परवल की खेती कर बेरोजगारों के लिए प्रेरणास्त्रोत बने जयराम
जंगल के समीप बसे गांव कजरी में करना शुरू किया। इस गांव में सर्व प्रथम किसान जयराम ने परवल की खेती कर अपनी किस्मत आजमाई। उन्होंने बताया कि इसकी बोआई अक्टूबर से नवंबर माह में हो जाती है।
महराजगंज : कहते हैं इंसान अपने परिश्रम व लगन से खुद की तकदीर को बदल सकता है। इसे चरितार्थ कर रहे हैं, लक्ष्मीपुर इलाके के किसान जयराम मौर्या। तरोई, टमाटर, लौकी, बोड़ा, भिडी, नेनुआ आदि की खेती करके खुद की तकदीर संवारने में लगे हैं। कभी घाटा तो कभी मुनाफा के बीच चलती जिदगी खेती-किसानी में ही रच-बस गई, लेकिन जयराम ने परवल खेती करने का प्रयोग किया। पूछने पर बताते हैं कि परवल की खेती नदी के तट पर ही होती है।
जंगल के समीप बसे गांव कजरी में करना शुरू किया। इस गांव में सर्व प्रथम किसान जयराम ने परवल की खेती कर अपनी किस्मत आजमाई। उन्होंने बताया कि इसकी बोआई अक्टूबर से नवंबर माह में हो जाती है। दो चरणों में इसकी कुदाल से गोड़ाई के बाद जब फरवरी का महीना आता है, तब गर्मी के साथ ही खेत परवल की लताओं से भर जाते हैं। मार्च से उत्पादन शुरू होता है। प्रति बीघा 20 से 26 हजार रुपये लागत आती है। यदि उत्पादन और बाजार ठीक रहा, तो मुनाफा भी प्रति बीघा 50 हजार से 70 हजार तक हो जाता है। किसान जयराम ने बताया कि परवल की खेती भी एक तरह से तकदीर का ही खेल है। परवल की लत्ती को कर्मलत्ती की संज्ञा देते हैं। कर्म यदि अच्छा है तो इस खेती में भी अच्छा मुनाफा होगा। इनका मानना है कि खेत में एक संत का जीवन व्यतीत करना पड़ता है। शुद्ध आत्मा से जब हम परिश्रम करते है, तो ईश्वर भी हमारा साथ देते है। परवल की खेती में मुनाफा देख किसान राजकुमार, रामवृक्ष, जनार्दन, रामजी, सत्यनरायन आदि भी सब्जियों के साथ परवल की भी खेती कर रहे हैं।