गोरखपुर के इस सिपाही की बगिया में कश्मीरी सेब से लेकर अंजीर तक के फल

गोरखपुर के सेवानिवृतत 66 वर्षीय रामकिंकर के बाग में सेब से लेकर अंजीर तक मौजूद है। 2015 में पुलिस की नौकरी से सेवानिवृत्त होने के बाद से वह पूरी शिद्दत के साथ पर्यावरण संरक्षण की मुहिम में लगे हुए हैं।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Publish:Mon, 14 Jun 2021 11:15 AM (IST) Updated:Mon, 14 Jun 2021 08:09 PM (IST)
गोरखपुर के इस सिपाही की बगिया में कश्मीरी सेब से लेकर अंजीर तक के फल
अपनी बगिया में सेवानिवृत्त पुलिस कर्मी रामकिंकर उर्फ सुभाष त्रिपाठी। - जागरण

गोरखपुर, जितेन्द्र पाण्डेय। गोरखपुर के खजनी थाने के ग्राम बदरा निवासी 66 वर्षीय रामकिंकर उर्फ सुभाष त्रिपाठी के बाग में सेब से लेकर अंजीर तक मौजूद है। 2015 में पुलिस की नौकरी से सेवानिवृत्त होने के बाद से वह पूरी शिद्दत के साथ पर्यावरण संरक्षण की मुहिम में लगे हुए हैं। वह एक ऐसा बाग तैयार कर रहे हैं, जिसमें कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक के वृक्ष हों। यह बाग अपने आप में खास तो होगा ही, यह लोगों को पौधारोपण के लिए प्रेरित भी करेगा। इस बाग में अब तक 250 से अधिक पौधे रोपे जा चुके हैं।

चीकू, खांडवा के अमरुद के भी पौधे

सुभाष की बगिया में उत्तर भारतीय क्षेत्र में पाया जाने वाला अंजीर के 10 से 12 पेड़ मिल जाएंगे। नाशपाती के आकार के इसके फल रसीले व गूदेदार होते हैं। स्थाई रूप से रहने वाली कब्ज इस फल के सेवन से दूर हो जाती है। जुकाम, फेफड़े के रोगों में पानी में उबाल कर अंजीर पीने से लाभ होता है। ऐसे ही कश्मीर क्षेत्र के सेब के भी दो पौधे मौजूद हैं। गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक क्षेत्र के चीकू के भी दो पेड़ बाग में है। इसके अलावा मध्यप्रदेश के खांडवा के अमरूद सहित बाग में कुल 47 प्रकार के वृक्ष हैं। सुभाष कहते हैं गांव में उनकी बगिया देखकर तमाम लोग प्रेरित हुए हैं। इसका परिणाम है कि गांव में हर घर के सामने एक पेड़ लोगों को देखने को मिल रहा है।

रिश्वत के नाम पर मांगते थे पौधों के देखरेख की जिम्मेदारी

सुभाष कहते हैं कि वह वर्ष 1974 में नौकरी में आए। वह इस दौरान कानपुर, अंबेडकरनगर, संतकबीरनगर, लखनऊ आदि स्थानों में पोस्टेड रहे। थानों पर तैनाती के दौरान जब भी उन्हें कोई हल्का मिलता था, यह पहला कार्य करते थे। उस क्षेत्र में करीब सौ पौधे लगाते थे। वह कहते हैं कि रात में गश्त के दौरान टूटे बेकार पड़े ट्री गार्डों को देखते तो वह उसे उठा ले जाते और सड़क के किनारे पर कहीं खाली स्थान देखकर उसमें पीपल, बरगद व नीम के पौधे रोपते हैं। फिर उसे टूटे हुए ट्री गार्ड से घेर देते थे।

90 फीसद पौधे पूरी तरह सुरक्षित

उसके बाद आस-पास जिसका भी घर होता था, उसे उस पौधे की जिम्मेदारी सौंप देते थे। वह कहते हैं कि वह समय-समय पर जाकर देखते भी थे कि पौधा विकास कर रहा है कि नहीं। सुभाष कहते हैं कि वह लोगों से रिश्वत में पौधों के देखरेख की जिम्मेदारी मांगते थे। यही कारण है कि उनके द्वारा लगाए गए करीब 90 फीसद पौधे पूरी तरह सुरक्षित हैं। वह कहते हैं लखनऊ के गोमतीनगर विभूतीखंड में उनके द्वारा लगाए गए सैकड़ों वृक्ष आज भी लोगों को शीतलता प्रदान करते हैं।

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