यूपी के इस जिले में अस्पताल के अंदर बेड खाली, बाहर वेटिंग में तड़प रहे मरीज Gorakhpur News
अंदर बेड खाली हैबाहर वेटिंग में मरीज तड़प रहे हैं। यह हाल है बस्ती जिले में महर्षि वशिष्ठ मेडिकल कालेज से संबद्ध कैली हास्पिटल का। जी हां हास्पिटल 350 बेड का है लेकिन 150 बेड ही संचालित किया जा रहा है।
गोरखपुर, एसके सिह : अंदर बेड खाली है,बाहर वेटिंग में मरीज तड़प रहे हैं। यह हाल है बस्ती जिले में महर्षि वशिष्ठ मेडिकल कालेज से संबद्ध कैली हास्पिटल का। जी हां, हास्पिटल 350 बेड का है लेकिन 150 बेड ही संचालित किया जा रहा है। पांच वार्डों में लगे दो सौ बेड ताले में कैद हैं। इसका खुलासा दैनिक जागरण की पड़ताल में हुआ है।
एल टू हास्पिटल बनाया गया कैली को
कैली हास्पिटल को कोविड का एल टू हास्पिटल बनाया गया है। मरीजों को बेहतर चिकित्सकीय सुविधा मिले, इसके लिए कोरोना की पहली लहर में ही संसाधनों से इसे लैस किया गया। 107 वेंटीलेटर मुहैया कराए गए। इसके अलावा आरटीपीसीआर जांच के लिए अत्याधुनिक लैब, सीटी स्कैन सहित अन्य जरूरी इंतजाम किए गए। प्रधानाचार्य की मनमानी का आलम यह है अब यहां ईएमओ को कोविड के मरीज भर्ती करने के लिए अनुमति लेनी होती है। यह प्रक्रिया इतनी लंबी है कि इसमें कोरोना के गंभीर मरीज बेड के इंतजार में सुबह से शाम तक बाहर ही पड़े रह जाते हैं। अस्पताल में कम मरीज भर्ती होंगे तो कम आक्सीजन खर्च होगा। दवाएं और भोजन का इंतजाम भी कम करना पड़ेगा। यह सोच है भगवान का दूसरा रूप कहे जाने वाले चिकित्सा मंदिर के देवताओं का।
240 बेड पर पाइप से आक्सीजन की सप्लाई
पड़ताल में तमाम चौंकानें वाली बातें सामने आई। हास्पिटल में 240 बेड पर पाइप से आक्सीजन की सप्लाई है जबकि 110 बेड पर सिलेंडर के जरिए आक्सीजन देने की व्यवस्था है। 240 में से 90 बेड को एचडीयू यानी हाईडिपेंसी यूनिट बनाया गया है। यहां प्रत्येक बेड पर पाइप से आक्सीजन,वेंटिलेटर और वाइपैप मशीनें लगी हुई हैं। इस तरह से 17 वेंटिलेटर रिजर्व में रखे गए हैं। इसे संचालित करने के लिए दो आपरेटर और महज एक विशेषज्ञ हैं। एचडीयू में कोरोना के गंभीर मरीज रखे जाते हैं। 41 मरीज सामान्य वार्ड में रखे गए हैं,जहां जरूरत पड़ने पर सिलेंडर से मरीज को आक्सीजन दिया जाता है। इस तरह बेड खाली रहने के बाद भी हास्पिटल में मरीजों को जगह पाने के लिए सांसद, विधायक के अलावा अफसरों से सिफारिश करानी पड़ रही है।
खतरे में हैं कोरोना मरीजों की जान
मेडिकल कालेज हो या जिला अस्पताल, जहां कोरोना के मरीज भर्ती किए जा रहे हैं वहां 48 घंटे आक्सीजन का बैकअप रखने का शासनादेश है लेकिन बस्ती के मेडिकल कालेज में प्रतिदिन की डिमांड के अनुसार ही आक्सीजन चिकित्सकों को नहीं मिल पा रहा है। चिकित्सकों की मानें तो कोविड के 131 मरीज भर्ती हैं। इनके लिए प्रतिदिन पांच सौ आक्सीजन सिलेंडर चाहिए,लेकिन मेडिकल कालेज में 489 सिलेंडर ही है। मतलब बैकअप की बात छोडि़ए प्रतिदिन की ही डिमांड पूरी नहीं हो पा रही है। चिकित्सकों के तमाम प्रयास के बाद प्रधानाचार्य बैकअप के लिए सिलेंडर की खरीद में कोई रूचि नहीं दिखा रहे हैं। आक्सीजन की कमी पूरी न हो इसके लिए नायब तहसीलदार और लेखपाल की ड्यूटी मगहर में आक्सीजन प्लांट पर लगाई गई है। दो वाहन मय चालक सिलेंडर लाने और ले जाने के लिए लगाए गए हैं। जैसे ही पचास सिलेंडर खाली होते हैं,गाड़ी दौड़ा दी जाती है। एक सिलेंडर में 7.84 घनमीटर गैस होती है। सामान्य मरीज के लिए एक सिलेंडर पर्याप्त है। कोरोना के गंभीर मरीज के लिए चार से पांच सिलेंडर लग जाते हैं।
है सिफारिश, तभी जाएं मेडिकल कालेज
मेडिकल कालेज में कोरोना के मरीज आसानी से भर्ती नहीं किए जा रहे हैैं। प्रधानाचार्य से कैली हास्पिटल में ईएमओ के ऊपर दो एसोसिएट प्रोफेसर की टीम तैनात की है। यह है डा.राजेश चौधरी और डा.रोहित शाही। सुबह दस बजे और शाम को चार बजे यह दोनों डाक्टर जब रिपोर्ट देते हैं कि इतने बेड खाली हैं,तब ही मरीज भर्ती किए जा सकते हैं। चिकित्सकों का कहना है दिन में तो वह लोग टीम से बेड के लिए बात कर लेते हैं लेकिन रात्रि में कोई मरीज आने पर वह असहाय हो जाते हैं। व्यवस्था के विपरीत जाकर मरीज भर्ती करने पर अपमानित किया जाता है।
बानगी एक
सल्टौआ की बुजुर्ग महिला रंभा देवी कोरोना वायरस से संक्रमित थी। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर स्वजन ले गए तो वहां से चिकित्सक ने कैली हास्पिटल रेफर कर दिया। सुबह 10 बजे से लेकर दो बजे तक वह बेड के लिए बाहर स्वजन मरीज को लेकर परेशान रहे लेकिन बेड नहीं मिला। हालत बिगड़ने लगी तो लेकर चले गए।
बानगी दो
जिला अस्पताल में भी बेेड की किल्लत है। मालवीय रोड निवासी होटल व्यवसाई सतेंद्र सिंह मुन्ना की मां प्रभा देवी की तबीयत खराब हो गई। दोपहर में जिला अस्पताल लेकर गए। बेड नहीं होने की बात कह लौटाया जाने लगा। खझौला के बहरैची भी बेड न मिलने के कारण परेशान रहे। महादेवा निवासी शत्रुघ्न को भी बेड नहीं मिला पाया। इन तीनों मरीजों को काफी प्रयास के बाद इन ट्रामा सेंटर में बेंच पर बैठाकर जैसे तैसे इलाज शुरू किया गया।