French Family in Maharajganj: सुनहरी यादें लिए दिल्ली रवाना हुए फ्रांसीसी मेहमान, भर आईं सभी की आखें

French Family in Maharajganj सुनहरी यादें लिए फ्रांसीसी परिवार करीब छह माह बाद महराजगंज से दिल्‍ली के रवाना हुआ। सोमवार को जब परिवार दिल्ली के लिए रवाना हुआ तो ग्रामीण रो पड़े। लगा कि उनके घर का कोई सदस्य बिछड़ रहा है।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Publish:Tue, 22 Sep 2020 09:00 AM (IST) Updated:Tue, 22 Sep 2020 11:39 PM (IST)
French Family in Maharajganj: सुनहरी यादें लिए दिल्ली रवाना हुए फ्रांसीसी मेहमान, भर आईं सभी की आखें
दिल्‍ली रवाना होने से पूर्व गांव के एक बच्‍चे को दुलारता फ्रांसीसी परिवार : फोटो- जागरण

महराजगंज, जेएनएन। फ्रांस के टूलोज शहर से आए परदेशी मेहमान जेहन में सुनहरी यादेे लिए छह माह बाद दिल्ली के लिए रवाना हो गए। फिलहाल उनकी योजना बांग्लादेश के रास्ते अन्य देशों के भ्रमण की है। दूतावास से अनुमति लेकर वे अपनी आगे की यात्रा शुरू करेंगे। सोमवार को जब परिवार  दिल्ली के लिए रवाना हुआ तो ग्रामीण रो पड़े। लगा कि उनके घर का कोई सदस्य बिछड़ रहा है। पैट्रीस पैलारे ने कहा कि दूतावास से अनुमति लेने के बाद आगे की यात्रा शुरू करेंगे। कहीं भी जाएंगे कोल्हुआ के लोगों को भूलना मुश्किल है। यहां जो प्यार व दुलार मिला वह किसी देश में संभव नहीं है।

नन्हीं परी को दिया उपहार

फ्रांसीसी परिवार के साथ कोल्हुआ उर्फ सिंहोरवा गांव के हरिकेश यादव व संजय सहयोगी बनकर गाइड का कार्य किए। बीते छह माह से छोटी बड़ी हर समस्या, जरूरतों को पूरा कर अतिथि देवो भव: की अवधारणा को चरितार्थ किया। सोमवार को दिल्ली जाने से पूर्व फ्रांसीसी मेहमान हरिकेश यादव के घर पहुंचे। वहां एक माह की बच्ची अर्पिता को गोदी में लेकर मिठाई, वस्त्र व कुछ गिफ्ट देकर विदा हुए। नम आंखों से वर्जिनी ने कहा कि भारत का सफर जीवन में कभी नहीं भूल पाऊंगी। यहां तो प्रेम की गंगा बहती है। जब भी मौका मिला इस गांव में परिवार के साथ आऊंगी

एक मार्च को भारत आए थे फ्रांसीसी

फ्रांस के टूलोज शहर निवासी पैट्रीस पैलारे अपनी पत्नी वर्जिनी, बेटी लोला, ओफली व बेटे टाम के साथ विश्व भ्रमण कर निकले थे। परिवार पहली मार्च को बाघा बार्डर होते हुए भारत आया। 22 मार्च को सोनौली सीमा के रास्ते इनकी नेपाल जाने की योजना थी, लेकिन सीमा सील होने के चलते पुरंदरपुर क्षेत्र के कोल्हुआ उर्फ सिंहोरवा में इन्होंने अपना आशियाना बना लिया। इस दौरान यहां के ग्रामीणों से स्नेह की डोर ऐसी बंधी कि यह गांव उनका परिवार बन गया। सभी सुख-दुख के साथी हो गए।

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