Ayodhya Ram Mandir News: राम मंदिर की धुन में जीते थे महंत अवेद्यनाथ
बीते पांच दशक से गोरखनाथ मंदिर के लिए समर्पित रहे द्वारिका तिवारी बताते हैं कि महंत जी के जीवन की हर योजना राम मंदिर से ही जुड़ी होती थी।
गोरखपुर, जेएनएन। श्रीराम मंदिर का चिंतन उनकी दिनचर्या थी। वही जीवन का लक्ष्य। उनके जीवन का हर पल राम मंदिर को ही समर्पित था। ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ के बारे में यह कहना है गोरखनाथ मंदिर के सचिव द्वारिका तिवारी का, जिन्होंने हमेशा उन्हें राम मंदिर की धुन में ही देखा था।
श्रीराम मंदिर से ही जुड़ी होती थी उनके जीवन की हर योजना
बीते पांच दशक से गोरखनाथ मंदिर के लिए समर्पित रहे द्वारिका तिवारी बताते हैं कि महंत जी के जीवन की हर योजना राम मंदिर से ही जुड़ी होती थी। चाहे वह बनारस में संतों के साथ डोम राजा के यहां भोजन हो, सामाजिक समरसता के लिए देशभर की यात्रा हो, पटना के हनुमान मंदिर में दलित को पुजारी बनाना हो या फिर सहभोज अभियान। सबके पीछे उनका एक ही लक्ष्य था, अयोध्या में जन्मभूमि पर राम मंदिर निर्माण। बकौल मंदिर सचिव, महंत अवेद्यनाथ हमेशा कहते थे कि समस्त हिंदुओं की एकजुटता से ही राममंदिर की नींव तैयार होगी। वह बताते हैं कि अपने खिलाफ किसी तरह के दुष्प्रचार को सुनकर महंत जी विचलित नहीं होते थे। उसे भी वह राम मंदिर आंदोलन से ही जोड़ते थे। ऐसे अवसरों पर उनकी प्रतिक्रिया सिर्फ इतनी होती थी कि राम मंदिर न चाहने वालों की यह साजिश है, पथ से भटकाने की। रामचंद्र परमहंस और अशोक ङ्क्षसहल से अवेद्यनाथ के रिश्ते की चर्चा करना भी द्वारिका तिवारी नहीं भूलते। बताते हैं कि तीनों महापुरुषों का लक्ष्य राम मंदिर ही था, सो खूब पटती थी उनमें। जब अवसर मिलता था, मुलाकात की राह खोज लेते। फोन पर बातचीत का सिलसिला तो अनवरत चलता। रही-सही कसर चिटि्ठयां पूरा कर देती थीं। मुलाकात से लेकर चिटि्ठयें में, बस एक ही चिंता, राम मंदिर कैसे बनेगा? द्वारिका तिवारी यह कहकर भावुक हो जाते हैं कि महंत अवेद्यनाथ की ख्वाहिश जीते जी जन्मभूमि पर राम मंदिर देखने की थी।
एंबुलेंस के साथ भेजना पड़ा प्रयागराज
द्वारिका तिवारी बताते हैं कि 2013 में राम मंदिर को लेकर प्रयागराज में होने वाले धर्म सम्मेलन की अध्यक्षता के लिए महंत अवेद्यनाथ को आमंत्रित किया गया। उनकी तबीयत ठीक नहीं थी, लेकिन जब सम्मेलन के लिए उन्हें अशोक सिंहल का संदेश मिला तो उन्होंने जाने की जिद ठान ली। गुरु की जिद पूरी करने के लिए योगी आदित्यनाथ को डॉक्टरों की टीम और एंबुलेंस के साथ उनके प्रयागराज जाने का इंतजाम करना पड़ा था। उनकी देखभाल के लिए साथ में योगी आदित्यनाथ भी गए थे।
धुन ऐसी कि फ्रैक्चर को कर दिया नजरअंदाज
उन्नीसवीं शताब्दी के नौवें दशक की एक घटना का जिक्र करते हुए द्वारिका तिवारी बताते हैं कि मीनाक्षीपुरम में धर्मांतरण की घटना से दुखी होकर महंत अवेद्यनाथ ने राजनीति छोड़ दी। उसके बाद उन्होंने देशभर में घूम-घूम कर राम मंदिर के लिए जन-जागरण का काम किया। इसी क्रम में पैदल चलने के दौरान उन्हें पैर में चोट आ गई तो उन्होंने उसपर ध्यान ही नहीं दिया और चलते रहे। जब गोरखपुर लौटे तो जांच में पता चला कि वह कोई मामूली चोट नहीं बल्कि फ्रैक्चर था।