आंवला वृक्ष के नीचे इसलिए किया जाता है भोजन, इसमें है तमाम गुण

आंवला गुणकारी है। यह गुणों की खान है। इसे साक्षात विष्णु कहा जाता है। आंवला के वृक्ष के नीचे भोजन करने की परंपरा आदिकाल से है।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 17 Nov 2018 11:59 AM (IST) Updated:Sat, 17 Nov 2018 11:59 AM (IST)
आंवला वृक्ष के नीचे इसलिए किया जाता है भोजन, इसमें  है तमाम गुण
आंवला वृक्ष के नीचे इसलिए किया जाता है भोजन, इसमें है तमाम गुण

गोरखपुर, जेएनएन। अक्षय नवमी या आंवला नवमी शनिवार (17 नवंबर) को परंपरागत रूप से आस्था व श्रद्धा के साथ मनाई गई। इस दिन आंवला वृक्ष की पूजा करने के साथ ही उसके नीचे भोजन बनाया और ग्रहण किया जाता है। पुराणों के अनुसार आंवला में मां धात्री का निवास है, वह अमृत की स्रोत हैं, इसलिए आंवला वृक्ष के नीचे भोजन पकाने से वह अमृतमय हो जाता है। साथ ही आयुर्वेदाचार्य चरक ने शारीरिक अवनति को रोकने वाले अवस्थास्थापक द्रव्यों में आंवला को सबसे प्रधान बताया है।

धर्माचार्य व आयुर्वेदाचार्यो के अनुसार आंवला वृक्ष के नीचे भोजन करने की परंपरा अनादि काल से चली आ रही है। कार्तिक शुक्ल पक्ष के प्रथम दिन से पूर्णिमा तक आंवला वृक्ष के नीचे भोजन बनाने व ग्रहण करने की परंपरा है। गीता वाटिका में यह परंपरा आज भी जारी है। वहां अनवरत आंवला वृक्ष का पूजन-अर्चन व उसके नीचे भोजन बनाने व ग्रहण करने का क्रम चल रहा है। जो 15 दिन तक यह कार्य नहीं कर सकते, वे अक्षय नवमी से पूर्णिमा तक और जो यह भी नहीं कर सकते, वे केवल अक्षय नवमी के दिन आंवला वृक्ष के नीचे भोजन बनाकर ग्रहण कर सकते हैं। अक्षय नवमी से द्वापर युग का प्रारंभ माना जाता है। कार्तिक शुक्ल नवमी से तुलसी विवाह की तैयारी भी प्रारंभ हो जाती है। इस दिन भोजन में आंवले को शामिल करने की परंपरा है। आंवले का दान करने का इस दिन विशेष महत्व है। कार्तिक मास की अक्षय नवमी के दिन आंवला के वृक्ष की पूजा करने से तथा उसके नीचे भोजन बनाकर ग्रहण करने और दूसरों को कराने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। कार्तिक मास में आवले से बनी वस्तुओं का सेवन व आवले के वृक्ष की सेवा अक्षय पुण्य प्रदाता मानी गई है।

आंवला वृक्ष की उत्पत्ति

ब्रह्मांड पुराण के अनुसार एक बार जब ब्रह्माजी अपनी बनाई सृष्टि को देखकर बहुत हर्षित हुए तो उनकी आंख से आंसू बह निकले। आंसू की एक बूंद पृथ्वी पर गिरी, वही आंवला वृक्ष के रूप में प्रकट हुई। आंवला को पृथ्वी का प्रथम वृक्ष माना जाता है।

नवमी सुबह नौ बजे तक

अक्षय नवमी के दिन शनिवार को सूर्योदय 6.36 बजे और नवमी तिथि सुबह नौ बजे तक है। आचार्य पं. शरदचंद्र मिश्र व पं. विवेक उपाध्याय के अनुसार इस दिन स्नान, पूजन, तर्पण तथा अन्न आदि के दान से अक्षय फल की प्राप्ति होती है। आंवला वृक्ष की जड़ में दूध की धारा गिराते हुए पितरों का तर्पण किया जाता है। इसके बाद वृक्ष के तने में 21 या 27 बार सूत लपेटकर अमृत प्रदान करने वाली मां धात्री से मंगल कामना की जाती है।

