पितरों के आशीर्वाद से घर में रहती है सुख-समृद्धि, जानिए कैसे खुश रखे पितरों को
पितृ पक्ष मंगलवार से शुरू होगा। चूंकि इस पक्ष में पूर्णिमा तिथि नहीं होती इसलिए पूर्णिमा को दिवंगत हुए पितरों का श्राद्ध पितृ पक्ष के पूर्व दिन भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को किया जाएगा। श्राद्ध में केवल सफेद पुष्प का प्रयोग करना अच्छा माना जाता है।
गोरखपुर, जागरण संवाददाता : पितृ पक्ष मंगलवार (21 सितंबर) से शुरू होगा। चूंकि इस पक्ष में पूर्णिमा तिथि नहीं होती, इसलिए पूर्णिमा को दिवंगत हुए पितरों का श्राद्ध पितृ पक्ष के पूर्व दिन भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को किया जाएगा। श्राद्ध में बिल्वपत्र, मालती, चंपा, नागकेसर, कनेर, केतकी और समस्त लाल पुष्प वर्जित हैं। केवल सफेद पुष्प का प्रयोग करना अच्छा माना जाता है। पं. शरदचंद्र मिश्र के अनुसार आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक पितृपक्ष होता है। इस दौरान पितरों का श्राद्ध-तर्पण किया जाता है। पिता की पुण्यतिथि के दिन जल, तिल, जौ, कुश, अक्षत, दूध, पुष्प आदि से श्राद्ध किया जाता है। इससे पितर पूरे वर्ष प्रसन्न रहते हैं और उनके आशीर्वाद से घर-परिवार में सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है।
पत्नी भी कर सकती है श्राद्ध
श्राद्ध का अधिकार पुत्र को है। यदि पुत्र न हो तो पुत्री का पुत्र अर्थात दौहित्र, उनके न रहने पर परिवार का कोई भी उत्तराधिकारी श्राद्ध कर सकता है। जिस पिता के अनेक पुत्र हो तो ज्येष्ठ पुत्र को श्राद्ध करना चाहिए। पुत्र के अभाव में पुत्र का पुत्र (पौत्र) या प्रपौत्र श्राद्ध का अधिकारी है। यदि इनमें से कोई न हो तो भाई का पुत्र श्राद्ध कर सकता है। पुत्र यदि नहीं है तो पत्नी अपने दिवंगत पति का श्राद्ध कर सकती है। पत्नी का श्राद्ध पति तभी कर सकता है जब उसे कोई पुत्र न हो।
पितृपक्ष के मुख्य दिन
-भरणी पंचमी- गतवर्ष जिनकी मृत्यु हुई है। उनका श्राद्ध इस तिथि पर होता है।
-मातृनवमी- अपने पति के जीवन काल में मरने वाली स्त्री का श्राद्ध इस तिथि पर किया जाता है।
-घात चतुर्दशी- युद्ध में या किसी तरह मारे गए व्यक्तियों का श्राद्ध इस तिथि पर किया जाता है।
-सर्व पैत्री अमावस्या- इस दिन सब पितरों का श्राद्ध होता है।
-आश्विन शुक्ल प्रतिपदा- मातामह अर्थात नाना का श्राद्ध इस दिन होता है।
श्राद्ध की तिथियां
20 सितंबर- पूर्णिमा
21 सितंबर- प्रतिपदा
22 सितंबर- द्वितीया
23 सितंबर- तृतीया
24 सितंबर- चतुर्थी
25 सितंबर- पंचमी (भरणी पंचमी)
26 सितंबर- षष्ठी
27 सितंबर- सप्तमी
29 सितंबर- अष्टमी
30 सितंबर- नवमी (मातृ नवमी)
01 अक्टूबर- दशमी
02 अक्टूबर- एकादशी
03 अक्टूबर- द्वादशी
04 अक्टूबर- त्रयोदशी
05 अक्टूबर- चतुर्दशी (घात चतुर्दशी)
06 अक्टूबर- अमावस्या (पितृ विसर्जन, सर्व पैत्री अमास्या)
07 अक्टूबर- आश्विन शुक्ल प्रतिपदा (मातामह श्राद्ध)