पूर्वजों के पर्यावरण प्रेम को आगे बढ़ा रहे कुंवर विक्रम

पूर्वजों के पद चिह्न पर चलते हुए मिठवल ब्लाक के सेहरी बुजुर्ग निवासी 38 वर्षीय कुंवर विक्रम सिंह पर्यावरण प्रेम को आगे बढ़ा रहे हैं। उनकी 20 एकड़ भूमि में एक हजार से अधिक विभिन्न प्रजाति के वृक्ष लहलहा रहे हैं।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 22 Apr 2021 06:00 AM (IST) Updated:Thu, 22 Apr 2021 06:00 AM (IST)
पूर्वजों के पर्यावरण प्रेम को आगे बढ़ा रहे कुंवर विक्रम
पूर्वजों के पर्यावरण प्रेम को आगे बढ़ा रहे कुंवर विक्रम

सिद्धार्थनगर : पूर्वजों के पद चिह्न पर चलते हुए मिठवल ब्लाक के सेहरी बुजुर्ग निवासी 38 वर्षीय कुंवर विक्रम सिंह पर्यावरण प्रेम को आगे बढ़ा रहे हैं। उनकी 20 एकड़ भूमि में एक हजार से अधिक विभिन्न प्रजाति के वृक्ष लहलहा रहे हैं। बढ़ते वायु प्रदूषण के चलते जहां आम जनों का सांस लेना मुहाल है, वहीं इनकी अमराई से खुशबूदार हवा वातारण को स्वच्छ बना रही है।

सिक्किम विश्वविद्यालय से एमबीए की पढ़ाई कर चुके कुंवर द्वारा रोपित मधूक, अमरूद, सांगवान के पेड़ भी वायु को तरोताजा कर रहे हैं। इतना ही नहीं घर के अंगनाई में सैकड़ों की संख्या में लगे देशी विदेशी फूल गेंदा, गुलाब, जूही, चमेली, रातरानी, एलोवेरा आदि भी खुशबू बिखेर रहे हैं। संपन्न घराने में पैदा होने के बावजूद वह इन वृक्षों की सेवा स्वयं भी करते हैं। निराई, गुड़ाई, खाद, दवाई सभी की व्यवस्था कुंवर स्वयं देखते हैं।

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कुंवर से प्रेरित हुए गांव के कई युवा

तिगोड़वा निवासी शारदा चौधरी, धनघटा निवासी आत्माराम पटेल, मनिकौरा तिवारी निवासी त्रयंबक मणि त्रिपाठी, राम फेर पासवान, सिसई खुर्द निवासी विकास चंद कौशिक व गुरू प्रसाद चौधरी, बरगदी निवासी रमेश धर द्विवेदी ने भी बागवानी शुरू कर दी है। सभी कहते हैं कुंवर विक्रम की बागवानी देख इस ओर हम अग्रसर हुए।

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पूर्वजों से मिली पर्यावरण सुरक्षा की प्रेरणा : कुंवर विक्रम सिंह कहते हैं कि हमारे बाबा मेजर रणजीत सिंह फौजी थे, 62 के लाहौर विजय में अहम भूमिका निभाने के कारण उन्हें लाहौर विजेता कहा जाता था। वह सेवानिवृत्त होकर जब घर आए तो उन्होंने प्रकृति के सानिध्य में ही अपना शेष जीवन बिताने का निश्चय किया ,उस समय अपने खेत में उन्होंने 500 पौधे लगवाये, और उनकी निगरानी स्वयं करने लगे, धीरे धीरे वह पौधे वृक्ष वन गये, उन्होंने विश्व रक्षक नामक संस्था भी बनायी ,जिसके तहत घूम घूम पर्यावरण की अलख जगाने लगे, फिर उम्र बढ़ने के कारण यह जिम्मेदारी उनके अनुज कुंवर अजय सिंह ने संभाल लिया ,इन्होंने भी सैकड़ों पौधे रोपवाए, दोनों भाइयों के रोपे हुए 7-8 सौ वृक्ष आज भी फिजा को महका रहे हैं। दोनों लोगों के परलोक गामी होने के बाद उनके पौत्र कुंवर विक्रम सिंह ने इस विरासत को संभालते हुए सभी वृक्षों की सुरक्षा सुनिश्चित किया, सभी को सीमेंट के खंभे व कटीले तार से घेरा, दवाई-पानी का प्रबंध किया और स्वयं भी 20 एकड़ भूमि में पौधारोपण किया,अब वह भी पेड़ बन चुके हैं । भावुक होकर कुंवर कहते हैं,सच मानिए तो हमें प्रेरणा हमारे पूर्वजों से ही मिली। प्रकृति प्रेम से हमारा खानदानी नाता रहा है, अब तो हमारा पर्यावरण से भावनात्मक रिश्ता हो गया है। इससे होने वाले आर्थिक लाभ के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा कि अब फलदार वृक्ष है तो लाभ तो होगा ही, लेकिन असल मकसद धरती को बचाना ही है।

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