पोर्टल पर बेड खाली दिखा रहा है तो उसी पर भर्ती करा दो.. Gorakhpur News
गोरखपुर में सरकारी अस्पतालों में बेड भले खाली हो गए हैं लेकिन कर्मचारियों की मनमानी के चलते मरीजों को जगह नहीं मिल पा रही है। अस्पताल के संचालक और डाक्टर मरीजों को भर्ती करने में आनाकानी कर रहे हैं।
गोरखपुर, जेएनएन। सरकारी अस्पतालों में बेड भले खाली हो गए हैं लेकिन कर्मचारियों की मनमानी के चलते मरीजों को जगह नहीं मिल पा रही है। हद तो तब हो गई जब एक स्वजन ने बाबा राघव दास मेडिकल कालेज में फोन कर मरीज को भर्ती कराने का अनुरोध किया तो उधर से जवाब आया कि बेड खाली नहीं है। स्वजन ने कहा कि पोर्टल पर तो दिखा रहा है कि बेड खाली है, तो कर्मचारी ने कहा कि पोर्टल पर ही भर्ती करा दो।
सुबह से दोपहर दो बजे तक परेशान रहे स्वजन
नौतनवां की एक 42 वर्षीय मरीज रेल विहार स्थित एक निजी अस्पताल में 20 दिन से भर्ती हैं। उनके स्वजन संतोष जायसवाल ने शनिवार को इंटीग्रेटेड कोविड कमांड सेंटर (आसीसीसी) में फोन कर कहा कि बहुत पैसे खर्च हो गए हैं। अभी आक्सीजन लेवल 60-70 फीसद है। अब मेरे पास पैसे नहीं हैं। उन्हें मेडिकल कालेज में भर्ती करा दीजिए, ताकि इलाज हो सके। वहां से उन्हें कुछ नंबर दिए गए और कहा गया इन नंबरों पर बात कर लीजिए।
संतोष के अनुसार सीएमओ कार्यालय से लेकर मेडिकल कालेज तक बात की गई लेकिन किसी ने नहीं सुनी। सुबह नौ बजे से लेकर दोपहर बाद दो बजे तक हम लोग फोन ही करते रहे। हार मानकर कर अस्पताल में फिर 20 हजार रुपये जमा कर दिए ताकि इलाज न बंद हो। इसके बाद आइसीसीसी की नोडल अधिकारी सुनीता पटेल के सहयोग से मेडिकल कालेज में जगह मिल गई लेकिन तब तक हम लोग पैसा जमा कर चुके थे, इसलिए मरीज को नहीं ले गए।
जिससे बात की वह नंबर बता रहा था
संतोष ने बताया कि जिससे भी बात कर रहा था, वह एक मोबाइल नंबर दे रहा था। उसे फोन करने पर वह भी एक नंबर दे रहा था। हम लोग नंबर लेते-लेते थक गए। मेडिकल कालेज का नंबर मिला, उस पर फोन किया तो कहा कि बेड खाली नहीं है। जब बताया गया कि पोर्टल पर तो खाली दिखा रहा है तो कहा कि उसी पर भर्ती करा दो।
इस बार दिल टूट गया
संतोष ने बताया कि वह नौतनवां के व्यापार मंडल के अध्यक्ष हैं। समय-समय पर सामाजिक कार्य करते रहते हैं। लेकिन जब उनके ऊपर पड़ी तो न तो विधायक सुन रहे थे और न ही सांसद। सीएमओ कार्यालय में फोन किया तो एक व्यक्ति ने फोन उठाया और कहा कि भर्ती करा देंगे, उनका आधार कार्ड, डाक्टर का पर्चा व पाजिटिव रिपोर्ट वाट्सएप कर दीजिए। सब भेजा गया, उसके बाद उसने फोन हीं नहीं उठाया।
20 हजार में खरीदा रेमडेसिविर
स्वजन ने बताया कि 10 दिन पहले रेमडेसिविर कहीं मिल नहीं रही थी। डाक्टर ने लिख दिया। लगवाना जरूरी था। इसलिए दलाल के माध्यम से 20 हजार रुपये में इस दवा का एक वायल खरीदा गया। छह वायल के 1.20 लाख रुपये लगे। अस्पताल में रोज 18 से 20 हजार रुपये लग जाते हैं। इसके अलावा अन्य खर्च भी होते हैं। अब तक लगभग सात लाख रुपये खर्च हो चुके हैं। इसलिए हम लोग सोचे सरकारी अस्पताल में चले जाएंगे तो इलाज हो जाएगा।