अंधविश्वास पर गीताप्रेस का प्रहार, घरों में पहुंचा गरुड़ पुराण Gorakhpur News

गीताप्रेस ने प्रेतकल्प खंड के कारण अन्य 18 पुराणों से अलग-थलग माने जाने वाले गरुड़ पुराण को कर्म ज्ञान एवं भक्ति के जरिये परमात्मा को पाने की राह दिखाने वाला साबित किया। 21 वर्ष पहले कल्याण के विशेषांक के रूप में प्रकाशित किया था।

By Satish Chand ShuklaEdited By: Publish:Tue, 22 Jun 2021 06:30 PM (IST) Updated:Tue, 22 Jun 2021 06:30 PM (IST)
अंधविश्वास पर गीताप्रेस का प्रहार, घरों में पहुंचा गरुड़ पुराण Gorakhpur News
गोरखपुरप के गीताप्रेस में प्रकाशित गरुड़ पुराण, जागरण।

गोरखपुर, जेएनएन। सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार में जुटा गीताप्रेस अंधविश्वास पर भी प्रहार कर रहा है। उसने प्रेतकल्प खंड के कारण अन्य 18 पुराणों से अलग-थलग माने जाने वाले गरुड़ पुराण को कर्म, ज्ञान एवं भक्ति के जरिये परमात्मा को पाने की राह दिखाने वाला साबित किया। 21 वर्ष पहले कल्याण के विशेषांक के रूप में प्रकाशित गरुड़ पुराण 35 संस्करण के जरिए 1.75 लाख घरों में पहुंच चुका है और लोगों को मुक्ति का मार्ग बता रहा है।

गरुड़ पुराण के दो खंड हैैं, एक पूर्व और दूसरा उत्तर। उत्तरखंड का प्रेतकल्प मृत्यु के सूतक काल में सुना जाता है। ऐसे में लोगों ने धारणा बना ली कि इसे घर में रखना अशुभ हो सकता है और गरुड़ पुराण अन्य पुराणों से अलग-थलग पडऩे लगा। इस अंधविश्वास को खत्म करने के लिए गीताप्रेस के तत्कालीन संपादक राधेश्याम खेमका ने वर्ष 1999 में कल्याण के साधारण अंक में लेख लिखा। उन्होंने बताया कि गरुड़ पुराण आसक्ति का त्याग कर वैराग्य की ओर प्रवृत्त करने और सांसारिक बंधनों से मुक्त होने के लिए परमात्मा की शरण में जाने के लिए प्रेरित करता है। वह बताता है कि यह लक्ष्य कर्मयोग, ज्ञान या भक्ति से भी प्राप्त किया जा सकता है। वर्ष 2000 में गीताप्रेस ने कल्याण का विशेषांक प्रकाशित कर स्पष्ट किया कि गरुड़ पुराण का मतलब केवल प्रेत कल्प नहीं है। यह उपासना पद्धति भी है। इसलिए यह केवल भ्रम है कि इसे घर में नहीं रखना चाहिए।

पाठकों में माधव जालान का कहना है कि प्रकाशन शुरू होने से लेकर अभी तक, कल्याण का हर अंक मेरे पास है। गरुड़ पुराण को अशुभ से नहीं जोडऩा चाहिए। नियमित पाठन सही मार्ग बताता है। बुरे कर्मों से बचाते हुए मोक्ष की ओर ले जाता है।

वहीं ज्योतिष विज्ञानी पं. शरदचंद्र मिश्र का कहना है कि गरुड़ पुराण को घर में नहीं रखना अकारण ही प्रचलित हो गया। यह अंधविश्वास है। किसी शास्त्र में नहीं लिखा कि इसे घर में नहीं रखना चाहिए। यह 18 पुराणों में से एक है, जो जीव और जीवन के बारे में बताता है।

अब तक बिक चुकी हैं पौने दो लाख प्रतियां

गीताप्रेस के उत्पाद प्रबंधक लालमणि तिवारी का कहना है कि अंधविश्वास के कारण एक महत्वपूर्ण पुराण आम जन से दूर हो रहा था। गीताप्रेस ने अंधविश्वास का खंडन किया। लोगों को इसका महत्व बताते हुए कल्याण के विशेषांक के रूप में इसका प्रकाशन किया। अब तक 35 संस्करण प्रकाशित हुए और पौने दो लाख प्रतियां बिक चुकी हैैं।

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