कारगिल में बहा था महराजगंज का लहू, शहीद हुए थे दो लाल

28 मई 1999 को शहीद होने के बाद जब तिरंगे में लिपटा पूरन थापा का शव नौतनवा कस्बे में पहुंचा था तो आंखें नम लेकिन सीना चौड़ा था। मां सुमित्रा देवी ने कहा था कि बेटा असमय चला गया दुख है लेकिन इस बात का गर्व है कि मेरा लाल देश की रक्षा करते हुए शहीद हुआ। पूरन थापा के जाने का गम लोग भुला भी नहीं पाए थे कि नौ नवंबर 1999 को नौतनवा के महेंद्र नगर निवासी प्रदीप कुमार थापा के शहीद होने की सूचना मिली।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 26 Jul 2021 12:49 AM (IST) Updated:Mon, 26 Jul 2021 12:49 AM (IST)
कारगिल में बहा था महराजगंज का लहू, शहीद हुए थे दो लाल
कारगिल में बहा था महराजगंज का लहू, शहीद हुए थे दो लाल

महराजगंज : कारगिल की ऊंची चोटियों पर महराजगंज का लहू भी बहा था। दुश्मनों से लड़ते हुए नौतनवा के दो लाल भी शहीद हुए थे। भारतीय सेना के रणबाकुंरों पूरन बहादुर थापा और प्रदीप कुमार थापा की शहादत को तराई के लोग बड़ी शिद्दत से याद करते हैं। अलग-अलग समय पर शहीद हुए दोनों जवान तिरंगे में लिपटे हुए पहुंचे थे और महराजगंज के हर दिल में देशभक्ति की लहरें हिलोर मार रही थीं। जज्बात आसमान छू रहे थे। वह जज्बात आज भी कायम है। पूरन के भाई और बेटे भी सेना में भर्ती हुए तो नौतनवां के सैनिक गांव के नाम से मशहूर उदितपुर के युवाओं ने भी सेना में शामिल होकर देश सेवा की शपथ ली। टाइगर हिल्स पर तिरंगा फहराने वाले विनोद सिंह के साथ रिजर्व में शामिल छह जवानों ने भी कारगिल युद्ध में अपनी भूमिका को सार्थक किया। नई भर्ती के इन रिजर्व जवानों सेना मेडल से नवाजा गया था।

28 मई 1999 को शहीद होने के बाद जब तिरंगे में लिपटा पूरन थापा का शव नौतनवा कस्बे में पहुंचा था तो आंखें नम, लेकिन सीना चौड़ा था। मां सुमित्रा देवी ने कहा था कि बेटा असमय चला गया, दुख है लेकिन इस बात का गर्व है कि मेरा लाल देश की रक्षा करते हुए शहीद हुआ। पूरन थापा के जाने का गम लोग भुला भी नहीं पाए थे कि नौ नवंबर 1999 को नौतनवा के महेंद्र नगर निवासी प्रदीप कुमार थापा के शहीद होने की सूचना मिली। दोनों की शहादत आने वाली पीढि़यों को प्रेरणा देती रहे, इसके लिए नौतनवा कस्बे में उनकी प्रतिमा स्थापित की गई है। यहां हर रोज लोग उन्हें शीश झुका कर नमन करते हैं। नहीं जाने देंगे देश की एक इंच भूमि

पूरन थापा व प्रदीप कुमार थापा के शहीद होने के बाद उनके बेटे व भाई सेना में शामिल हुए। पूरन थापा के बाद छोटे भाई श्याम थापा लंबे समय तक कारगिल में तैनात रहने के बाद अब पंजाब में पाकिस्तान से लगी हुई सीमा पर तैनात हैं। श्याम कहते हैं कि भाई ने देश रक्षा में बलिदान किया है। जब तक मेरे शरीर में जान है, भारत मां की एक इंच भूमि नहीं जाने दूंगा। प्रदीप कुमार थापा के बड़े बेटे अमर बहादुर थापा तब सेना में भर्ती हो चुके थे। छोटे बेटे केहर बहादुर भी सेना में शामिल हुए और हिमाचल प्रदेश में तैनात हैं। दोनों कहते हैं, हमारे रहते कोई भारत की तरफ आंख उठा कर नहीं देख सकता है। दुश्मनों ने छिप कर मारी थी गोली

पूरन थापा की बटालियन चोटियों पर बैठी पाकिस्तानी सेना से लड़ रही थी। यह युद्ध की शुरूआत थी। एक-एक चोटी खाली कराते हुए भारतीय सैनिक आगे बढ़ रहे थे। इस दौरान ऊंची पहाड़ियों पर छिपे दुश्मनों ने हमला बोल दिया, जिसमें पूरन थापा शहीद हो गए। वहीं, 26 जुलाई को टाइगर हिल्स पर भारतीय सैनिकों के कब्जे के बाद स्थायी सुरक्षा चौकी बनाकर निगरानी शुरू हो गई थी। इस दौरान पाकिस्तान से रुक-रुक कर फायरिग की जाती रही। नौ नवंबर 1999 को पाकिस्तान की तरफ से हुई ऐसी ही फायरिग में प्रदीप बलिदान हो गए। युद्ध के दौरान सैनिक गांव से भर्ती हुए छह जवान

कारगिल युद्ध के दौरान महराजगंज का सैनिक गांव उदितपुर भी पीछे नहीं रहा। युद्ध के दौरान छह जवान सेना में भर्ती हुए थे। नायब सूबेदार मोहित गुरुंग व सोनू गुरुंग, हवलदार कमल गुरुंग, आनंद गुरुंग, संदीप गुरुंग व तेजू गुरुंग रिजर्व रखे जाने के कारण आमने-सामने का युद्ध तो नहीं कर पाए लेकिन मिली जिम्मेदारी को ऐसे निभाया कि उन्हें सेना मेडल से नवाजा गया। ये छह जवान अब अरुणाचल प्रदेश व जम्मू-कश्मीर में तैनात हैं।

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