तराई में मत्स्य क्रांति के अग्रदूत बने कपूर चंद
बंगाल छोड़ तराई में मत्स्य प्रजनन की डाली नीव
महराजगंज, जेएनएन: वैसे तो तराई को पिछड़े और संसाधन विहीन भरी नजरों से प्रदेश भर में देखा जाता है, लेकिन बंगाल प्रान्त के कपूर चंद चौरसिया जब जनपद में आए और मत्स्य प्रजनन की अपार संभावना देख प्रफुल्लित हो गए। यहां मत्स्य प्रजनन की नींव डाली। इनसे प्रेरित होकर बड़ी संख्या मे लोग इस व्यवसाय से जुड़ मत्स्य पालन के क्षेत्र मे नई इबारत लिख रहे है।
भिसवा में 1989 से मत्स्य प्रजनन की नींव रखने वाले कपूर चंद चौरसिया ग्राम हाजीनगर उत्तर 24 परगना नहेटी बंगाल के निवासी है। बंगाल में ही कपूर चंद के परिवार का मत्स्य प्रजनन का कारोबार है। जनपद के मत्स्य पालन से जुड़े लोग उनसे स्पान लेकर आते थे, मत्स्य प्रजनन के व्यवसाय के संबंध मे 1989 में कुछ उधार के पैसे लेने जनपद में आये कपूर चंद चौरसिया को जनपद में मत्स्य प्रजनन के क्षेत्र में बेहतर कारोबार की संभावनाएं दिखी। सदर क्षेत्र के भिसवा में उनके परिचित अनिरुद्ध दास ने उनका इस काम में सहयोग किया। कपूर चंद चौरसिया ने भिसवा में हेचरी का निर्माण कराया और फिर मत्स्य प्रजनन का कारोबार शुरु किया। उन्होंने बाद में भूमि खरीद कर खुद का तालाब हेचरी गाड़ी व घर बनाकर यहां के पलायन करने वाले युवाओं को तराई में ही रोजगार के अवसर तलाशने के लिए प्रेरित करने का काम किया। 200 कुंतल स्पान का प्रति सीजन होता है कारोबार
कपूर चंद चौरसिया बताते है कि मार्च से 15 सितम्बर तक प्रजनन का कारोबार होता है। हर वर्ष लगभग 200 कुन्तल स्पान तैयार होते है और उसका व्यवसाय होता है। इस साल कारोबार के शुरुआत में लाकडाउन के कारण मार्च से जून तक व्यवसाय प्रभावित रहा लेकिन जुलाई से स्पान के कारोबार ने गति पकड़ ली है। दो दर्जन व्यक्तियों को मिला रोजगार
मत्स्य प्रजनन के कारोबार में दो दर्जन व्यक्तियों को प्रतिदिन रोजगार भी मिला है। भिसवा व पड़ोस के दो दर्जन व्यक्तियों को मत्स्य प्रजनन की प्रक्रिया का देखभाल करते है। झांसी से बिहार तक जाता हैं स्पान
कपूर चंद चौरसिया बताते हैं कि पहले लोग स्पान लेने बंगाल पहुंचते थे और वहां से खरीदने में स्पान महंगा पड़ता था। अब यहीं पर स्पान मिलने से मत्स्य पालन करने वालों का समय और आर्थिक बचत दोनों होती हैं।