ये है जैविक खेती का कमाल, 30 हजार की नौकरी छोड़ी अब प्रतिमाह कमाते हैं 80 हजार रुपये Gorakhpur News

वह दूध चावल गेहूं व सब्जियों की बिक्री के जरिये प्रतिमाह घर बैठे 70 से 80 हजार रुपये की आय अर्जित करते हैं। इससे पूर्व वह वर्ष 2007 में आइएसओ सर्टिफिकेशन में एरिया मैनेजर की नौकरी करते थे। उनके पास उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड का चार्ज था।

By Satish ShuklaEdited By: Publish:Sat, 31 Oct 2020 09:12 AM (IST) Updated:Sat, 31 Oct 2020 09:38 AM (IST)
ये है जैविक खेती का कमाल, 30 हजार की नौकरी छोड़ी अब प्रतिमाह कमाते हैं 80 हजार रुपये Gorakhpur News
जैविक खेती से उत्‍तपन्‍न ब्रोकली को दिखाते हरिगोविंद सिंह।

जितेन्द्र पाण्डेय, गोरखपुर। खजनी विकास खंड के ग्राम बघैला निवासी हरिगोविंद सिंह आज प्राकृतिक खेती के लिए एक नजीर बनकर उभरे हैं। अपने तीन एकड़ खेत में वह सब्जी, धान, गेहूं से लेकर पूरी खेती जैविक विधि से करते हैं। पिछले पांच वर्षों से खेतों में रासायनिक उर्वकों का प्रयोग नहीं कर रहे हैं। यहां जैविक खाद भी वह देसी गायों के गोबर से तैयार करते हैं। उन्होंने 10 देसी गाएं पाल रखी हैं। इनके गोबर व मूत्र से उन्हें न रासायनिक उर्वरक की जरूरत पड़ती है और न ही रासायनिक कीटनाशकों की। 

घर बैठे होती है सब्जियों की बिक्री

वह दूध, चावल, गेहूं व सब्जियों की बिक्री के जरिये प्रतिमाह घर बैठे 70 से 80 हजार रुपये की आय अर्जित करते हैं। इससे पूर्व वह वर्ष 2007 में आइएसओ सर्टिफिकेशन में एरिया मैनेजर की नौकरी करते थे। उनके पास उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड का चार्ज था। प्रतिमाह 30 हजार रुपये वेतन पाते थे। लेकिन सर्वाइकल पेन के चलते काम करने में कठिनाई आई तो नौकरी छोड़ दिया। चिकित्सकों ने खान पान को लेकर सलाह दिया कि वह प्राकृतिक उत्पादों से तैयार अनाज खाएं। इससे लाभ मिलेगा। पहले खेतों में सिर्फ अपने लिए प्राकृतिक खाद से अनाज व सब्जियां उगाने लगे। धीरे-धीरे रिश्तेदारी व परिचित लोगों इसकी मांग होने लगी तो उन्होंने व्यापक स्तर पर यह कार्य शुरू कर दिया। पिछले पांच वर्षों में उनकी खेती पूरी तरह से प्राकृतिक खाद पर निर्भर हो गई है। वह अपने खेतों में धान गेहूं के अलावा ब्रोकली, गोभी, बैगन, लौकी आदि सब्जियां उगाते हैं।

वाट्सएप पर बिकती हैं सब्जियां व अनाज

हरिगोविंद सिंह  ने वाट्सएप पर अपने परिचितों का एक ग्रुप बना रखा हैं। इसमें गोरखपुर सहित लखनऊ व कानपुर के लोग जुड़े हैं। ऐसे में चावल व गेहूं की बिक्री जिले से बाहर भी होती है। इसकी इन्हें अच्छी कीमत भी मिलती है, जबकि सब्जियां बाजार से अधिक कीमत पर उनके खेत से ही बिक जाती हैं। ऐसे ही वह देसी दूध भी अच्छी कीमत पर बेचते हैं।

एफपीओ के किसानों ने भी शुरू की जैविक खेती

प्राकृतिक व जैविक खेती के उत्पादों की मांग बहुत है। इसी लिए इन उत्पादों की बाजार में अच्छी कीमत है। सबसे अच्छी बात है कि लोगों पता चल जाए कि आप पूरी ईमानदारी के साथ जैविक खेती कर रहे हैं तो लोग घर तक उत्पाद खरीदने आते हैं। आज हरिगोविंद सिंह के गांव के ही विवेक सिंह, रामबचन आदि जैविक खेती करके अच्छा लाभ कमा रहे हैं।  जिला कृषि अधिकारी अरविंद चौधरी कहते हैं कि हरिगोविंद सिंह अच्छा काम कर रहे हैं। वह चाहते हैं कि यह क्षेत्र प्राकृतिक खेती का केंद्र बने। ऐसे में वह एक कृषि उत्पादक संगठन(एफपीओ) से जुड़े हैं। लोगों को इसके लिए प्रेरित कर रहे हैं और किसानों के जरिये इस खेती का प्रचार भी हो रहा है।

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