मुसाफिर हूं यारों/रिटायरमेंट के बाद भी निपटा रहे फाइल

यूनियन के एक दफ्तर में रेलकर्मी काजू बादाम किशमिश और अखरोट आदि के पैकेट को उलट-पलट कर देख रहे थे। इसी बीच मंझे हुए व्यापारी की तरह एक आवाज गूंजी। सर क्या देख रहे हैं। एक नंबर का माल है आप लोगों के लिए स्पेशल मंगाता हूं।

By Rahul SrivastavaEdited By: Publish:Sun, 26 Sep 2021 01:30 PM (IST) Updated:Sun, 26 Sep 2021 05:35 PM (IST)
मुसाफिर हूं यारों/रिटायरमेंट के बाद भी निपटा रहे फाइल
गोरखपुर स्थित रेलवे स्टेशन का द्वार। फाइल फोटो

गोरखपुर, प्रेम नारायण द्विवेदी : यूनियन के एक दफ्तर में रेलकर्मी काजू, बादाम, किशमिश और अखरोट आदि के पैकेट को उलट-पलट कर देख रहे थे। इसी बीच मंझे हुए व्यापारी की तरह एक आवाज गूंजी। सर, क्या देख रहे हैं। एक नंबर का माल है, आप लोगों के लिए स्पेशल मंगाता हूं। उत्सुकतावश पूछ लिया, इनकी एजेंसी कहां हैं। सब मुंह देखने लगे। एक से रहा नहीं गया। बोल पड़ा, व्यवसायी नहीं, बड़े बाबू हैं। रेलवे की सेवा कम, मेवा बेचने पर ज्यादा ध्यान देते हैं। हाजिरी लगाकर दफ्तरों में घूमकर दर्जनों पैकेट मेवा बेच डालते हैं। शाम को ऊपर वाले को धन्यवाद देकर फैक्ट्री के लिए निकल पड़ते हैं। बगल में बैठे दूसरे सदस्य के मन की टीस भी निकल गई। आखिर, वेतन के भरोसे बंगला और गाड़ी का शौक कैसे पूरा हो पाएगा। ऊपरी... के लिए कुछ अलग करना ही पड़ेगा। तीसरे ने सच कह ही दिया, इसलिए तो रेलवे बिक रहा है।

घोषणा कर भूल गए योद्धाओं का सम्मान

कर्मचारी संगठन के आयोजन में उपस्थित रेलकर्मी खाली होते ही कोविड प्रोटोकाल पर बहस करने लगे। चर्चा के केंद्र बिंदु में लोगों की लापरवाही थी। स्टेशन पर यात्री बिना मास्क के ही पहुंच जा रहे हैं। इसी बीच एक पदाधिकारी को कोरोना की पहली लहर याद आ गई। बताने लगे। ट्रेनों, स्टेशनों और कारखानों में तैनात रेलकर्मी तो कोविड काल में भी लगातार कार्य करते रहे। अभी उनकी बात पूरी भी नहीं हुई कि पास खड़े कारखानाकर्मी बोल पड़े। लाकडाउन में घरवालों के न चाहते हुए भी रेलवे और आमजन की सेवा करता रहा, लेकिन रेलवे प्रशासन घोषणा करने बाद भी आज तक कोरोना योद्धा का सम्मान नहीं दे पाया। अभी भी परिवार में कलह हजारी है। पत्नी ताना मारने से बाज नहीं आती। अब बच्चे भी हंसने लगे हैं। भला हो मीडिया वालों का, जिन्होंने मेरा नाम और फोटो प्रकाशित कर दिया। अखबारों के कङ्क्षटग ही आत्मविश्वास बढ़ाते हैं।

विकास तो दिखा ही नहीं

पूर्वोत्तर रेलवे मुख्यालय स्थित विभागों में आजकल रेलवे के विकास का खाका खींचने वाली एक कमेटी के दौरे की खूब चर्चा है। रेलकर्मियों का कहना है कमेटी आई और चली भी गई, लेकिन विकास किसी ने देखा तक नहीं। विकास होटलों तक ही सिमट गया। अपनी ही रेल लाइनों के बारे में न पूर्वांचल की जनता बोल पाई और न कर्मचारी संगठन राय दे पाए। रेलवे प्रशासन भी दौरे को अति गोपनीय बनाते हुए पर्दे डालता रहा। बातचीत में संघ के एक पदाधिकारी कहने लगे, विकास के नाम पर निजीकरण का खाका तैयार हो रहा है। कमेटी ने सिर्फ अधिकारियों से ही पावर प्रजेंटेशन लिया। दूसरे पदाधिकारी बोल पड़े। जब अफसरों से ही प्रजेंटेशन लेना था तो बड़े साहब को दिल्ली बुला लेते। तीसरे से रहा नहीं गया। अधिकारी ही दिल्ली पहुंच जाते तो लाखों का बजट कैसे बनता। खर्चों में कटौती का फरमान तो केवल रेलकर्मियों के लिए है।

रिटायरमेंट के बाद भी निपटा रहे फाइल

लोग कहते हैं, कुर्सी का मोह नहीं जाता। अगर ऊपरी ... वाला हो तो सोने पर सुहागा। रिटायरमेंट के बाद भी कुर्सी छोड़ने की इच्छा नहीं होती। परिवहन निगम के क्षेत्रीय कार्यालय में यह कहावत बिल्कुल सटीक बैठ रही है। एक बड़े वाले बाबू सेवानिवृत्ति के बाद भी दफ्तर की फाइलें निपटाने में व्यस्त रहे। विदाई समारोह के बाद भी अपनी कुर्सी पर आकर बैठ जाते थे। कुर्सी हटी तो विभाग में घूमकर खड़े-खड़े फाइलें देख लेते हैं। मजे की बात यह है कि अनुबंधित बसों को संचालित करने वाले अनुभाग में अभी भी उनका ही सिक्का चल रहा है। रिटायरमेंट के चार माह से अधिक हो गए, लेकिन सुबह से ही उनसे मिलने वालों का तांता लगा रहता है। नए नवेले बाबू कुर्सी पर बैठे रहते हैं, लेकिन बस संचालक घास ही नहीं डाल रहे। लोगों को समझ में नहीं आ रहा कि आखिर अनुभाग चला कौन रहा है।

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