भाड़े पर खेती का भरपूर लाभ, खीरा-टमाटर व लौकी का बेहिसाब पैदावार Gorakhpur News

मूल रूप से महराजगंज जिले के बेला टीकर गांव के रहने वाले रामनगीना के परिवार का भाड़े पर खेत लेकर सब्जी उगाने का पेसा खानदानी है। आठवीं की पढ़ाई करने के बाद ही उन्होंने पिता के साथ मिलकर सब्जी उगाने और बेचने का काम शुरू किया।

By Satish Chand ShuklaEdited By: Publish:Wed, 12 May 2021 05:48 PM (IST) Updated:Wed, 12 May 2021 06:34 PM (IST)
भाड़े पर खेती का भरपूर लाभ, खीरा-टमाटर व लौकी का बेहिसाब पैदावार Gorakhpur News
सब्जी के खेत में टमाटर तोड़ते रामनगीना, जागरण।

गोरखपुर, जेएनएन। भटहट इलाके के चख्खान मोहम्मद गांव में भाड़े के खेत में सब्जी उगा रहे रामनगीना न केवल अच्छी कमाई कर रहे हैं, कोरोना का संक्रमण शुरू होने के बाद बल्कि बड़ी संख्या में महानगरों से लौटकर आए इलाके के प्रवासी कामगारों को रोजगार भी दे रहे हैं। उन्होंने गांव के पास तीन एकड़ खेत भाड़े पर ले रखा है। इसमें खीरा, टमाटर, करैला व लौकी जैसी सब्जियां उगा रहे हैं। महानगरों से लौटे क्षेत्र के प्रवासी कामगारों को उन्होंने सब्जियों की सिंचाई करने से लेकर उन्हें तोडऩे और गांव में घूमकर बेचने के काम पर लगा रखा है।

खेती करने के लिए चले जाते हैं महराजगंज तक

मूल रूप से महराजगंज जिले के बेला टीकर गांव के रहने वाले रामनगीना के परिवार का भाड़े पर खेत लेकर सब्जी उगाने का पेसा खानदानी है। आठवीं की पढ़ाई करने के बाद ही उन्होंने पिता के साथ मिलकर सब्जी उगाने और बेचने का काम शुरू किया। बरसात से पहले वह भटहट इलाके में सब्जी उगाने का काम करते हैं। बरसात शुरू होने पर महाराजगंज जिले के कछार इलाके में सब्जी उगाने चले जाते हैं। कछार की मिट्टी बलुई होने की वजह से खेत में पानी नहीं लगता। इस लिए सब्जी की अच्छी उपज होती है। इस इलाके में झमड़े पर उगने वाली कुनरू, बोड़ा, लौकी आदि की खेती करते हैं।

सब्‍जी बेचने में इलाके के युवक भी लगे, हो रही आमदनी

रामनगीना बताते हैं कि पहले वह हर दूसरे दिन सब्जी की बड़ी खेप लेकर मंडी में बेचने जाते थे। लाक डाउन की वजह से सब्जी लेकर मंडी जाने में कई तरह की दिक्कत आ रही है। इसलिए आसपास के गांवों में घूमकर ताजा सब्जी बेचने का काम उन्होंने शुरू किया है। इस काम में इलाके के कई युवक लगे हुए हैं। सब्जी ताजा होने की वजह से लोग खरीदने से नहीं हिचकते। रामनगीना के मुताबिक मंडी में सब्जियों की अच्छी कीमत मिल जाती थी, गांव में फेरी लगाकर बेचने में उतनी आमदनी नहीं हो पा रही है, फिर भी इतनी कमाई तो ही जा रही है कि अपना खर्च और मुनाफा लेने के बाद काम पर लगे प्रवासी कामगारों को उनकी मजदूरी दी आसानी से निकल जा रही है। वह कहते हैं कि सब्जी की खेती से प्रत्येक वर्ष वह छह से सात लाख रुपये की बचत कर लेते हैं।

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