किसानों पर मेहरबान इंद्रदेव, इस बार अच्‍छी होगी धान की पैदावार

गोरखपुर में अब तक औसत के सामेक्ष चार फीसद अधिक बारिश हो चुकी है। कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि है यह धान व अन्य फसलों के लिए अच्‍छा संकेत हैं। इस बार धान की पैदावार अच्‍छी रहेगी।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Publish:Thu, 12 Aug 2021 01:50 PM (IST) Updated:Thu, 12 Aug 2021 01:50 PM (IST)
किसानों पर मेहरबान इंद्रदेव, इस बार अच्‍छी होगी धान की पैदावार
पूर्वांचल में इस बार अच्‍छी वर्षो हुई है। इससे धान की पैदावार अच्‍छी होने की संभावना है। - प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर

गोरखपुर, जागरण संवाददाता। किसानों पर इंद्रदेव मेहरबान हैं। अब तक औसत के सामेक्ष चार फीसद अधिक बारिश हो चुकी है। कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि है यह धान व अन्य फसलों के लिए अच्‍छा संकेत हैं। इस बार धान की पैदावार अच्‍छी रहेगी। लता वाली कुछ सब्जियों को नुकसान हुआ है, लेकिन अन्य किसानों को इससे अ'छा लाभ मिला है। स‍िंंचाई के लिए किसानों को लाखों रुपये का डीजल खर्च करने की जरूरत नहीं पड़ी।

औसत के सापेक्ष करीब 728.7 मिलीमीटर हुई बारिश

एक हेक्टेयर धान की फसल की स‍िंचाई के लिए औसतन किसानों को करीब 45 सौ रुपये खर्च करने पड़ते हैं। लेकिन समय पर हुई बारिश के चलते किसान प्रति हेक्टेयर करीब दो हजार रुपये स‍िंंचाई के खर्च से बच गए हैं। पिपरौली के पेवनपुर के किसान रामानंद का कहना है कि अब तक की बारिश धान की फसल के लिए बेहद लाभदायक है।

इस बार तो भगवान जैसे किसानों से पूछकर बरस रहे हों। मानक है कि फसल की स्थिति अच्‍छी होने पर एक हेक्टेयर में 55 से 60 क्‍वि‍ंटल धान की पैदावार होती है। लेकिन कभी बाढ़ की समस्या तो कभी सूखे की। कुछ न कुछ दिक्कतों के चलते किसान खेतों से इतनी उपज ले ही नहीं पाते हैं, लेकिन इस बार तो विभाग को भी उम्मीद है कि 153640 हेक्टेयर धान के क्षेत्रफल से 84 से 90 लाख क्‍वि‍ंटल धान का उत्पादन होगा। बीते एक जून से 11 अगस्त तक 703.4 मिलीमीटर औसत वर्षा के सापेक्ष करीब 728.7 मिलीमीटर बारिश हो चुकी है।

सब्जियों को नुकसान

मौसम विशेषज्ञ कैलाश पाण्डेय का कहना है कि औसत से 19 फीसद अधिक व 19 फीसद कम तक की बारिश सामान्य श्रेणी में आती है। कटका में सब्जी की खेती करने वाले भोला मौर्या का कहना है कि लतादार सब्जियों को थोड़ा नुकसान हुआ है, लेकिन इसमें भी जो लोग मचान विधि से खतेती करते हैं। वह नुकसान बच गए हैं। सिर्फ लतादार सब्जियों को छोड़कर अन्य सभी के लिए यह बारिश फायदेमंद हैं। मौसम विशेषज्ञ कैलाश पाण्डेय ने बताया कि पूर्वी उत्तर प्रदेश के करीब 15 हजार फीट की ऊंचाई पर चक्रवाती हवा का एक क्षेत्र बना हुआ है। इसके चलते गोरखपुर व आस-पास के जिलों में हल्की से मध्यम वर्षा हो रही है। यह स्थिति अभी शुक्रवार तक बनी रहेगी।

समय औसत वास्तविक वर्षा

जून 165 301

जुलाई 353.4 452

1 अगस्त से 11 अगस्त तक 125.3 86.2

वर्षा- मिलीमीटर में

समय पर समय पर हो रही बारिश किसानों के लिए बेहद फायदेमंद है। किसानों को ङ्क्षसचाई में बड़ी मदद मिली है। सब कुछ ठीकठाक रहा तो इस बार पैदावार भी अ'छी होगी। - संजय स‍िंह, उप निदेशक कृषि।

सफल रहीं धान की प्रजातियां तो मालामाल होंगे पूरब के किसान

कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार में अंतरराष्ट्रीय अनुसंधान संस्थान फिलीपींस के सहयोग से धान की 24 प्रजातियों पर शोध चल रहा है कि वह प्रजातियां यहां सफल होंगी अथवा नहीं। बुधवार को अंतरराष्ट्रीय धान अनुसंधान संस्थान दक्षिण एशिया के क्षेत्रीय केंद्र वाराणसी की टीम ने धान की फसल का निरीक्षण किया। निरीक्षण के बाद उन्होंने उम्मीद जताई है कि यह प्रजातियां यहां के वातावरण में भी सफल रहेंगी। ऐसा रहा तो पूरब के किसान धान के उत्पादन से अ'छी कमाई करेंगे।

देश के विभिन्न क्षेत्रों में उत्पादन की ²ष्टि से पैदावार की दृष्टि से बेहतर मानी जाने वाली धान की 24 प्रजातियों को कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार में स्थानीय धान की आठ प्रजातियों के साथ बोया गया है। इसमें स्वर्णा समृद्धि, सीआर 508, स्वर्णा मैंसूरी सब, बीना धान 11 सहित सात प्रजाजियां ऐसी हैं, जो पानी में करीब 15 से 20 दिनों तक डूबी रहें तो भी उनके उत्पादन पर कोई फर्क नहीं पड़ता। ऐसे ही सब सहभागी सहित चार प्रजातियां ऐसी हैं, जिन्हें तैयार होने के लिए कम पानी की आवश्यकता पड़ती है। यह प्रजातियां ऐसी हैं, जिनमें शूगर की मात्रा कम है। पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में है। उसे शूगर के रोगी भी खा सकते हैं। ऐसे ही सभी प्रजातियों की अलग-अलग की विशेषता है।

कृषि विज्ञान केंद्र के अलावा इन प्रजातियों को गोला, गगहा, कौड़ीराम, पिपरौली क्षेत्र के 25 किसानों ने अपनी फसलों के साथ बोया है। बुधवार को धान अनुसंधान संस्थान की वाराणसी शाखा ने कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार में इन नवीन प्रजातियों का निरीक्षण किया। टीम के वैज्ञानिक डा. सर्वेश शुक्ला ने पौधों की स्थिति देखकर बताया कि इसमें से कई प्रजातियां ऐसी हैं, जो पूर्वी उत्तर प्रदेश में रिकार्ड उत्पादन करने की क्षमता रखती हैं। कई प्रजातियां 15 दिन तक पानी में डूबे रहने की दशा में भी 50 से 60 कुंतल प्रति हेक्टेयर पैदावार दे सकती हैं। धान अनुसंधान संस्थान वाराणसी के निदेशक डा.सुधांशु ङ्क्षसह ने कहा कि संस्थान का का उद्देश्य धान का उत्पादन बढ़ाना। धान को कम पानी में तैयार करना है। इस अवसर पर कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा.एसके तोमर, डा.शैलेंद्र स‍िंंह, नगेंद्र प्रताप शाही, बंशीलाल आदि मौजूद रहे।

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