कुशीनगर में मियावाकी पद्धति से निखरेगा हिरण्यवती नदी का सौंदर्य

कुशीनगर में पर्यटन स्थली के विकास के लिए हिरण्यवती नदी के 1.5 किमी क्षेत्र को जापानी तकनीक से बनाया जाएगा रमणीक ज्वाइंट मजिस्ट्रेट की पहल पर नदी के किनारे शुरू हुआ कार्य यह क्षेत्र विकसित होने के बाद पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बनेगा।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 16 Jun 2021 04:00 AM (IST) Updated:Wed, 16 Jun 2021 04:00 AM (IST)
कुशीनगर में मियावाकी पद्धति से निखरेगा हिरण्यवती नदी का सौंदर्य
कुशीनगर में मियावाकी पद्धति से निखरेगा हिरण्यवती नदी का सौंदर्य

कुशीनगर : अंतरराष्ट्रीय पर्यटन स्थली कुशीनगर में स्थित हिरण्यवती नदी के किनारों (वेट लैंड) को जापान की मियावाकी पद्धति से रमणीक व हरा भरा बनाया जाएगा। शुरुआत में 1.5 किमी क्षेत्र को विकसित करने की योजना है। योजना के मूर्त रूप लेने के बाद नदी तट पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बन जाएगा।

नदी के किनारे बने करुणासागर घाट, बुद्धा घाट से लेकर देवरिया रोड के किनारे स्थित मुक्तिधाम घाट तक मियावाकी तकनीक से विशेष प्रकार के पौधे रोपित किए जाएंगे। इसके लिए बाहर से विशेषज्ञ बुलाए जाएंगे। यह अभिनव योजना ज्वाइंट मजिस्ट्रेट पूर्ण बोरा ने तैयार की है। इसे पूरा कराने के लिए वन विभाग, नगरपालिका, पर्यटन, कुशीनगर विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण व टेंपल एरिया मैनेजमेंट कमेटी के अधिकारियों व निजी क्षेत्र के लोगों से ज्वाइंट मजिस्ट्रेट की बातचीत चल रही है। असम के मूल निवासी आइएएस पूर्ण बोरा की वर्ष 2020 में यहां पहली नियुक्ति हुई थी। उन्होंने पर्यटन विकास के कार्य को प्राथमिकता में रखा था। एक वर्ष में हेरिटेज जोन को हरा भरा, स्वच्छ व सुंदर बनाए जाने के उनके प्रयासों की कड़ी में बुद्धाघाट पर नौकायन, उद्यान, पार्क, वाल पेंटिग, पौधारोपण अभियान जुड़ते जा रहे हैं।

पर्यटकों को चाहिए सकून

ज्वाइंट मजिस्ट्रेट पूर्ण बोरा कहते हैं कि कुशीनगर बौद्ध पर्यटन स्थली है। पर्यटकों को यहां कोलाहल नहीं बल्कि शांति व सकून चाहिए। उसे हम प्रकृति के माध्यम से ही प्रदान कर सकते हैं। हिरण्यवती नदी के किनारे मियावाकी पद्धति से घना वन क्षेत्र विकसित करने की योजना इसी मूलभूत सोच को केंद्र में रखकर बनाई गई है।

यह है मियावाकी पद्धति

नेचर एक्टिविस्ट रंजन दूबे बताते हैं कि मियावाकी तकनीक में महज आधे से एक फीट की दूरी पर पौधे रोपे जाते हैं। इस पद्धति में जलवायु अनुकूल पौधे सघन रूप से लगाए जाते हैं। पौधों की सघनता की वजह से सूर्य की किरण धरती पर नहीं पहुंच पाती है। इससे खरपतवार नहीं उग पाते है और पौधे लंबाई में बढ़ते हैं। तीन वर्षों के बाद इन पौधों की देखभाल की आवश्यकता नहीं होती है। पौधों की वृद्धि 10 गुना तेजी से होती है। इससे सामान्य स्थिति से 30 गुना अधिक सघनता हो जाती है। जंगल को पारंपरिक विधि से तैयार करने में लगभग 200 से 300 वर्ष का समय लगता है। मियावाकी पद्धति से केवल 20 से 30 वर्षों में ही पौधे जंगल का रूप ले लेते हैं।

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