मानसिक बीमार लोगों की सेवा करते-करते लौट आई याददाश्त Gorakhpur News

आजाद पांडेय मानसिक रूप से बीमार पांच हजार लोगों को न सिर्फ नया जीवन दे चुके हैं बल्कि इलाज कराने के साथ भीख मांगने वाले बच्चों को शिक्षा भी दे रहे हैं।

By Satish ShuklaEdited By: Publish:Wed, 12 Aug 2020 12:18 PM (IST) Updated:Wed, 12 Aug 2020 12:18 PM (IST)
मानसिक बीमार लोगों की सेवा करते-करते लौट आई याददाश्त Gorakhpur News
मानसिक बीमार लोगों की सेवा करते-करते लौट आई याददाश्त Gorakhpur News

गोरखपुर, जेएनएन। कहते हैं कि दूसरों भला करने वालों के साथ कभी बुरा नहीं होता। कुछ ऐसा ही हुआ 34 वर्षीय श्रीकृष्ण पांडेय उर्फ आजाद पांडेय के साथ। साल 2006 में अपनी याददाश्त गंवा चुके आजाद का इलाज कराते-कराते मां-बाप थक गए थे। लेकिन, धीरे-धीरे याददाश्त लौटी तो मानसिक रूप से अस्वस्थ लोगों की सेवा करते-करते। अब वह पूरी तरह ऐसे लोगों की जिंदगी संवारने में जुट गए हैं।

मानसिक रूप से बीमार पांच हजार लोगों को न सिर्फ नया जीवन दे चुके हैं बल्कि इलाज कराने के साथ भीख मांगने वाले बच्चों को शिक्षा भी दे रहे हैं। सेवा भी ऐसे लोगों की करते हैं जिन्हें दूर से देखकर लोगों के मन में दया के भाव जरूर आते हैं लेकिन जैसे ही वह पास आने लगते हैं तो उन्हें पागल बोलकर दुत्कारते हैं। आजाद न सिर्फ ऐसे लोगों को अपना रिश्तेदार बताते हैं बल्कि उनसे बात करते हैं, बेटा बनकर उनको नहलाते-धुलाते हैं। खुद ही उस्तरा लेकर बाल और दाढ़ी बनाते हैं। बीआरडी मेडिकल कालेज में मरीजों व तीमारदारों को भोजन उपलब्ध कराने का काम भी यह आजाद कर रहे हैं।

बात कर बना लेते हैं अपना

आजाद पांडेय ऐसे लोगों को देखते हैं तो तत्काल उनके पास पहुंचते हैं। बात करते-करते बिल्कुल करीब जाते हैं। हाथों में हाथ लेकर कब उनके रिश्तेदार बन जाते हैं, पता ही नहीं चलता। अब 18 युवा आजाद की राह पर उनके साथी के रूप में लोगों की सेवा कर रहे हैं। कैंपियरगंज के मूसावर निवासी आजाद की मां आशा देवी, पिता लालजी पांडेय और पत्नी अनामिका पांडेय भी उनको प्रोत्साहित करती हैं।

भीख माफिया से लडऩी पड़ी लड़ाई

वर्ष 2006 में सड़क हादसे आजाद की याददाश्त चली गई थी। हादसे के बाद से ही स्वजन उनकी याददास्‍त वापस ले आने के लिए दौड़-भाग कर रहे थे। दिल्ली के लिए ट्रेन पकडऩे आजाद गोरखपुर रेलवे स्टेशन पर थे। वहां पटरियों पर एक छोटी बच्ची ट्रेन से गिरी गंदगी खा रही थी। आजाद ने इशारा किया तो स्वजन ने बच्ची को भोजन कराया और नए कपड़े पहनाए। दिल्ली से लौटने के बाद आजाद उस बच्ची के पास जाने की जिद करने लगे तो रेलवे स्टेशन पर तलाश कराई गई पर बच्ची तो नहीं मिली। लेकिन आजाद हमेशा के लिए रेलवे स्टेशन पर रहने वाले बच्चों और मानसिक अस्वस्थों के होकर रह गए। बताते हैं कि, 'भीख मांगने वाले बच्चों को शाम को पढ़ाने लगा तो वह बिहार से आने वाली ट्रेनों में भीख नहीं मांग पाते। इससे परेशान भीख माफिया ने उनके खिलाफ एफआइआर करा दी, स्टेशन में घुसने से रोक दिया गया। तब मैंने रेलवे बोर्ड में याचिका दाखिल की। दिल्ली में सुनवाई कर रहे जज को जब हकीकत पता चली तो वह हर सुनवाई पर मुझे आने-जाने का किराया और पांच हजार रुपये नकद देते थे। वर्ष 2016 में केस जीता तो रेलवे के महाप्रबंधक कार्यालय के बगल में बच्चों को पढ़ाने के लिए एक जगह मिली। वहां इस समय स्कूल ऑफ स्माइल खुला है। सीतापुर आई हॉस्पिटल में शहर में भीख मांगने वाले बच्चों के लिए भी स्कूल चलाता हूं।

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