गोरखपुर में फर्जी हस्ताक्षर से जीडीए में दाखिल कर दिए 100 से अधिक मानचित्र, जांच शुरू
लखनऊ आर्किटेक्ट एसोसिएशन के 17 साल तक अध्यक्ष रहे प्रसिद्ध आर्किटेक्ट जितेंद्र त्रिपाठी ने अपनी शिकायत में बताया है कि जीडीए में दाखिल 100 से अधिक मानचित्रों में उनके फर्जी हस्ताक्षर एवं काउंसिल आफ आर्किटेक्चर (सीओए) के पंजीकरण नंबर का उपयोग किया गया है।
गोरखपुर, जागरण संवाददाता। मेरठ विकास प्राधिकरण में मानचित्र में फर्जीवाड़े के बाद गोरखपुर विकास प्राधिकरण (जीडीए) में भी आर्किटेक्ट के फर्जी हस्ताक्षर व गलत तरीके से पंजीकरण संख्या का प्रयोग कर मानचित्र दाखिल करने व पास कराने का मामला प्रकाश में आया है। लखनऊ के आर्किटेक्ट जितेंद्र त्रिपाठी ने जीडीए के अध्यक्ष/मंडलायुक्त रवि कुमार एनजी एवं उपाध्यक्ष आशीष कुमार को ई मेल भेजकर लिखित शिकायत की है। आशंका जताई जा रही है कि केवल उन्हीं के फर्जी हस्ताक्षर से 100 से अधिक मानचित्र दाखिल किए गए, जिसमें से 50 से अधिक पास भी हो चुके हैं। उनके नाम पर पिछले करीब तीन साल से मानचित्र दाखिल किए गए हैं। अब जीडीए के अधिकारियों ने इस मामले में जांच शुरू करा दिया है। आर्किटेक्ट एसोसिएशन ने फर्जी तरीके से पास हुए मानचित्रों को निरस्त करते हुए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ एफआइआर दर्ज कराने की मांग की है।
आर्किटेक्ट ने की शिकायत
लखनऊ आर्किटेक्ट एसोसिएशन के 17 साल तक अध्यक्ष रहे प्रसिद्ध आर्किटेक्ट जितेंद्र त्रिपाठी ने अपनी शिकायत में बताया है कि जीडीए में दाखिल 100 से अधिक मानचित्रों में उनके फर्जी हस्ताक्षर एवं काउंसिल आफ आर्किटेक्चर (सीओए) के पंजीकरण नंबर का उपयोग किया गया है। जालसाजों ने गलत तरीके से मानचित्र पास भी करा लिया है। इसमें आवासीय एवं व्यावसायिक, दोनों तरह के मानचित्र हैं। क्षेत्रफल भी 350 वर्ग मीटर तक का है। गोरखुपर आर्किटेक्ट एसोसिएशन ने यह मामला मंडलायुक्त के सामने उठाया था, उस समय जीडीए के भी अधिकारी मौजूद थे। पर, इस मामले में कोई ठोस जानकारी जीडीए के अधिकारी नहीं दे सके थे। शासन की ओर से आनलाइन मानचित्र स्वीकृत करने के लिए पेार्टल विकसित कराया गया है, उसके बावजूद फर्जीवाड़े का मामला आना अचंभित करता है। गोरखपुर आर्किटेक्ट एसोसिएशन के मनीष मिश्रा का कहना है कि आनलाइन व्यवस्था में पारदर्शिता के साथ फर्जीवाड़े की भी आशंका रहती है। मनीष इस मामले में मंडलायुक्त से मिलकर भी कार्रवाई की मांग कर चुके हैं। उनका कहना है कि आनलाइन साफ्टवेयर में डिजिटल सिग्नेचर की व्यवस्था भी होनी चाहिए।
नए सिस्टम में भी फर्जीवाड़े की आशंका
जीडीए का तर्क था कि आर्किटेक्ट के नाम का गलत इस्तेमाल किया गया है तो वह कार्रवाई कर सकते हैं लेकिन आर्किटेक्ट का कहना है कि जब जीडीए में फर्जीवाड़ा हुआ है तो उनके स्तर से कार्रवाई में हीला-हवाली क्यों की जा रही है। अधिकारी तर्क दे रहे हैं कि पुरानी व्यवस्था में फर्जीवाड़े की आशंका थी, नए सिस्टम में संभव नहीं है। पर, आर्किटेक्ट इस तर्क से संतुष्ट नहीं हैं। उनके अनुसार किसी आर्किटेक्ट के पंजीकरण नंबर का प्रयोग कर जालसाज अपना मोबाइल नंबर, ई मेल डालकर मानचित्र दाखिल कर सकता है। आर्किटेक्ट के डिजिटल सिग्नेचर की व्यवस्था लागू करने की मांग आर्किटेक्ट एसोसिएशन ने की है लेकिन अभी तक इस पर कोई कार्यवाही नहीं हुई।
आर्किटेक्ट जितेंद्र त्रिपाठी का कहना है कि 2018 में मुझे सूचना मिली थी कि मेरे फर्जी हस्ताक्षर का उपयोग कर जीडीए में मानचित्र दाखिल किया जा रहा है। उस समय भी मैंने अगस्त महीने में दो से तीन बार शिकायत की थी लेकिन तत्कालीन उपाध्यक्ष का स्थानांतरण हो जाने से कोई कार्रवाई नहीं हुई। इधर मेरठ विकास प्राधिकरण में फर्जीवाड़ा सामने आने पर एसोसिएशन सक्रिय हुआ है तो फिर मैनें शिकायत की है। मेरी जानकारी के अनुसार 50 से अधिक मानचित्र पास हो चुके हैं। करीब 20 मानचित्रों का सबूत मेरे पास है। इसमें प्राधिकरण को कार्रवाई करनी चाहिए क्योंकि कोई हादसा हुआ तो पहले आर्किटेक्ट को ही दोषी ठहराया जाएगा। उपाध्यक्ष जीडीए आशीष कुमार का कहना है कि मामला संज्ञान में आया है। नए साफ्टवेयर में गड़बड़ी नहीं है। यह एक साल पहले का मामला है। इसमें जांच कराई जा रही है। जांच के बाद ही आगे कोई कार्रवाई होगी।