जीवनोपयोगी है आंवला

आयुर्वेदाचार्य पं. आत्माराम दुबे के अनुसार आंवला जीवन व समाज के लिए नितांत उपयोगी है। यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। रक्त में शर्करा व चर्बी की मात्रा को कम करता है। यह एंटीऑक्सीडेंट व टॉनिक है। इसके महत्व को देखते हुए इस वृक्ष की पूजा तथा इसके नीचे भोजन बनाने व ग्रहण करने की परंपरा शुरू हुई, ताकि आस्था जुड़ने से लोग इस वृक्ष का संरक्षण व संवर्धन करेंगे। आचार्य चरक ने कहा है कि आंवला वय (अवस्था) को स्थगित कर देता है। आंवला (च्यवनप्राश) के सेवन से ही च्यवन ऋषि युवावस्था को प्राप्त हुए थे।

चरक संहिता में आंवला धात्री

आयुर्वेदाचार्य डॉ. केशव त्रिपाठी का कहना है कि चरक संहिता में आंवला धात्री के नाम से प्रसिद्ध है। आचार्य चरक ने शारीरिक अवनति को रोकने वाले अवस्थापक द्रव्यों में आंवला को सबसे प्रधान बताया है। इसमें विटामिन सी प्रचुर मात्रा में पाई जाती है, जो जलाने या गरम करने पर भी नष्ट नहीं होती। यह फल त्रिदोष (वात, कफ, पित्त) शामक है। इस वृक्ष के नीचे ऑक्सीजन पर्याप्त मात्रा में मिलता है। लोगों ने उसे अपने हृदय या परंपरा में इसलिए स्थान दिया, ताकि इस जीवन रक्षक पौधे का संरक्षण व संवर्धन किया जा सके।

आमलक नवमी भी कहते हैं

धर्माचार्य आचार्य पं. विवेक उपाध्याय का कहना है कि अक्षय नवमी को आमलक नवमी भी कहा जाता है। पुराणों में कार्तिक शुक्ल नवमी को पितरों का उत्सव दिन बताया गया है, कहा गया कि इस दिन कूष्माड के अंदर रत्‍‌न भर कर दान करने से कुरुक्षेत्र में तुला दान करने के बराबर लाभ प्राप्त होता है। इसी दिन से तीन रात्रि विष्णु का व्रत करने का विधान बताया गया है। कलयुग में जब दान, तप आदि करना गृहस्थ के लिए कठिन है, ऐसे में अक्षय नवमी को किया गया समस्त पूजन, मंत्र, जप, दान आदि अक्षय हो जाते हैं।

आंवला वृक्ष साक्षात विष्णु

धर्माचार्य आचार्य पं. शरदचंद्र मिश्र का कहना है कि पद्म पुराण के अनुसार आंवला वृक्ष साक्षात विष्णु का ही स्वरूप है। यह विष्णु को प्रिय है व इसके स्मरण मात्र से गोदान के बराबर फल की प्राप्ति होती है। कहा गया है कि सब पापों के नाश के द्वारा दामोदर भगवान की प्रसन्नता के लिए आंवले के नीचे जड़ में दामोदर भगवान की पूजा करनी चाहिए, अ‌र्घ्य देते समय प्रार्थना करनी चाहिए कि हे भगवान हमारा अ‌र्घ्य ग्रहण करें और हमारे संपूर्ण मनोरथ को पूर्ण करें। यह आंवला वृक्ष पितृ दोष के निवारण के लिए सबसे महत्वपूर्ण बताया गया है।

chat bot
आपका साथी