गोरखपुर के कलेक्ट्रेट में सबसे पहले गूंजा था हैलो, 1927 में शुरू हुआ था मैग्नेटो टेलीफोन एक्सचेंज

संचार क्रांति भले ही अस्सी के दशक की देन है पर संचार तंत्र से गोरखपुर का 91 साल पुराना नाता है। यहां 1927 से ही संचार सेवा का जाल बिछने लगा था। पहली टेलीफोन की घंटी जिले के कलेक्ट्रेट दफ्तर में बजी थी।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Publish:Mon, 17 May 2021 04:30 PM (IST) Updated:Mon, 17 May 2021 06:36 PM (IST)
गोरखपुर के कलेक्ट्रेट में सबसे पहले गूंजा था हैलो, 1927 में शुरू हुआ था मैग्नेटो टेलीफोन एक्सचेंज
गोरखपुर में 1927 में टेलीफोन सेवा की शुरुआत हो गई थी। - प्रतीकात्मक तस्वीर

गोरखपुर, प्रभात कुमार पाठक। संचारक्रांति के युग में भले ही टेलीफोन का रुतबा कम हो गया है, लेकिन कभी यह स्टेटस सिंबल हुआ करता था। बीएसएनएल के लैंडलाइन कनेक्शन के लिए लोग बुकिंग कराते थे। छह-छह महीने बाद नंबर आता था। मोबाइल आने के बाद अब पहले जैसा इसका रुतबा कायम नहीं रहा। गोरखपुर की बात करें तो यहां पहली बार टेलीफोन की घंटी 21 दिसंबर 1927 को कलेक्ट्रेट में बजी थी। क्योंकि अंग्रेजी शासनकाल में पहला नंबर कलेक्ट्रेट या कमिश्नरी में ही चालू होता था।

शुरू में केवल पांच नबर थे

बीएसएनएल के महाप्रबंधक विद्यानंद बताते हैं कि संचार क्रांति भले ही अस्सी के दशक की देन है पर संचार तंत्र से गोरखपुर का 91 साल पुराना नाता है। यहां 1927 से ही संचार सेवा का जाल बिछने लगा था। पहली टेलीफोन की घंटी जिले के कलेक्ट्रेट दफ्तर में बजी थी। शुरू में पांच ही नंबर खोले गए थे। ये नंबर कलेक्टर आवास, रेलवे सीएमई दफ्तर, म्यूनिसपल बोर्ड तथा इलाहाबाद बैंक को आंवटित हुए थे।

मैग्नेटो टेलीफोन एक्सचेंज से शुरू हुआ था सफर

गोरखपुर में मैग्नेटो टेलीफोन एक्सचेंज से संचार सेवा का सफर हुआ था। पहली बार 1927 में शास्त्री चौक पर मैग्नेटो टेलीफोन एक्सचेंज लगा और पांच टेलीफोन नंबर 005, 003, 007, 009 व 015 जारी हुए थे। उस दौरान जो टेलीफोन सेट मिलते थे उसमें हैंडल लगा रहता था। बात करने के लिए हैंडल घुमाना पड़ता था। जिसके बाद एक्सचेंज में लगे मैग्नेट बोर्ड पर आपरेटर को सिग्नल मिलता था।

इसके बाद आपरेटर उपभोक्ता से बात करके उनके बताएं नंबर पर काल लगा देता था। धीरे-धीरे तकनीक में बदलाव आया और सेटलाइट बैट्री नान मल्टीपूल एक्सचेंज स्थापित हुआ। मैग्नेटो एक्सचेंज के समय उपभोक्ताओं को विभाग को बैट्री भी देनी पड़ती थी। सीबीएनएम एक्सचेंज के दौर में एक्सचेंज में ही बैट्री लगने लगी, जिसके बाद इस समस्या से राहत मिल गई।

1990 से 2000 के बीच था स्वर्णिम काल

1990 से 2000 के बीच का समय बीएसएनल के लिए स्वर्णिमकाल था। आज जिस तरह से विदेशी ब्रांड के फोन की लांचिंग के समय बुक करने के लिए रातों रात लाइन लगती है, उसी तरह उस समय बीएसएनएल की स्थिति थी। उस दौर में इसके लैंड लाइन फोन के लिए छह-छह महीने तक लाइन लगती थी।

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