अपनी आय बढ़ा सकता है बस आवश्यक है इस खेती को सही दिशा देने की। डा.डीपी सिंह ने बताया कि मशरूम प्रजातियों में हमारे देश में होने वाले सफेद बटन मशरूम का ज्यादातर उत्पादन मौसमी है। इसकी खेती परंपरागत तरीके से की जा सकती है। डा. एसएन सिंह ने मशरूम में पाए जाने वाले विभिन्न विटामिन, मिनरल्स पर चर्चा की। नीलम सिंह बटन मशरूम की विभिन्न व्यंजनों के बारे में विस्तार पूर्वक बताया। आसमा, अंजू गुप्ता, मुन्ना देवी, आरती, वरुण, निर्मला गुप्ता आदि उपस्थित रहे। धान की फसल पर गंधी-बग कीटों का हमला
सिद्धार्थनगर : अगेती धान किस्म की फसल में बालियां आते ही गंधी बग कीटों का प्रकोप हो गया है। छोटे चिपकने वाले कीट बालियों का रस चूस रहे हैं, जिसके चलते निकली बालियां पीली पड़ती जा रही हैं। किसानों के माथे पर चिता की लकीरें हैं, कि वह फसल को कैसे बचाएं।
भनवापुर विकास क्षेत्र में धान की फसल पर इन दिनों गंधी बग कीटों ने हमला बोल दिया है। राप्ती तटवर्ती लगभग 20 से अधिक गांव में अगेती धान सांभा मंसूरी, दामिनी, नीलम, बासमती प्रजाति की रोपाई अधिक हुई है। सितंबर माह से इसमें बालियों के निकलने की प्रक्रिया चल रही है, लेकिन इसी बीच गंधी बग कीटों ने किसानों को परेशानी में डाल दिया है। उन्हें चिता खाए जा रही है कि इनसे निजात नहीं मिली तो उत्पादन बुरी तरह से प्रभावित होगा। किसान दिलीप तिवारी, मोहसिन ने बताया कि यह कीट बालियों पर बैठकर रस चूस ले रहे हैं, जिससे बालियों में दाने नहीं पड़ रहे और वह पीली दिखने लगी है। बाजार से लाकर कीटनाशक भी छिड़का, लेकिन कोई लाभ नहीं दिख रहा। मनोज गौतम व केशव कहते हैं कि पहले बाढ़ के पानी से फसल प्रभावित हुई, अब इन कीटों से बचाना मुश्किल हो रहा है।
यह करें उपाय-
कृषि विज्ञान केंद्र सोहना के विज्ञानी डा. मारकंडेय सिंह ने बताया कि फसल में इन कीटों का प्रकोप दिखने पर एडाजिरैक्टीन 0.15 फीसद ईसी 2.5 लीटर मात्रा में प्रति हेक्टेयर की दर से 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। मैलाथियान पांच फीसद अथवा फेनवेलरेट 0.04 फीसद धूल की 20 से 25 किग्रा मात्रा का प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।