देवरिया की इस घटना से दहल गई थी ब्रिटिश हुकूमत, सौ महिलाओं ने क‍िया था जल जौहर

आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों से आमने-सामने की लड़ाई करने वाले पैना गांव का बलिदान आज भी अपनी पहचान के लिए मोहताज है। यहां के वीर तोप के गोलों की परवाह किए बिना अंग्रेजों से लड़े और सौ से अधिक महिलाओं ने सरयू नदी में जल जौहर किया था।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Publish:Sat, 31 Jul 2021 02:14 PM (IST) Updated:Sat, 31 Jul 2021 08:42 PM (IST)
देवरिया की इस घटना से दहल गई थी ब्रिटिश हुकूमत, सौ महिलाओं ने क‍िया था जल जौहर
देवरिया का पैना गांव। आजादी की लड़ाई में इस गांव के लोगों बढ़ चढ़कर ह‍िस्‍सा ल‍िया था। - फाइल फोटो

देवर‍िया, श्रवण कुमार गुप्त : देवरिया का पैना गांव किसी पहचान का मोहताज नहीं है। सरयू नदी के तट पर बसे इस गांव के वीर सपूत तोप के गोलों की परवाह किए बिना अंग्रेजों से लड़े थे, वहीं सौ से अधिक महिलाओं ने उफनती हुई सरयू नदी में जल जौहर किया था। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों से आमने-सामने की लड़ाई करने वाले पैना गांव का बलिदान आज भी लोगों के के जेहन में है। यहां 395 महिला-पुरुष व बच्‍चे आजादी के यज्ञ की समिधा बने थे। अपनी तरह के इस पहले बलिदान को इतिहास ने जगह नहीं दी तो आजादी के बाद भी इसे पहचान दिलाने की कोशिश नहीं हुई। 75वें स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में मनाए जा रहे आजादी के अमृत महोत्सव में भी पैना का बलिदान याद नहीं किया गया।

1857 की लड़ाई का भरपूर साक्ष्य होने के बावजूद यहां के इतिहास पर नहीं हुआ शोध कार्य

सम्राट बहादुर शाह जफर के झंडे के नीचे पैना के जमींदारों ने 31 मई 1857 को ईस्ट इंडिया कंपनी का अधिपत्य नकारते हुए विद्रोह की घोषणा कर दी थी। छह जून 1857 को बड़हलगंज के नरहरपुर के राजा हरिप्रसाद सिंह ने सहयोगियों एवं पैना के जमींदार ठाकुर सिंह, शिवव्रत सिंह, पल्टन सिंह, शिवजोर सिंह के साथ मिलकर अंग्रेजों का खजाना, रसद और हथियार लूट लिया था। तब आजमगढ़ अंग्रेजों की बड़ी छावनी थी और गोरखपुर का खजाना भी वही रहता था। बड़हलगंज में हुई इस घटना के बाद कंपनी बौखला गई और उसने 28 जून 1857 को पूरी कमिश्नरी, जिसमें वर्तमान का आजमगढ़, गोरखपुर और बस्ती मंडल शामिल था, में मार्शल ला घोषित कर दिया। इस घटना ने क्षेत्र में एक स्फूर्ति भर दी थी। पैना, नरहरपुर, सतासी, पडिय़ापार, चिल्लूपार आदि में विद्रोही सैनिक तैयार हो रहे थे। पैना प्रमुख गढ़ बना, जहां 600 से अधिक सैनिक हमेशा रहते थे। यहां के नेता ठाकुर सिंह थे।

शहीदों को न नाम मिला न गांव को पहचान

31 जुलाई 1857 को अंग्रेज सैनिकों ने पैना गांव पर जल एवं थल मार्ग से तोप से हमला किया था। इसमें 85 ग्रामीण मौके पर शहीद हो गए। 200 से अधिक बच्‍चे और बुजुर्ग आगजनी में जलकर मर गए। फिरंगियों के हाथ न लगने की कसम खाने वाली 100 महिलाओं ने उफनती सरयू नदी में कूदकर सतीत्व की रक्षा की। कई महिलाएं सतीवढ़ में सती हो गईं। वह स्थान आज सतीहड़ा कहा जाता है। यह शहीद स्मारक के निकट मंदिरों के रूप में है।

जब्त कर लिया था गांव

नरहरपुर के राजा हरिप्रसाद सिंह, सतासी रुद्रपुर के राजा उदित नारायण सिंह, कुंवर सिंह के चचेरे भाई हरिकृष्ण सिंह, पांडेयपार, चिल्लूपार, शाहपुर के इनायत अली इस युद्ध में शामिल हुए। दक्षिण पूर्व के तीन सैनिकगढ़ पैना, नरहरपुर, सतासी के बीच बेहतर तालमेल था। अयोध्या सिंह, अजरायल सिंह, बिजाधर सिंह, माधव सिंह, देवीदयाल सिंह, डोमन सिंह, तिलक सिंह, ठाकुर सिंह के विश्वस्त सहयोगी थे। अंग्रेजों ने पूरे इलाके में कब्जा कर लिया। कमिश्नर के आदेश पर 23 अगस्त 1858 को पहले 16 फिर आठ और गांवो को पैना से जब्त कर मझौली को दे दिया गया।

स्‍वाधीनता संग्राम में पैना के रणबांकुरों का महत्‍वपूर्ण योगदान

इतिहासकार डा. दिवाकर प्रसाद तिवारी ने बताया कि स्वाधीनता संग्राम में पैना के रणबांकुरों का महत्वपूर्ण योगदान है। अंग्रेजों से युद्ध में जल जौहर इतिहास की अकेली घटना है। पैना शहीद स्थल को पहचान दिलाने के लिए शोध और विकास की जरूरत है।

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